नई दिल्ली। यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए रूस की निंदा नहीं करने के कारण भारत का अमेरिका के साथ संबंध बिगड़ जाएगा? कम-से-कम एक पूर्व अमेरिकी अधिकारी को तो ऐसा लगता है। लिजा कार्टिस पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन में टॉप पोस्ट पर थीं।
उन्होंने कहा कि अगर नई दिल्ली ने यूक्रेन पर की गईं ‘गलितयां’ नहीं सुधारीं तो दोनों देशों के लिए एक निश्चित सीमा के बाद रक्षा एवं सुरक्षा संबंधों (Defence and security ties) को विस्तार देना कठिन हो जाएगा। लिज कर्टिस ही वो ऑफिसर थीं जो ट्रंप प्रशासन के दौरान भारत-अमेरिका के बीच की कड़ी का काम कर रही थीं। ध्यान रहे कि आज संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में रूस के खिलाप प्रस्ताव पर वोटिंग होगी जिसे भारत के लिए अग्निपरीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है।
भारत-अमेरिका रिश्तों में खटास की आशंका
बहरहाल, रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत के स्टैंड पर लिजा कर्टिस ने कहा, ‘मुझे लगता है कि अमेरिका-भारत संबंध उस चौराहे पर पहुंच गया है जहां से कौन सा मोड़ लेगा, पता ही नहीं। भारत का रूस के साथ करीबी संबंध यूएस-इंडिया के रिश्ते में हमेशा बाधक रहा है। बिना उकसावे के एक संप्रभु देश पर रूस के हमले के बाद उम्मीद की जा रही थी कि भारत, रूस के साथ अपने रिश्ते पर पुर्नविचार करेगा।’ कर्टिस अब सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्यॉरिटी थिंक टैंक में हिंद-प्रशांत सुरक्षा कार्यक्रम की सीनियर फेलो और डायरेक्टर हैं। उनका कहना है कि भारत को लेकर अमेरिका की जो उम्मीदें रही हैं, उन पर 24 फरवरी को रूस के यूक्रेन पर हमले के साथ ही पानी फिर गया।
भारत की मजबूरी समझ रहा है अमेरिका, लेकिन…
वो कहती हैं, ‘मुझे लगता है कि भारत तुरंत रूसी सैन्य उपकरणों पर अपनी निर्भरता खत्म नहीं कर सकता, इसकी समझ अमेरिका को रही है। अमेरिका यह भी मानता रहा है कि भारत के कुछ वास्तविक सुरक्षा हित हैं जिन्हें संरक्षित करने की दरकार है।’ वो आगे कहती हैं, ‘लेकिन मैं यह भी सोचती हूं कि अब आगे बढ़ने के लिए अमेरिका भारत से उम्मीद करेगा कि वो रूस के साथ अपने रिश्ते में थोड़ी ही सही, लेकिन ढिलाई बरते वरना मुझे लगता है कि भारत और अमेरिका के लिए रक्षा और सुरक्षा मामलों में साझेदारी को आगे बढ़ाना वास्तव में कठिन हो जाएगा।’ कर्टिस ने रूस पर भारत के पॉजिशन को समझने के लिए बाइडेन प्रशासन की प्रशंसा की।
‘बाइडेन प्रशासन ने भारत पर काफी धैर्य दिखाया’
उन्होंने कहा कि बाइडेन प्रशासन ने अमेरिका-भारत के रिश्तों को लेकर ट्रंप प्रशासन के फैसलों को ही दिशा दी है। उन्होंने कहा कि क्वाड के कारण अमेरिका-भारत के रिश्तों में गर्माहट बढ़ गई है। वो कहती हैं, ‘बाइडेन में तीन क्वाड सम्मेलन हुए, दो वर्चुअल और एक आमने-सामने बैठकर, यह बड़ी बात है। इससे पता चलता है कि बाइडेन प्रशासन ने क्वाड को हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रणनीति के केंद्र में रखा है। उन्होंने कहा कि हिंद-प्रशांत रणनीतिक दस्तावेज को कोई भी देख सकता है।
इसमें बाइडेन प्रशासन ने भारत के साथ सामरिक साझेदारी को बहुत महत्व दिया है और इस क्षेत्र में भारत की केंद्रीय भूमिका स्वीकार की है। वो कहती हैं, ‘इसी कारण से कह रही हूं कि हमारी नजर में बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के प्रति भारत के नजरिए को लेकर भी काफी धैर्य और सहनशीलता का प्रदर्शन किया है। बाइडेन प्रशासन दूर भविष्य के लिहाज से भारत का महत्व समझ रहा है। उसे पता है कि इस क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार के खिलाफ लोहा लेने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।’
आज भारत के लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा
ध्यान रहे कि आज रूस को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) से निकालने के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में वोटिंग होगी। रूस ने कहा है कि वह वोटिंग से दूर रहने वाले देशों को अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के गुट का समर्थक मानेगा। ऐसे में भारत के सामने बड़ी मुश्किल है कि वो वोट करे तो गुटनिरपेक्षता की नीति के खिलाफ होगा और नहीं करे तो रूस के साथ पारंपरिक दोस्ती में दरार की आशंका होगी।
कर्टिस ने भी कहा, ‘भारत ने रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में लाए प्रस्तावों पर वोटिंग से नौ बार दूर रहा। उसने बिना उकसावे के यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा तक नहीं की। बाइडेन प्रशासन भारत की इस असमंजस को समझता रहा है। इसलिए, मुझे लगता है कि यह मुद्दा रिश्तों में कुछ हद तक दरार ला रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘व्यक्तिगत रूप से मैं भी चकित हूं कि बाइडेन प्रशासन ने भारत को लेकर कितना धैर्य का परिचय दिया है।’ उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि रूस के खिलाफ बोलने से भारत का ही फायदा होगा।
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