नई दिल्ली। यूक्रेन संकट (Ukraine Crisis) का साया भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy)पर गहराता जा रहा है। जैसे-जैसे युद्ध लंबा खिंच रहा है, इंटरनेशनल कमोडिटीज़ मार्केट में उथल-पुथल बढ़ रही है। इस अनिश्चितता की वजह से भारत में सबसे ज्यादा असर महंगाई दर पर पड़ेगा। इस संकट के भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर को लेकर बढ़ रही चिंता के बीच अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)ने गुरुवार को आगाह किया कि युद्ध की वजह से दुनिया के दो बड़े कृषि उत्पादक देशों, रूस और यूक्रेन से कृषि उत्पादों की सप्लाई पर असर पड़ रहा है।
इसकी वजह से दुनियाभर में महंगाई बढ़ेगी और आर्थिक विकास की रफ़्तार धीमी पड़ेगी। तेल और गैस महंगा होने से भारत में महंगाई दर बढ़ेगी जो सेंट्रल बैंक (RBI) के टारगेट रेंज के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच चुकी है। तेल महंगा होने से भारत के करंट अकाउंट पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। ग्लोबल फोरकास्टिंग एजेंसी ऑक्सफ़ोर्ड इकोनॉमिक्स ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में आगाह किया है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से लंबे समय तक ग्लोबल स्तर पर सप्लाई चैन की समस्या रहेगी और कमोडिटीज़ की कीमतें ऊंचे स्तर पर बने रहने का खतरा है। इस वजह से भारत में CPI (कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स) महंगाई दर बढ़कर 7% तक पहुंचने की आशंका ज्यादा बढ़ गई है।
सबसे ज्यादा चिंता खाद्य तेल को लेकर है क्योंकि सनफ्लॉवर ऑयल के ग्लोबल प्रोडक्शन का 33% यूक्रेन और 26% रूस में प्रोडक्शन होता है। जबकि दोनों देशों का कुल ग्लोबल एक्सपोर्ट्स में हिस्सेदारी 78% है। कमोडिटी एक्सपर्ट रवि सिंह ने NDTV से कहा, भारत में खाने-पीने के तेल का 17% इम्पोर्ट यूक्रेन से होता है। उसमे युद्ध के हालात की वजह से रुकावट हो रही है। इस वजह से 30% से 40% तक खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है. सरसों के तेल के दाम धीरे धीरे बढ़ते नज़र आ रहे हैं।
हालांकि भारत के लिए फिलहाल राहत की बात यह है किअंतराष्ट्रीय तेल बाजार में कच्चे तेल की कीमत 7 मार्च, 2022 को 139 डॉलर/बैरल से घटकर गुरुवार को 102 डॉलर/बैरल तक गिर गयी। भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें 4 नवंबर और दिल्ली में 1 दिसंबर के बाद से नहीं बदली हैं जबकि इस दौरान कच्चे तेल की कीमत करीब 25% से ज्यादा बढ़ी है। भारत का तेल आयात बिल बढ़ता जा रहा है, और Current Account Deficit पर दबाव भी। ज़ाहिर है, चाहे मसला कच्चे तेल के आयात से जुड़ा हो या खाद्य तेल से जुड़ा, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को लेकर बढ़ती अनिश्चितता की वजह से इसके आर्थिक असर से निपटने की चुनौती भारत के लिए बढ़ती जा रही है और इससे निपटने के लिए भारत सरकार को बड़े स्तर पर तैयारी करनी होगी।
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