जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने गुरुवार को पीएससी 2019 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली करीब आधा सैकड़ा याचिकाओं पर गुरुवार को अपना फैसला सुनाते हुए प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा परिणाम को निरस्त कर दिया है, जो कि संशोधित नियमों के अनुसार तैयार किया गया था। जस्टिस सुजय पाल व जस्टिस डीडी बंसल की युगलपीठ ने संशोधित नियम 17 फरवरी 2020 को असंवैधानिक करार देते हुए उक्त फैसला दिया है, जिसकी फिलहाल प्रतीक्षा है।
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता किशोरी चौधरी सहित लगभग आधा सैकड़ा दायर याचिकाओं में मध्य प्रदेश राज्य परीक्षा नियम 2015 में 17 फरवरी 2020 को किये गये संशोधन की संवैधनिकता को चुनौती देते हुए पीएससी परीक्षा 2019 को निरस्त करने की राहत चाही गई थी। याचिका में कहा गया था कि संशोधित नियम आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यार्थियों को अनारक्षित वर्ग में चयन से रोकते है। जो इंद्रा शाहनी के निर्णय से असंगत है तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 तथा 21 का उल्लंघन करते हुए कम्युनल आरक्षण लागू करता है। मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा नवम्बर 2019 के राज्य सेवा एवं वन सेवा में रिक्त पदों की पूर्ति हेतु विज्ञापन जारी किया था। प्रारंभिक परीक्षा जनवरी 2020 में आयोजित की गई तथा 21 दिसंबर 2020 को संशोधित नियमानुसार रिजल्ट जारी किया गये। जिसमें अनारक्षित वर्ग के लिए 40 प्रतिशत, ओबीसी वर्ग के लिए 27 तथा एसटी-एससी वर्ग के लिए क्रमश: 16 तथा 20 प्रतिशत और और ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित किया गया है। इस प्रकार पीएससी द्वारा 113 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया। अनारक्षित वर्ग में सिर्फ अनारक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को ही रखा गया जबकि पुराने नियमो के अनुसार अनारक्षित वर्ग में आरक्षित एवं अनारक्षित वर्ग के प्रतिभावान छात्रों को ही चयन किया जाता था।
याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि विवादित संशोधित नियमों को निरस्त कर दिया गया है। याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि नियमों निरस्त किये जाने के बावजूद भी मुख्य परीक्षा का रिजल्ट उसके अनुसार जारी किया गया है। इसके अलावा पीएसपी द्वारा इंटनव्यू की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गयी है। जिस पर पिछली सुनवाई पर न्यायालय ने उक्त प्रकिया को याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रखने के निर्देश दिये थे। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने जानकारी देते हुए बताया कि आगे हुई सुनवाई के आद आज गुरुवार को न्यायालय ने अपना फैसला सुनाते हुए वर्ष 2019 की परीक्षा परिणाम को निरस्त करते हुए संशोधित नियम को असंवैधानिक करार दिया है।
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