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    यूक्रेन विवाद से भारत की लोकतंत्रात्मक छवि बिगाड़ने का अंतरराष्ट्रीय एजेंडा उजागर

  • March 06, 2022

    – डॉ. विश्वास चौहान

    आपको स्मरण होगा विगत मार्च 2021 में अमरीका एवम यूरोप की कुछ भारत विरोधी कथित वामपंथी ताकतों के द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय एजेंडे के तहत भारत के बारे में दुष्प्रचार करते हुए कहा था कि “दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत एक निर्वाचित निरंकुशता में बदल गया है.”

    दरअसल यह बात स्वीडन की वी-डेम इंस्टीट्यूट की तत्कालीन रिपोर्ट में भारत के बारे में कही गई थी . इन्हीं तथ्यों के साथ यही बयान अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस ने भी कही थी, इस अमेरिकी रिपोर्ट में भारत को ‘स्वतंत्र लोकतंत्र’ की श्रेणी से हटाकर ‘आंशिक तौर पर स्वतंत्र लोकतंत्र’ की श्रेणी में डाल दिया गया था ।

    विदित हो कि वी-डेम और फ़्रीडम हाउस दोनों ही कथित कूटनीतिक या वामपंथी शौध संस्थान हैं और उनकी रिपोर्टों पर दुनिया भर में चर्चा होती है. इन रिपोर्ट के आधार पर भारत लोकतंत्र के बारे में पूरे विश्व मे इतना शोर मचाया गया कि भारत की ओर से इन प्रोपगण्डा रिपोर्ट पर प्रत्युत्तर में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दौरान एक वार्ता में बीजेपी के वरिष्ठ नेता राम माधव को सामने आकर इन दोनों रिपोर्टों पर अपनी राय को रखना पड़ा था ।

    इसी तारतम्य में नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम के निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने भी उस समय इन रिपोर्ट्स का खण्डन करते हुए कहा था कि इन रिपोर्ट्स के विश्लेषणों में यह मानना ही होगा कि रिपोर्ट्स में शुरू से ही मोदी सरकार के बारे में एक निश्चित लक्षित नकारात्मकता है.

    उसी दौरान भारत के विदेश मंत्री जयशंकर जी ने भी कहा था कि “हमारी आस्थाएँ हैं, मूल्य हैं, लेकिन हम धार्मिक पुस्तक हाथ में लेकर पद की शपथ नहीं लेते, ऐसा करने वालों (यूरोप एवम अमेरिका) से भारत को सर्टिफ़िकेट लेने की ज़रूरत नहीं है.” भारतीय लोकतंत्र की आलोचना कर भारत को कटघरे में खड़ा करने वालों की पोल रूस यूक्रेन युद्ध में खुल गयी है अब भारत के लोकतंत्र को लेकर इनके प्रोपगंडे का स्वयं इन लोगों ने ही चीर हरण कर लिया है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर नग्न खड़े दिख रहे हैं ।

    रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर सुरक्षा परिषद में हुई वोटिंग को लेकर, पश्चिमी देशों के विश्लेषकों, समाचार पत्रों तथा राजनयिकों ने भारत की पोज़ीशन की आलोचना करते हुए अब खुद भारत को स्वतन्त्र लोकतंत्रात्मक देश बताया है । वैश्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ समाचार पत्रों में लिखा गया कि यूएनओ की सुरक्षा परिषद में रूस यूक्रेन विवाद पर वोट के दौरान भारत द्वाराअपने आप को अनुपस्थित रजिस्टर करना उन देशों के लिए एक चेतावनी है जो भारत को एक लोकतांत्रिक देश के रूप में देखते हैं।

    इनमें से कुछ विश्लेषक अमेरिका एवं यूरोप के टॉप थिंकटैंक तथा समाचारपत्रों के लिए कार्य करते हैं। कुछ राजनयिक शक्तिशाली देशों के राजदूत रह चुके हैं या अभी भी राजदूत के रूप में कार्य कर रहे हैं। एक नाम का विशेष उल्लेख ये हैं , श्रीमान रिचर्ड हास – जो सर्वाधिक प्रभावशाली अमरीकी थिंकटैंक ‘काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस’ के पिछले लगभग 20 वर्ष से अध्यक्ष हैं – इनकी आलोचना, या धमकी कहिए, कि एक लोकतंत्रात्मक देश होने के नाते भारत एक प्रमुख शक्ति राष्ट्र या एक भरोसेमंद भागीदार बनने के लिए तैयार नहीं है जो चीन के उदय को देखते हुए एक निराशाजनक और अदूरदर्शी कदम है।

    अब रिचर्ड हास सहित स्वीडन के वी-डेम और अमरीकी फ़्रीडम हाउस की भारतीय लोकतंत्र के बारे में अनाप शनाप लिखने वालों से एक भारतीय होने के नाते हमारे कुछ प्रश्न हैं , जिनका जवाब भारत के नागरिकों को इनसे पूछना ही चाहिए । पहला प्रश्न ये है कि पिछले कुछ माह पहले तक यही विश्लेषक भारत के लोकतंत्र की आलोचना कर रहे थे। कुछ ने तो यहाँ तक लिख दिया कि भारत अब लोकतांत्रिक देश रहा ही नहीं। वही लोग अब भारत के लोकतंत्र की दुहाई क्यों दे रहे हैं ?

    दूसरा प्रश्न यह है कि आम भारतीय यह समझ रहा है कि भारत की आलोचना या समर्थन से रूस-यूक्रेन विवाद में कोई बदलाव नहीं होने जा रहा है। फिर अमेरिका तथा युरोप भारत विरोधी ताकतें भारत की पोजीशन के लेकर इतने व्यथित क्यों हैं? तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आखिरकार सुरक्षा परिषद में एशिया के सभी तीन सदस्य देशो – भारत, चीन, एवं यूएई- ने भी वोट के समय अपने आप को अनुपस्थित रजिस्टर कराया। लेकिन इन्ही महानुभावों ने चीन एवं यूएई को लेकर कोई आलोचना अभी तक क्यों नहीं की है ।

    विदित हो कि यह सभी विश्लेषक, समाचार पत्र तथा राजनयिक किसी प्रभाव में – जिसे भारतीय मीडिया से इतर अंतरराष्ट्रीय मीडिया माफिया के द्वारा समन्वय भी कहा जा सकता है – अगस्त 2019 से संगठित रूप से भारतीय लोकतंत्र की आलोचना कर रहे थे। यहाँ तक कि कुछ थिंकटैंक ने भारत को “आंशिक लोकतंत्र”, “त्रुटिपूर्ण (flawed) लोकतंत्र” भी घोषित कर दिया था। लेकिन एकाएक इन लोगो को याद आ गया कि भारत एक लोकतंत्र है। कारण यह है कि अगर हम एशिया का मानचित्र देखे, तो इजराइल और जापान के बीच में केवल भारत ही वास्तविक अर्थों में एक लोकतान्त्रिक देश के साथ साथ एक आर्थिक एवं सैन्य शक्ति भी है।

    विश्व में अब किसी भी सैन्य या आर्थिक शक्ति का वर्चस्व नहीं है। इस समय का अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य बहुध्रुवीय है जिसमे अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे राष्ट्र ही प्रभावी सैन्य शक्ति – जल-थल-नभ-डिजिटल – का अभियान चला सकते है। अभी तक यह राष्ट्र अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, माली, सीरिया जैसे देशो में अपना शक्ति प्रदर्शन करते रहते थे। लेकिन अब ब्रिटेन एवं फ्रांस के सैनिक किसी अन्य राष्ट्र में शांति स्थापित करने के लिए अपनी जान माल संसाधन लगाने को तैयार नहीं है। और यह भी तथ्य है कि लोकतान्त्रिक पश्चिमी राष्ट्र रूस एवं चीन की सैन्य शक्ति की मदद लेंगे नहीं।

    वस्तुत: ले देकर एक भारत बचता है; अगर वह भी न्यूट्रल या “अनुपस्थित” हो गया तो पश्चिम के शक्तिशाली देशो के झगड़े को सुलझाने के लिए कौन अपनी सैन्य शक्ति लगाएगा? अतः अब भारत के लोकतंत्र पर आक्षेप के बजाय विश्व की कथित स्वयम्भू शक्तियों को वैश्विक संस्थाओ (यूएनओ , सुरक्षा परिषद इत्यादि ) और इनके बायलॉज में विश्व हित मे संशोधन, निरसन या परिवर्तन करने पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए ।

    वास्तव के अंदर वर्तमान मोदी सरकार के नए भारत ने भारत मे आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत किया है साथ ही अपनी वैश्विक भूमिका एवम महत्व में वृद्धि भी की है । यह तथ्य सारे विश्व को समझ मे आ गया है । भारत की सरकार वैश्विक मसलों पर बहुत समझदारी से देश की जनता के हित मे कार्य करती दिख रही है ।

    (लेखक – अंतरराष्ट्रीय विधि के प्रोफेसर होने के साथ ही प्रशासनिक सदस्य ,मप्र निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग भोपाल हैं।)

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