भोपाल। जरूरतमंदों को 100 दिनों की रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा योजना अधिकारियों कर्मचारियों की लापरवाही के कारण बड़े पैमाने पर लोगों को समय पर मजदूरी देने में विफल रही है। पूरे प्रदेश भर में समय पर मजदूरी पाने से वंचित रह गये मजदूरों को अब क्षति पूर्ति देने के लिए शासन ने सभी जिला पंचायतों के सीईओ को 27 मार्च तक की डेड लाइन दी है। प्रदेश में सबसे ज्यादा मजदूरी देने में विलंब आदिवासी बाहुल्य जिले झाबुआ में पाया गया है। यहां 1.85 लाख रुपए क्षतिपूर्ति दी जानी है। सबसे कम क्षतिपूर्ति इंदौर में एक रुपए बनी है। प्रदेश के सभी जिलों में कुल क्षतिपूर्ति 10,79,707 रुपये तय की गई है।
विलंब पर मजदूरी का 0.05 प्रतिशत क्षतिपूर्ति
मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों को 15 दिन में मजदूरी भुगतान किये जाने का प्रावधान है। तय नियमों के तहत अगर 15 दिन में मजदूरी का भुगतान नहीं होता है तो मजदूरों द्वारा जितने दिनों काम किया गया है उस मजदूरी का 0.05 फीसदी क्षतिपूर्ति का प्रावधान है। मजदूरों को यह क्षतिपूर्ति देने के बाद शासन संबंधित दोषी अधिकारियों कर्मचारियों से इस राशि की रिकवरी करती है। विधानसभा में विलंबित मजदूरी का मामला उठने के बाद आनन फानन में अब प्रदेश के सभी जिलों में मजदूरों को क्षतिपूर्ति के भुगतान के आदेश आयुक्त मनरेगा ने दिये हैं। इस राशि का भुगतान 27 मार्च तक करने कहा गया है।
2013 से नहीं दी गई थी क्षतिपूर्ति
मजदूरों को समय पर मजदूरी का भुगतान नहीं करने पर मिलने वाली क्षतिपूर्ति की राशि का भुगतान 2013-14 से नहीं हो रहा था। आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 2013-14 में क्षतिपूर्ति 27625 रुपए, 2014-15 में 126411 रुपए, 2015-16में 124097 रुपए, 2016-17 में 80633 रुपए, 2017-18 में 62009 रुपए, 2018-19 में 58479 रुपए, 2019-20 में 123163 रुपए, 2020-21 में 233508 रुपए तथा 2021-22 में 249423 रुपए की क्षतिपूर्ति बनी है। इससे स्पष्ट हो रहा है कि सबसे ज्यादा मजदूरी देने में विलंब वर्ष 2021-22 में हुआ है।
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