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    कांग्रेस का फोकस मालवा-निमाड़ और आदिवासी अंचलों पर

  • April 21, 2022

    बड़े नेताओं को सौंपी जाएगी इन सीटों की जवाबदारी, भूरिया और यादव को मिलेगी महत्वपूर्ण भूमिका

    इंदौर। 2018 के चुनाव (2018 elections) में भाजपा के हाथ से छीनी मालवा-निमाड़ (Malwa-Nimar) सहित आदिवासी अंचलों की सीटों पर कांग्रेस अपना कब्जा बरकरार रहना चाहती है। माना जाता है कि प्रदेश की सत्ता का प्रवेश द्वार इन्हीं सीटों से होकर गुजरता है। इन क्षेत्रों की अधिकांश सीटों पर जिस दल का कब्जा होता है प्रदेश में सरकार उसकी ही बनती है। इसका उदाहरण 2018 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिल चुका है, लेकिन एक राजनीतिक घटनाक्रम के बाद कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।


    कल भोपाल में अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज और कांग्रेस के पुराने नेताओं की पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के आवास पर बैठक हुई। बैठक में आदिवासी अंचल से कांतिलाल भूरिया, निमाड़ से अरुण यादव, विंध्य से अजयसिंह, मालवा से जुड़ी सीटों से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह, सुरेश पचौरी जैसे नेता शामिल हुए। बैठक में संगठन को मजबूत करने और आगामी चुनावों को लेकर सभी नेताओं में चर्चा हुई। करीब साढ़े 6 घंटे चली बैठक में और भी कई मुद्दों को लेकर चर्चा हुई, जिसमें आदिवासी और मालवा-निमाड़ की सीटों पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखना भी शामिल है। मालवा और निमाड़ में कुल 66 सीटें हैं, जिनमें भाजपा के पास 26 सीटें हैं और कांगे्रस के पास 40, लेकिन 2013 के चुनाव में भाजपा के पास 56 सीटें थीं और कांग्रेस के पास 9 तथा निर्दलीय के पास एक। कांगे्रस ने जिस तरह से यहां वोट बैंक को अपने पक्ष में किया, वह इसे खोना नहीं चाहती है। दूसरी ओर 2013 में आदिवासी अंचल की 22 सीटों में से भाजपा के पास 16 सीटें थीं, लेकिन 2018 में बड़ा उलटफेर हुआ और कांग्रेस के खाते में 17 सीटें आ गईं। अब इन सीटों को कांग्रेस अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती है, इसलिए इन पर फोकस रखकर आगे की रणनीति तैयार करेगी। चूंकि आदिवासी क्षेत्र में अभी कांतिलाल भूरिया जैसे नेता कांग्रेस के पास हैं, इसलिए उन्हें इस क्षेत्र की जवाबदारी दी जा सकती है। अरुण यादव को निमाड़ का प्रभारी बनाया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि दोनों ही नेताओं का इन अंचलों की सीटों पर खासा प्रभाव है, इसलिए कांग्रेस के आला नेता भी चाह रहे हैं कि इन्हें उन क्षेत्रों की जवाबदारी दी जाए, ताकि भाजपा को वहां कांगे्रस का किला भेदने का मौका न मिलने पाए।

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