• img-fluid

    दुनिया की सबसे अनूठी लड़ाई, जमीन पर कब्जा न तेल की जंग, सिर्फ इस बात पर मर मिटे थे हजारों सैनिक

  • April 03, 2022

    नई दिल्ली. धरती पर ऐसे कई युद्ध (War) और लड़ाइयां हुई हैं जिनमें अधिकतर का मकसद दूसरे राज्यों पर कब्जा करना था. वहीं खाड़ी देशों पर हुए हमलों को क्रूड ऑयल की वजह से अंजाम दिया गया. तो कुछ मामलों में अमेरिका और पश्चिमी देशों ने ऐसा माहौल बनाया जिससे सुरक्षा के नाम पर हथियार खरीदने की होड़ लग गई. रूस और यूक्रेन की जंग (Russia Ukraine War) हो या फिर चीन और ताइवान के बीच तकरार (China-Taiwan Conflict) दोनों जगह तनाव की मूल वजह जमीन पर कब्जा और हथियारों का व्यापार ही है.

    ‘ऐसी जंग जो सिर्फ एक तरबूज के लिए हुई’
    इस बीच आपको ये भी बता दें कि दुनिया में एक लड़ाई ऐसी भी हुई जो हथियारों या कच्चे तेल के लिए नहीं बल्कि एक तरबूज के पीछे हुई जिसमें हजारों सैनिकों की जान चली गई. बता दें कि 1644 ईस्वी में हुआ ये युद्ध महज एक तरबूज के लिए लड़ा गया था. आइए जानते हैं इस अनूठी जंग के बारे में.

    ये शायद दुनिया की पहली जंग थी जो सिर्फ एक फल के लिए लड़ी गई थी. हमारी सहयोगी वेबसाइट डीएनए में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इतिहास में ये युद्ध ‘मतीरे की राड़’ के नाम से दर्ज है. राजस्थान के कई इलाकों में तरबूज को मतीरा के नाम से जाना जाता है और राड़ का मतलब लड़ाई होती है. आज से 378 साल पहले 1644 ईस्वी में यह अनोखा युद्ध हुआ था. तरबूज के लिए लड़ी गई यह लड़ाई विदेश में नहीं बल्कि अपने देश की दो रियासतों के लोगों के बीच हुई थी.



    इन रियासतों के बीच खिंची तलवार
    उस दौर में बीकानेर रियासत के सीलवा गांव और नागौर रियासत के जाखणियां गांव की सीमा एक दूसरे से सटी थी. ये दोनों गांव इन रियासतों की आखिरी सीमा थे. बीकानेर रियासत की सीमा में एक तरबूज का पेड़ लगा था और नागौर रियासत की सीमा में उसका एक फल लगा था और यही फल युद्ध की वजह बन गया.

    एक तरबूज के लिए मर मिटे हजारों सैनिक
    दरअसल सीलवा गांव के लोगों का कहना था कि पेड़ उनके यहां लगा है, तो फल पर उनका अधिकार है, वहीं नागौर रियासत के गांव वालों का कहना था कि फल उनकी सीमा में है तो तरबूज उनका है. इसी फल पर अधिकार को लेकर दोनों रियासतों में शुरू हुए झगड़े ने खूनी जंग का रूप ले लिया.

    राजाओं की नहीं थी युद्ध की जानकारी
    सिंघवी सुखमल ने नागौर की सेना का नेतृत्व किया, तो बीकानेर की ओर से रामचंद्र मुखिया ने कमान संभाली. हालांकि युद्ध के बारे में दोनों रियासतों के राजाओं को जानकारी नहीं थी. दरअसल जब यह लड़ाई हो रही थी, तो बीकानेर के शासक राजा करणसिंह एक मुहिम पर गए थे, तो नागौर के शासक राव अमरसिंह खुद मुगल साम्राज्य की सेवा में तैनात थे और अपनी रियासत के वजूद को लेकर निश्चिंत थे.

    जब इस लड़ाई के बारे में दोनों राजाओं को जानकारी मिली, तो उन्होंने मुगल बादशाह से दखल की अपील की. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. इस जंग में भले ही बीकानेर की रियासत की जीत हुई हो लेकिन बताया जाता है कि दोनों तरफ से हजारों सैनिकों की मौत हुई थी.

    Share:

    हर साल लगवानी पड़ेगी कोरोना वैक्सीन? जानें क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ

    Sun Apr 3 , 2022
    नई दिल्ली. जब से कोरोना महामारी ने दस्तक दी है तबसे इसे पहचानना, टेस्टिंग किट बनाना किसी चुनौती से कम नहीं था. लेकिन NIV पुणे के वैज्ञानिकों ने मोर्चा संभाला और सबसे पहले देश में कोरोना वायरस(corona virus) की ना सिर्फ पहचान की बल्कि उसकी टेस्टिंग किट से लेकर टेस्टिंग लैब देशभर में तैयार करवाईं. […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    सोमवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved