नए शोधों और क्लीनिकल ट्रायल्स से पता चला है कि प्रोबायोटिक (Probiotic) शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ाते हैं और विभिन्न बीमारियों खासतौर से वायरल संक्रमण के इलाज में मदद कर सकते हैं. प्रोबायोटिक, प्रतिरोधक प्रणाली (Immune System) को स्वस्थ बनाए रखते हैं. जानवरों पर किए गए परीक्षणों से पता चला है कि प्रोबायोटिक न सिर्फ रेस्पेरेटरी वायरल इन्फेक्शन के बाद उन्हें शारीरिक क्षति से उबरने में मदद करता है बल्कि फेफड़ों (Lungs) में वायरल लोड कम कर उनके ज़िंदा रहने की दर को भी बढ़ाता है.
न्यूट्रिशन रिसर्च जनरल में प्रकाशित इसी तरह के एक अध्धयन में मनुष्यों में भी वायरल संक्रमण रोकने में प्रोबायोटिक के उपयोग के साक्ष्य सामने आए हैं. उन्होंने प्रोबायोटिक स्ट्रेनस की एक सूची तैयार की है जो संक्रमण को रोकने और उसके प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं. खासतौर से COVID-19 में इंसानों पर हुए इस अध्ययन में पाया गया है कि प्रोबायोटिक्स सामान्य सर्दी और फ्लू से 50 प्रतिशत तक बचाव कर सकते हैं. इससे पता चलता है कि प्रोबायोटिक्स श्वसन संक्रमण के खिलाफ सुरक्षित और प्रभावित हैं.
ऐसे का करते हैं प्रोबायोटिक
प्रोबायोटिक शरीर में जीवित अच्छे सूक्ष्मजीव होते हैं, जिनका सेवन शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या बढ़ा देता है और पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है. फोर्टिस अस्पताल के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी और हेप्टोलॉजी विभाग के निदेशक डॉक्टर रविंद्र बीएस ने टीवी 9 को बताया कि हम बैक्टीरिया को बीमारियों का कारण मानते हैं, लेकिन मानव शरीर अच्छे और बुरे दोनों तरह के बैक्टीरिया से भरा होता है. प्रोबायोटिक को अच्छा या सहायक बैक्टीरिया कहा जाता है. ये आपकी आंतों को स्वस्थ रखने में मदद करता है. ये आंतों की ग्रंथियों को बेहतर ढंग से काम करने में सहायता करते हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब शरीर अच्छे बैक्टीरिया को खो देता है, तब एंटीबायोटिक लेने के बाद, प्रोबायोटिक उन्हें अच्छे बैक्टीरिया में बदलने में मदद कर सकते हैं. वो अच्छे और बुरे बैक्टीरिया का बैलेंस बना सकते हैं, जिससे आपका शरीर सुचारु रूप से काम कर सके.
प्रोबायोटिक, COVID-19 के खिलाफ संभावित उपचार
COVID-19 भी असंतुलन से जुड़ी बीमारी है, जिसके कारण आंत में बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है, लंबी बीमारी के बाद यह म्यूकोसा में वायरल लोड बढ़ा देता है, जिसके कारण पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं करता. ऐसे में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना इस बीमारी के लिए एक अच्छा इलाज हो सकता है.
प्रोबायोटिक इसे पूरा करने के लिए उपयोगी साबित हो सकता है. COVID-19 में ऐसे प्रोबायोटिक की सहायता से श्वसन प्रणाली में संक्रमण को एपिथेलियल सतह से जोड़कर कम किया जा सकता है. ये एपिथेलियल सेल रिसेप्टर्स को स्टेरिक इफेक्ट (नॉन बॉन्डिंग इंटरैक्शन) द्वारा वायरस से दूर रखता है. साथ ही अच्छे माइक्रोऑर्गेनिज्म को बढ़ा कर यह पाचन तंत्र को ठीक करता है, मल्टिपल पेप्टाइड्स और दूसरे मॉलिक्यूल्स को रिलीज़ करके वायरल को बढ़ने से रोक सकता है.
डॉ बीएस ने इस बात से सहमति जताते हुए कहा कि अभी ऐसे कुछ ट्रायल चल रहे हैं जो ये बताते हैं कि COVID-19 श्वांस, आंतों और लिवर की कोशिकाओं को प्रभावित करता है, जिससे इन अंगों में सूजन आना सबसे बड़ी समस्या है. प्रोबायोटिक इस सूजन को कम करते हैं. ऐसा नहीं है कि प्रोबायोटिक के इस्तेमाल से COVID-19 से होने वाली सभी समस्याएं ख़त्म हो जाएगी. सभी प्रोबायोटिक एक जैसे नहीं होते, अलग-अलग स्ट्रेन के बैक्टीरिया का प्रभाव भी अलग होता है. उदाहरण के लिए जैसे एक स्ट्रेन हमारे मुंह में केविटी पैदा करने वाले जीवाणु के खिलाफ लड़ सकता है, हमारे पाचन तंत्र को उसकी ज़रूरत नहीं होती. बहुत सारे प्रोबायोटिक हैं, लेकिन जिसका उपयोग इस बीमारी के लिए किया जाए, उसे अभी विकसित ही किया जा रहा है.
प्रोबायोटिक डायरिया के इलाज में सबसे उपयोगी रहा
डायरिया, लिवर रोग, फ़ैट्टी लिवर, बॉवेल सिंड्रोम यहां तक कि पैंक्रियाज के इलाज में भी प्रोबायोटिक थेरेपी का इस्तेमाल हो रहा है. डॉ बीएस ने कहा कि डायरिया में प्रोबायोटिक थेरेपी सबसे ज़्यादा फायदेमंद रही है. शोधों से पता चला है कि लेक्टोबेसिलस जीजी, शिशुओं और बच्चों (लेकिन वयस्कों में नहीं) में बार-बार होने वाले दस्त को कम कर सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि प्रोबायोटिक्स मूल रूप से तीन तरह से काम करते हैं, ये बीमारी से प्रभावित क्षेत्र को कम करते हैं, उससे होने वाले दर्द और सूजन को भी इनकी मदद से कम किया जा सकता हैं.
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