उज्जैन। कहने को हमारा शहर उज्जैन संभाग केंद्र है लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं में काफी पिछड़ा हुआ है। थोड़ा सा भी गंभीर रोग हो तो हमें इंदौर और गुजरात का मुंह देखना पड़ता है। वर्तमान स्थिति की बात करें तो जिले की जनसंख्या 21 लाख से ऊपर है और डॉक्टरों की संख्या मात्र 700 है। इनमें भी कई मुख्य बीमारियों के डॉक्टर तो अस्पताल में मिलते ही नहीं है।
मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार 14000 करोड़ रुपए हर वर्ष खर्च कर रही है लेकिन इतने भारी भरकम बजट के बावजूद अस्पतालों में इलाज करने वाले डॉक्टर मौजूद नहीं है। उज्जैन शहर की बात की जाए तो यहां निजी और सरकारी मिलाकर कुल 700 डॉक्टर ही है। इनमें करीब 55 सौ के आसपास तो निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर हैं बाकी 150 डॉक्टरों के भरोसे पूरी सरकारी स्वास्थ्य सेवा टिकी हुई है। भले ही जनप्रतिनिधि स्वास्थ्य सेवाओं को ठीक करने का ढिंढोरा पीटते हों लेकिन उज्जैन अस्पताल की ही बात की जाए तो यहां न्यूरो सर्जन, चर्म रोग विशेषज्ञ एवं अन्य कई बीमारियों के डॉक्टर उपलब्ध ही नहीं हैं। ऐसे में मरीजों को निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों से डॉक्टर के पलायन का यह सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। कई डॉक्टर जो सरकारी अस्पताल में सर्विस कर रहे हैं, वे भी वीआरएस लेने की सोच रहे हैं। इन डॉक्टरों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में मारपीट का खतरा हमेशा बना रहता है वहीं ब्यूरोक्रेट्स भी हावी रहते हैं और राजनीतिक दबाव में काम करना पड़ता है। इसी के चलते निजी प्रैक्टिस करना ही सही है। इन्हीं सब कारणों के चलते प्रदेश में हर साल करीब 1000 डॉक्टर नौकरी छोड़ रहे हैं और मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर दूसरे राज्य में जा रहे हैं। मध्य प्रदेश में कागजों में 57 हजार डॉक्टर हैं लेकिन हकीकत में सिर्फ 17000 ही काम कर रहे हैं। नौकरी छोड़कर जाने वाले डॉक्टरों में एमबीबीएस, एमडी, एमएस के साथ-साथ सुपर स्पेशलिटी विद्या के चिकित्सक भी हैं। हर साल मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से साढ़ 3 हजार से अधिक डॉक्टर डिग्री लेकर निकलते हैं लेकिन लेकिन डॉक्टरों की संख्या प्रदेश के साथ-साथ उज्जैन जिले में अभी तक कम ही है। स्वास्थ्य स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार को सरकारी नियमों में शिथिलता बरतने पड़ेगी वहीं डॉक्टरों को सुरक्षा देना पड़ेगी तभी डॉक्टर यहां टिक पाएंगे। नहीं तो निजी चिकित्सकों के भरोसे ही आम जनता को रहना पड़ेगा।
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