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    जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही डायल 100

  • March 12, 2022

    • महिलाओं से जुड़े अपराधों में भी 12 घंटे देरी से पहुंची
    • 87 फीसदी मामलों में समय पर नहीं पहुंच रही मदद

    भोपाल। प्रदेश में किसी भी अपराध या संकट की स्थिति में चंद मिनट के भीतर पुलिस की मदद पहुंचाने की मंशा से शुरू की गई डायल 100 ने सरकार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। कैग की रिपोर्ट में डायल-100 सेवा की पोल खुल गई है। रिपोर्ट के अनुसार दुष्कर्म, घरेलू हिंसा, महिला अपहरण जैसी गंभीर घटनाओं में एफआरवी (फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल) दल घटनास्थल पर 12 घंटे देरी से पहुंची। कैग ने 2016 से 2019 के दौरान की घटनाओं को लेकर असेसमेंट किया था। डायल-100 की परिकल्पना थी की एफआरवी दल डिस्पैचर से घटना की सूचना प्राप्त होने के बाद शहरी क्षेत्रों में 5 मिनट में और ग्रामीण क्षेत्रों में 30 मिनट के अंदर घटनास्थल पर पहुचेंगी। कैग ने असेसमेंट में पाया कि डायर 100 सिर्फ 13.2 प्रतिशत मामलों में ही 5 मिनट में घटनास्थल पर पहुंची। कई मामलों में गाड़ी आधे घंट से लेकर 12 घंटे देरी से पहुंची। खास बात यह है कि 49 प्रतिशत घटनाओं में यह असेसमेंट किया गया। 51 प्रतिशत घटनाओं में डिस्पैच या एफआरवी को घटनाओं की जानकारी नहीं मिली।


    इन कारणों से हुई देरी
    जनवरी 2018 से सितंबर 2020 के दौरान 1 से 8 प्रतिशत एफआरवी ऑफ रोड थीं। 49, 500 एफआरवी दिवसों में से 29, 527 दिन अनुपलब्ध रहीं। जनवरी-फरवरी 2021 में 8 जिलों के भौतिक सत्यापन के दौरान पाया कि 274 एफआरवी में से 67 ऑफ रोड थीं।

    कंपनी को पहुंचा अनुचित लाभ
    गृह विभाग ने प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट (परियोजना प्रबंधन सलाहकार) के चयन के लिए दोबारा से निविदा जारी की। इसमें चार बिडर शामिल हुए। इसमें से दो योग्य पाए गए। केंद्रीय क्रय समिति ने मेसर्स पीडब्ल्यूसी प्राइवेट लिमिटेड को ठेका दिए जाने की सिफारिश की, लेकिन डीजीपी ने तय मानदंड को स्कोर कार्ड से हटा दिया। ऐसे में 100 कुल को प्रभावी रूप से 100 से 85 कर दिया। ऐसा करने से मेसर्स ग्रांट थॉर्नटन को इसका ठेका चला गया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि डीजीपी ने बोलियों के प्राप्त होने के बाद क्वालीफाइंग क्राइटेरिया को कम करने को संदिग्ध बताते हुए दूसरी कंपनी को अनुचित लाभ दिया। वहीं, डीजीपी को महसूस हुआ कि मानदंड वैध नहीं है, तो उन्हें प्रकरण को तकनीकी मूल्यांकन के दौरान ढील देने से वापस भेजना चाहिए। था या फिर क्रय समिति को दोबारा विचार करने के लिए भेजना चाहिए था। यह तर्क दिया कि डीजीपी के निर्णय से 1.19 करोड़ की बचत हुई है।

    बिना डीपीआर के किया कंपनी का चयन
    सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के इंटरवेशन और उद्यम संसाधन योजना समाधान सहित डायल 100 के प्रोजेक्ट के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट(डीपीआर) एवं प्रस्ताव के लिए मुंबई की मेसर्स केपीएमजी एडवाइजरी सर्विस लिमिटेड को बतौर कंसल्टेंट 6 महीने के लिए नियुक्त किया गया। इसके लिए 1 करोड़ का भुगतान भी किया गया। इसने आरएफपी का मसौदा जून 2014 में प्रस्तुत किया। लेकिन विभाग ने डीपीआर आने से पहले सिस्टम इंटीग्रेटर के लिए सितंबर 2014 में निविदा जारी की गई। सिस्टम इंटीग्रेटर के चयन में भी अनियमितता पाई गई है। इसमें बीवीपी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का चयन किया गया था और मई 2015 में सिस्टम इंटीग्रेटर के लिए ठेका दिया गया। डीपीआर बनाने के लिए तैनात की गई कंसल्टेंट कंपनी 2009-19 के दौरान विभाग द्वारा चयनित कंपनी के लेखापरीक्षक थे। लेकिन केपीएमजी ने इस हित के टकराव की जानकारी नहीं दी। शासन ने भी बात स्वीकार की और कहा कि चयन के समय केपीएमजी विभाग का सलाहकार नहीं था।

     

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