– प्राकृतिक कृषि पद्धति पर हुई राज्य स्तरीय कार्यशाला
भोपाल। प्राकृतिक खेती (natural farming) और प्राकृतिक चिकित्सा (naturopathy) के प्रकाण्ड विद्वान गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत (Gujarat Governor Acharya Devvrat) ने प्राकृतिक कृषि पद्धति पर अपने विचार रखते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती शून्य लागत वाली खेती है, जिसकी खाद की फैक्टरी देशी गाय और दिन-रात काम करने वाला मित्र केंचुआ हैं।
आचार्य देवव्रत बुधवार को राजधानी भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में प्राकृतिक कृषि पद्धति पर हुई राज्य स्तरीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। कार्यशाला में मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी सहभागिता की। केंद्रीय कृषि एवं किसान-कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कार्यशाला में दिल्ली से वर्चुअली सहभागिता की। प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह और कृषि मंत्री कमल पटेल उपस्थित थे। कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्र-गान तथा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ।
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान प्राकृतिक खेती : राज्यपाल पटेल
इस मौके पर राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने प्रदेश के किसानों का आह्वान किया कि “जब जागो-तभी सवेरा” के भाव से प्राकृतिक खेती के लिए संकल्पित हो। उन्होंने कहा कि वर्ष 1977 में राष्ट्रसंघ ने ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में चेताया था। इसके बावजूद ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है। प्रकृति ने वर्ष में चार मौसम की व्यवस्था की है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते हुए मानव जाति ने एक दिन में चार मौसम कर दिए हैं। उन्होंने कहा कि आज एक ही दिन में तेज ठंड और गर्मी दोनों हो रही है। समय रहते यदि प्रयास नहीं किए गए तो भविष्य भयावह हो सकता है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का प्रभावी समाधान प्राकृतिक खेती है। आवश्यकता है कि यह बात हर किसान तक पहुंचाई जाए।
प्राकृतिक खेती अपनाने पर भावी पीढ़ी मानेगी वर्तमान पीढ़ी का आभार : राज्यपाल देवव्रत
गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती के एक काम से अनेक लाभ मिलेंगे। ग्लोबल वार्मिंग से रक्षा होगी। पर्यावरण, पानी, गाय, धरती और लोगों का स्वास्थ्य बचेगा। इससे सरकार और लोगों का धन भी बचेगा तथा भावी पीढ़ी वर्तमान पीढ़ी का आभार मानेगी। उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती और जैविक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती, धरती-पर्यावरण और जीवन जगत के लिए अधिक सुरक्षित है। ग्लोबल वार्मिंग भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती है। केवल एक से दो प्रतिशत तापमान में वृद्धि से 32 प्रतिशत उत्पादन कम होगा। अत: प्राकृतिक खेती को अपनाना आवश्यक है।
प्राकृतिक खेती है शून्य लागत की खेती
राज्यपाल ने कहा कि प्राकृतिक खेती शून्य लागत वाली खेती है, जिसकी खाद की फैक्टरी देशी गाय और दिन-रात काम करने वाला मित्र केंचुआ है। उन्होंने जैविक और प्राकृतिक खेती के बीच अंतर बताया। साथ ही प्राकृतिक खेती की विधि को विज्ञान आधारित उदाहरणों और स्वयं के खेती के अनुभवों के आधार पर समझाया। उन्होंने बताया कि रासायनिक तत्वों का खेत में उपयोग, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को समाप्त कर देता है। जैविक खेती की उत्पादकता धीमी गति से बढ़ती है। साथ ही आवश्यक खाद के लिए गोबर की बहुत अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है, जिसके लिए प्रति एकड़ बहुत अधिक पशुओं की जरूरत और अधिक श्रम लगता है।
रासायनिक खाद-कीटनाशक के उपयोग से बढ़ रहे कैंसर जैसे गंभीर रोगों के मरीज
राज्यपाल देवव्रत ने बताया कि भूमि की उर्वरा शक्ति आर्गेनिक कार्बन पर निर्भर करती है। हरित क्रांति के सूत्रपात केंद्र, पंत नगर की भूमि में वर्ष 1960 में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 2.5 प्रतिशत थी, जो आज घटकर 0.6 प्रतिशत रह गई है। इसकी मात्रा 0.5 प्रतिशत से कम होने पर भूमि बंजर हो जाती है। रासायनिक खाद और कीटनाशक का अंधाधुंध उपयोग फसलों को जहरीला बनाता है। इसी कारण कैंसर जैसे गंभीर रोग के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है।
जहरीले तत्वों से मानव जाति को बचाना जरूरी
उन्होंने कहा कि भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और जहरीले तत्वों से मानव जाति को बचाने के लिए गो-आधारित प्राकृतिक खेती ही सबसे प्रभावी समाधान है। गो-आधारित प्राकृतिक खेती के लिए खाद और कीटनाशक देसी गाय के गोबर और मूत्र से बनते हैं। इनमें दाल का बेसन, गुड़, मुट्ठी भर मिट्टी और 200 लीटर पानी मिलाना पड़ता है। किसान यह जीवामृत स्वयं तैयार कर सकते हैं। जीवामृत खेत की उर्वरा शक्ति को उसी तरह बढ़ाता है, जैसे दही की अल्प मात्रा दूध को दही बना देती है। एक एकड़ भूमि के लिए जीवामृत, देसी गाय के एक दिन के गो-मूत्र और गोबर से तैयार हो सकता है। उन्होंने कहा कि एक गाय से 30 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती की जा सकती है। जीवामृत से उत्पन्न होने वाले जीवाणु किसान के सबसे बड़े मित्र हैं। केचुएं की सक्रियता भूमि में गहरे तक जल रिसाव को बढ़ाती है, इससे जल संचयन क्षमता भी बढ़ती है।
प्राकृतिक खेती से किसानों की आय में वृद्धि भी संभव
राज्यपाल देवव्रत ने बताया कि प्राकृतिक खेती में भूमि को ढंक कर रखना (मलचिंग) भी जरूरी है। इससे तीन वर्षों में 70 प्रतिशत तक जल की बचत होती है। जीवाणुओं को बढ़ने के लिए भोजन मिलता है, आर्गेनिक कार्बन बचता और खरपतवार भी नहीं उगते हैं। उन्होंने कहा कि एक बार में अनेक फसलें लेने से मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ती है तथा अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। इससे किसानों की आय में वृद्धि होती है।
कार्यशाला को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, मप्र के कृषि मंत्री कमल पटेल ने भी संबोधित किया। (एजेंसी, हि.स.)
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