– प्रभुनाथ शुक्ल
यूक्रेन और रूस युद्ध का परिणाम चाहे जो हो, लेकिन इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। युद्ध में व्यक्ति और देश के रूप में न कोई हारता है न कोई जीतता है। अगर कोई हारता है तो वह मानवता है। युद्ध की विभीषिका का सुखद परिणाम कभी शायद किसी देश को मिला हो। युद्ध सिर्फ साम्राज्यवाद विस्तार की महत्वाकांक्षा है। युद्ध और गृह युद्ध में अब तक लाखों बच्चे शिकार हुए हैं। यूक्रेन और रूस के मध्य छिड़ी जंग अगर खत्म भी हो जाए तो अपने मूल स्वरूप में लौटने में सदियां गुजर जाएंगी। यूक्रेन की पीढ़ी व्लादिमीर पुतिन को कभी माफ नहीं करेगी। दुनिया में शांति सिर्फ बुद्ध के रास्ते से आएगी। युद्ध का सबसे बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। पूरे विश्व भर में अब तक हजारों बेजुबान मासूम युद्ध की भेंट चढ़ चुके हैं। ग्लोबल मंच पर बाल अधिकार की बात करने वाली संस्थाएं हाथ बांधे खड़ी हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति की पत्नी ओलेना ने रूसी सैनिकों की माताओं से मार्मिक अपील की है। उन्होंने कहा है देखिए आपके बेटे किस तरह हमारे पति, बच्चे और भाइयों का कत्ल कर रहे हैं। कोई भी मां किसी बच्चे को इस तरह कत्ल होते नहीं देख सकती। रूसी हमले में अब तक 144 से अधिक मासूम बच्चों की मौत हो चुकी है और 250 से अधिक बच्चे घायल हुए हैं। युद्ध की विभीषिका का असर रूस और यूक्रेन की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ेगा।
रूसी हमले में बच्चों के स्कूल तबाह चुके हैं। अस्पताल खंडहर में तब्दील हो गए हैं। मां-बाप की मौत से तमाम बच्चे अनाथ हो गए हैं। सेव द चिल्ड्रन की रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन के 60 लाख बच्चों का भविष्य दांव पर है। 464 स्कूल तबाह हो गए हैं। अस्पतालों में इलाज की सुविधा बंद हो गई। युद्ध की वजह से यूक्रेन के 75 लाख बच्चों में 15 लाख ने देश छोड़ दिया है। इस रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन में 80 हजार बच्चे मांओं के के गर्भ में हैं। जंग के हालात में उन्हें मैटरनिटी सुविधाएं उपलब्ध कराना मुश्किल है। इस स्थिति पर सवाल है क्या यह मातृत्व और बाल अधिकारों पर कुठराघात नहीं है। यूनिसेफ और संयुक्तराष्ट्र ने क्यों मुंह को सिल रखा है। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं। युद्ध भविष्य में कई युद्ध की आधारशिला रखता है। सवाल सिर्फ यूक्रेन और रूस के युद्ध का नहीं। सीरिया अफगानिस्तान, यमन, इराक और सोमालिया जैसे देशों का भी है। यहां लाखों बच्चे युद्ध की भेंट चढ़ चुके हैं। बावजूद इसके बच्चों के अधिकारों को लेकर पूरी दुनिया मौन है।
नार्वे के पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार तीन साल पूर्व यानी 2019 में 160 करोड़ बच्चे युद्ध के इलाकों में रह रहे थे। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार सीरिया में युद्ध के दौरान हर 10 घंटे में एक बच्चे की मौत हुई। इस दौरान 10 लाख से अधिक बच्चों ने जन्म लिया। युद्ध में 5427 बच्चों की मौत हुई। अफगानिस्तान में साल 2018 तक पांच हजार बच्चों की युद्ध में मौत हुई। इस दौरान हजारों लोग शरणार्थी बने। लाखों की संख्या में बच्चों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी। यहां हर 10 मिनट में एक बच्चे की बीमारी से मौत हुई। युद्ध के दौरान यहां 1427 बच्चों की मौत हुई। यहां चार लाख से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हो गए । युद्ध की वजह से 20 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे है। 17 लाख बच्चों के परिवारों को विस्थापित होना पड़ा।
सोमालिया में 1991 के दौरान युद्ध के शुरुआती नौ महीने में 1800 बच्चों की मौत हुई। 1278 बच्चों का अपहरण हुआ। 10 में से 6 बीमार बच्चों को इलाज तक की सुविधा उपलब्ध नहीं मिल पाई। इराक में अमेरिकी सेना की कार्रवाई के दौरान साल 2003 से साल 2011 के बीच काफी बच्चों की मौत हुई। युद्ध की वजह से बच्चों को अस्पताल में इलाज तक की सुविधा नहीं मिल पाई और उनकी मौत हो गई। दुनिया भर में युद्धग्रस्त इलाकों में बाल अधिकार हाशिए पर हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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