नई दिल्ली। वैश्विक महामारी कोरोना (global pandemic corona) के चलते जहां मेडिकल क्षेत्र में तमाम चुनौतियां सामने आई हैं वहीं अब आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) की दिशा में एक प्रभावी कदम उठाया गया है। ‘मेक इन इंडिया’ के तहत देश को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रही मोदी सरकार (Modi Govt.) ने अब एक और सेक्टर को बूस्टर डोज (booster dose) देने का फैसला किया है। ये सेक्टर है मेडिकल डिवाइसेज (Medical Devices sector) का। हाल के समय में कोरोना महामारी के दौरान भारत ने वेंटिलेटर, RT-PCR किट, IR थर्मामीटर, PPE किट और N-95 मास्क जैसे चिकित्सा उपकरण बड़े पैमाने पर बनाकर दिखा दिया था कि वह न सिर्फ अपनी जरूरत के लिए बल्कि दूसरे देशों में निर्यात के लिए भी सामान बना सकता है।
अब सरकार ने मेडिकल उपकरणों के उत्पादन और अनुसंधान के क्षेत्र में भारत का अगुआ बनाने की रूपरेखा तैयार की है. इसके तहत लक्ष्य तय किया गया है कि मेडिकल डिवाइसेज के उत्पादन और तकनीक के मामले में भारत को 2047 तक दुनिया के टॉप 5 देशों में लाकर खड़ा कर दिया जाए। अगले 10 साल में मेडिकल उपकरणों पर आयात खर्च आधा कर दिया जाए।
खबरों के अनुसार केंद्र सरकार ने इस काम को मिशन मोड पर शुरू करने के लिए नेशनल मेडिकल डिवाइसेज पॉलिसी (National Medical Devices Policy) 2022 तैयार की है। रसायन व उर्वरक मंत्रालय के तहत आने वाले औषध विभाग (department of pharmaceuticals) ने इस पॉलिसी का मसौदा जारी करके लोगों से राय मांगी है। अभी भारत में मेडिकल डिवाइसेज का बाजार करीब 11 अरब डॉलर (845 अरब रुपये) का है, जिसमें ग्रोथ की अपार संभावनाएं हैं।
इस मसौदे के तहत लक्ष्य रखा गया है कि मेडिकल उपकरणों के 100 से 300 अरब डॉलर के अंतरराष्ट्रीय बाजार में 10 से 12 फीसदी तक की हिस्सेदारी हासिल की जाए, जो अभी 1.5 प्रतिशत है। मेडिकल टेक्नॉलजी में कम से कम 25 फ्यूचरिस्टिक अत्याधुनिक तकनीकें भारत में ईजाद की जाएं. कैंसर के इलाज, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई जैसी इमेजिंग तकनीक, मॉलिक्यूलर इमेजिंग और पीसीआर तकनीक से जुड़े अहम कंपोनेंट भारत में ही तैयार किए जाएं, जिनके लिए दूसरे देशों का मुंह ताकना पड़ता है इसके अलावा 50 ऐसे क्लस्टर बनाए जाएं जहां मेडिकल उपकरणों की तेजी से टेस्टिंग हो सके।
मेडिकल डिवाइस सेक्टर में किस तरह तेजी से ग्रोथ की जा सकती है, 38 पेज की पॉलिसी में इसका पूरा रोडमैप है। इसके तहत इनोवेशन, रिसर्च और प्रोडक्शन कैपिसिटी बढ़ाने पर फोकस रहेगा. ऐसी जांच सुविधाएं उपलब्ध कराने पर जोर दिया जाएगा, जिससे बीमारियों का जल्दी पता लग सके और लोगों को सटीक और सस्ता इलाज मिल पाए. पॉलिसी में बताए गए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इस क्षेत्र के विशेषज्ञ तैयार किए जाएंगे। इसके लिए हायर एजुकेशन लेवल पर अलग से विशेष पाठ्यक्रम तैयार करके अलग से पढ़ाई कराने का भी प्लान है। डॉक्टरों, टेक्निशियन, सर्विस इंजीनियर आदि को खासतौर से ट्रेनिंग देकर उनकी स्किल्स बढ़ाने की भी योजना है। सरकार ‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड’ इनीशिएटिव के तहत भारत को मेडिकल डिवाइसेज के मैन्यूफैक्चरिंग हब को तौर पर स्थापित करना चाहती है।
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