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इंसानों को क्यों पसंद है शराब? पता लगानें नशे में टुन्न बंदरो पर रिसर्च करेंगे वैज्ञानिक

April 06, 2022

पनामा सिटी. पनामा (Panama) में बंदरों की एक प्रजाति है जिसे ब्लैक हैंडेड स्पाइडर मंकी (Black Handed Spider Monkey) कहते हैं. यह बंदर पाम फ्रूट (Palm Fruit) इतना खाता है कि दिन में कई बार ये आपको नशे में टल्ली सोते हुए मिलेंगे. क्योंकि पाम फ्रूट में इथेनॉल (Ethanol) की छोटी मात्रा होती है. लेकिन ज्यादा फल खाने से ये बंदर नशे में टुन्न रहते हैं.

नशे में टल्ली इन बंदरों को देखकर वैज्ञानिकों (scientists) को यह आइडिया आया है कि अब ऐसी स्टडी की जाए, जिससे यह पता चल सकता है कि इंसानों को शराब इतनी पसंद क्यों है? ऐसी नहीं है कि सिर्फ यही बंदर नशे में रहता है. कई और प्रजातियों के बंदर (Monkey) भी अलग-अलग तरह के फल और पत्ते खाकर नशे में पड़े रहते हैं. सोते रहते हैं.

वैज्ञानिकों ने दो अलग-अलग स्पाइडर मंकी के पेशाब के सैंपल की जांच की तो इस बात के पुख्ता सबूत मिले इनकी नसों में इथेनॉल बह रहा है. सिर्फ यह उनकी नसों ही नहीं बह रहा है, बल्कि ये उसे कायदे से पचा ले रहे हैं. उसका उपयोग नींद पूरी करने और थकान मिटाने के लिए करते हैं. यह स्टडी रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है.

नॉर्थरिज स्थित कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी की प्राइमेटोलॉजिस्ट क्रिस्टीना कैंपबेल कहती हैं कि पहली बार हमने इस बात को प्रमाणित किया है कि जंगलों में रहने वाले बंदर बिना किसी इंसानी हस्तक्षेप के भी नशीले फल खाकर धुत रहते हैं. वो ऐसे फल खाते हैं, जिसमें अल्कोहल की मात्रा होती है. ज्यादा फल खाने के बाद वो नशे में सोते रहते हैं. (

क्रिस्टीना कहती हैं कि इसे देखकर लगता है कि ड्रंकेन मंकी हाइपोथीसिस (Drunken Monkey Hypothesis) सही है. इस हाइपोथीसिस को यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्कले के बायोलॉजिस्ट रॉबर्ट डडले ने साल 2000 में दिया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि बंदरों के पास इथेनॉल को सूंघने और उन्हें चखने की बेहतरीन काबिलियत होती है.

बंदर ऐसे फलों की तलाश में रहते हैं, जो पके या पक रहे होते हैं. यह एक तरह का इवोल्यूशनरी लाभ है. जो किसी अन्य जीव के पास नहीं है. यही वजह है कि हम इंसानों में भी इथेनॉल यानी अल्कोहल यानी शराब पसंद है. लेकिन हमारी समस्या ये है कि हमने पूरे फल के पोषक तत्वों की तरफ ध्यान नहीं दिया. हमने उसमें से स्पिरिट निकालना सीख लिया बस. बंदर ऐसा नहीं करते. वो पूरे फल को उसके असली स्वरूप में रखते हुए खाते हैं…उससे मिलने वाले नशे का भी आनंद लेते हैं.

सिर्फ स्पाइडर मंकी ही ऐसा नहीं करते. बंदरों की अन्य प्रजातियां भी ऐसा करती हैं. जंगली चिम्पैंजी भी पाम के पेड़ से निकलने वाले फर्मेंटेड रसों को पीते हुए देखे गए हैं. जब पेड़ों से निकलने वाले रसों की जांच की गई तो पता चला कि उसमें 7 फीसदी अल्कोहल है. यानी इथेनॉल है. लेकिन यह बात स्पष्ट नहीं है कि चिम्पैंजी इथेनॉल की वजह से पाम फ्रूट खाने जा रहे हैं या सच में नशा करने के लिए जाते हैं.

क्रिस्टीना और उनकी टीम ने यह स्टडी पनामा में की है. ताकि यह पता चल सके कि बंदरों द्वारा खाए जाने वाले अल्कोहल से भरे फलों का क्या असर होता है. बंदर क्यों इन फलों को खाते हैं. शुरुआत में स्पाइडर मंकी ने पके हुए फलों से आ रही इथेनॉल की खुशबू से खुद को दूर किया. लेकिन जब उन्हें खुले में यानी जंगल में छोड़ दिया गया तो वो खुद जाकर वही पाम फ्रूट खाने लगे.



स्पाइडर मंकी ये फल खाकर सिर्फ नशा नहीं करते, बल्कि उससे अपनी पाचन प्रणाली को दुरुस्त रखने का काम करते हैं. पहली बार ऐसी स्टडी की गई है जिससे बंदरों के नशा करने की आदत का पता चलता है. इसके आधार पर ही शराब को लेकर इंसानों की पसंद का खुलासा भी हो पाएगा.

क्रिस्टीना कहती हैं कि बंदर तो इथेनॉल वाले फल कैलोरीज के लिए खाते हैं. वो फर्मेंटेड फलों से ज्यादा कैलोरी पाते हैं. ज्यादा कैलोरी मतलब ज्यादा ताकत और ज्यादा ऊर्जा. जिसकी उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत होती है. ऐसी ही आदत इंसानों में भी हो सकती है. मध्य और दक्षिणी अमेरिका में इसी पाम फ्रूट का उपयोग वहां के आदिवाली और स्थानीय लोग भी करते हैं. वो इससे चीचा (Chicha) बनाते हैं. जो एक फर्मेंटेड देसी शराब है. जो काफी फेमस है.

हम जितना ज्यादा फर्मेटेंड फल खाएंगे, हमें उतनी ही ज्यादा ऊर्जा मिलेगी. ये भी हो सकता है कि हम ज्यादा नशे में भी रहें. स्पाइडर मंकी के मामले में रॉबर्ट डडले ने उनके द्वारा खाकर आधे छोड़े गए फलों की जांच की थी. तब पता चला कि उसमें करीब 2 फीसदी अल्कोहल है. लेकिन इससे कई तरह के मनोवैज्ञानिक फायदे मिलते हैं. इनसे एंटी-माइक्रोबियल फायदे भी हैं.

अगर यह किसी तरह का इवोल्यूशनरी फायदा है तो आपे इसे करोड़ों सालों में वानरों से होते हुए इंसानों में आते देख रहे हैं. यानी बंदरों से लेकर इंसानों तक शराब सभी को पसंद है. यानी शराब पसंद करना जानवरों के डीएनए से विकसित होते-होते हमारे डीएनए में आ गया है. स्तनधारियों के जेनेटिक डिकोडिंग से यह बात पता भी चली है. इंसान, चिम्पैंजी, बोनोबोस और गोरिल्ला के जीन में कई म्यूटेशन सामान हैं. इनमें एक जीन ऐसा है जो इथेनॉल एंजाइम को 40 गुना बदल देता है.

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