नई दिल्ली। सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा है कि किसी भी सोशल मीडिया कंपनी को नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है। अधिकारियों ने मंगलवार को इन आरोपों के बीच यह बात कही कि डिजिटल मंच सामग्री को गटाने में मध्यस्थ की तरह काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सभी प्लेटफॉर्म्स के यूजर्स के लिए इंटरनेट एक सुरक्षित और भरोसेमंद मंच होना चाहिए।
समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार सूत्रों ने बताया है कि केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के सामने एक हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें उसने अपना रुख स्पष्ट किया है। बता दें कि यह पहली बार है जब सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सोशल मीडिया मंचों और यूजर्स के बीच विवाद पर अपना रुख सामने रखा है। केंद्र ने यह हलफनामा एक सोशल मीडिया यूजर की रिट याचिका पर पेश किया है।
सुरक्षित-भरोसेमंद इंटरनेट के लिए मंत्रालय प्रतिबद्ध
सूत्रों ने कहा कि सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय अपने नागरिकों के लिए मुक्त, सुरक्षित, भरोसेमंद और जवाबदेह इंटरनेट सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि कोई भी मध्यस्थ भारत के कानूनों का और संविधान की अनुच्छेद-14 (गैर भेदभाव), अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 ( निजता का अधिकार) के तहत भारतीय नागरिकों को दिए गए अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकता है।
‘भारतीय कानूनों का सम्मान करें सोशल मीडिया मंच’
मंत्रालय का मानना है कि किसी भी मध्यस्थ के पास, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, भारतीय हो या विदेशी, भारतीय नागरिकों के संवैधानिक और मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करने की शक्ति नहीं हो सकती है। सूत्रों ने कहा कि सोशल मीडिया मंचों और मध्यस्थों को सभी कानूनों का सम्मान करना चाहिए। आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट किए जाने पर मंचों को कार्रवाई करनी चाहिए या सरकार के निर्देशों पर काम करना चाहिए।
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