वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (US President Joe Biden) ने यूक्रेन (Ukraine) पर रूसी आक्रमण (Russian invasion) का मुकाबला करने के लिए भारी कूटनीतिक पूंजी खर्च की है। बाइडेन प्रशासन ने लगातार यह चेतावनी दी कि रूस किसी भी वक्त यूक्रेन पर हमला कर सकता है, और यह भी कहा कि ऐसा होने पर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था खतरे (international order threats) में आ जाएगी। अंतत: अमेरिका की चेतावनी सही साबित हुई और रूस ने 24 फरवरी की सुबह यूक्रेन पर हमला कर दिया।
लेकिन बाइडेन ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिकी युद्ध लड़ने को तैयार नहीं हैं। भले ही रूसी की ओर से स्पष्ट रूप हैं। इसके अलावा, उन्होंने अमेरिकी नागरिकों को बचाने के लिए यूक्रेन में सेना भेजने से इनकार कर दिया है. वास्तव में जो बाइडेन ने उन सैनिकों को भी यूक्रेन से हटा लिया है जो वहां सैन्य सलाहकार और मॉनिटर के रूप में सेवाएं दे रहे थे।
उन्होंने अपने कार्यकाल के संभवत: इस सर्वाधिक बड़े विदेश नीति संकट में अमेरिका के लिए यह लाल रेखा क्यों खींची है? आइए समझते हैं…
राष्ट्रीय हित से जुड़े किसी मुद्दे का न होना
दरअसल, यूक्रेन अमेरिका का पड़ोसी देश नहीं है. यूक्रेन से अमेरिका की सीमा नहीं लगती. यूक्रेन के पास तेल के भंडार नहीं हैं और न ही उसके साथ अमेरिका का बहुत बड़ा व्यापारिक हित जुड़ा है, क्योंकि दोनों देशों के बीच आयात और निर्यात का आकार बहुत सीमित है. लेकिन जो बाइडेन से पूर्व के राष्ट्रपतियों ने बहुत ऐसे देश थे जिनके साथ राष्ट्रहित नहीं जुड़े होने के बावजूद युद्ध में जमकर अमेरिकी खून (सैनिकों की जान) और खजाना खर्च करने से खुद को नहीं रोका।
बिल क्लिंटन ने 1995 के युद्ध में सैन्य हस्तक्षेप किया जो बाद में यूगोस्लाविया के पतन का कारण बना. वहीं 2011 में बराक ओबामा ने लीबिया के गृहयुद्ध में वही किया, जो बड़े पैमाने पर मानवीय और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए उठाया गया कदम था. जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश ने 1990 में कुवैत से इराक को बाहर खदेड़ने के लिए अपने अंतरराष्ट्रीय गठबंधन को उचित ठहराया, जिसे उन्होंने जंगल राज के खिलाफ कानून के शासन की रक्षा के लिए उठाया गया कदम बताया था।
जो बाइडेन प्रशासन के शीर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों ने शांति और सुरक्षा के अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के लिए रूस को खतरा बताते हुए बराक ओबामा प्रशासन की भाषा का ही इस्तेमाल किया है, लेकिन बाइडन प्रशासन रूस के खिलाफ सैन्य अभियान नहीं बल्कि गंभीर प्रतिबंधों के माध्यम से आर्थिक युद्ध की के रूप में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है।
जो बाइडेन को सैन्य हस्तक्षेप से परहेज है
दरअसल, इस तरह की प्रतिक्रिया का संबंध राष्ट्रपति जो बाइडेन की गैर-हस्तक्षेपवादी प्रवृत्ति से जुड़ा है, जो समय के साथ विकसित हुआ है. बाइडेन 1990 के दशक में बाल्कन रीजन में पनपे जातीय संघर्ष से निपटने के लिए अमेरिकी सैन्य कार्रवाई का समर्थन कर चुके हैं। उन्होंने 2003 में इराक पर अमेरिका के दुर्भाग्यपूर्ण आक्रमण के पक्ष में मतदान किया. लेकिन, उसके बाद से वह अमेरिकी सैन्य शक्ति का उपयोग करने के लिए अधिक सावधान हो गए हैं।
उन्होंने लीबिया में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के सैन्य हस्तक्षेप के निर्णय, साथ-साथ अफगानिस्तान में सैनिकों की संख्या बढ़ाने का विरोध किया था. वह पिछले साल अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को वापस बुलाने के अपने आदेश का दृढ़ता से बचाव करते आ रहे हैं. हालांकि, उनके इस फैसले के बाद अफगानिस्तान में तालिबान ने खूब अराजकता फैलाई और मानवीय तबाही का मंजर दिखा।
जो बाइडेन प्रशासन के शीर्ष राजनयिक और वर्तमान विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन कहते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मतलब जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना, वैश्विक बीमारियों से लड़ना और चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के बारे में अधिक है, न की सैन्य हस्तक्षेप. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एंटनी ब्लिंकन, बाइडेन के साथ करीब दो दशक से उनके सहयोगी के रूप में कार्य करते आ रहे हैं और वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति की विदेश नीति तैयार करने में उनकी अहम भूमिका रही है।
अमेरिकी नहीं चाहते कि उनका देश युद्ध लड़े
हाल ही में AP-NORC के सर्वे में यह बात निकलकर सामने आई कि 72% अमेरिकी चाहते हैं कि रूस-यूक्रेन संघर्ष में जो बाइडेन प्रशासन को एक छोटी भूमिका निभानी चाहिए, या फिर इस मुद्दे से खुद को बिल्कुल बाहर कर लेना चाहिए। दरअसल, वर्तमान अमेरिकी सरकार का ध्यान अर्थव्यवस्था पर ज्यादा है, विशेष रूप से बढ़ती महंगाई पर. अमेरिका में मध्यावधि चुनाव होने वाले हैं और जो बाइडेन को इसका ध्यान रखना होगा।
यूक्रेन संकट को लेकर वॉशिंगटन में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दोनों दलों के सांसद कन्फ्यूजन में हैं. एक पक्ष रूस के खिलाफ सख्त प्रतिबंधों की मांग कर रहा है, लेकिन रिपब्लिकन सीनेटर टेड क्रूज नहीं चाहते की जो बाइडेन अमेरिकी सैनिकों को यूक्रेन में भेजें और पुतिन के साथ युद्ध शुरू करें. विदेश नीति के एक अन्य जानकर, रिपब्लिकन सीनेटर मार्को रुबियो ने कहा है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी परमाणु शक्तियों के बीच युद्ध किसी के लिए भी अच्छा नहीं होगा. दो महाशक्तियों के बीच टकराव का खतरा, लब्बोलुआब यह है कि पुतिन के पास परमाणु हथियारों का भंडार है।
जो बाइडेन यूक्रेन में अमेरिकी और रूसी सैनिकों के बीच सीधे टकराव का जोखिम लेकर “विश्व युद्ध” नहीं छेड़ना चाहते हैं और वह इसके बारे में खुलकर बोल भी रहे हैं. रूस को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस महीने की शुरुआत में एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था, “ऐसा नहीं है कि हम एक आतंकवादी संगठन के साथ डील कर रहे हैं, बल्कि हम दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक के साथ डील कर रहे हैं. यह एक बहुत ही कठिन स्थिति है, और जल्दीबाजी में चीजें बहुत ज्यादा खराब हो सकती हैं.”
अमेरिका के सामने किसी संधि की मजबूरी नहीं
अमेरिका ऐसी किसी संधि में भी नहीं बंधा है जो उसे यह जोखिम उठाने के लिए बाध्य कर रही हो. किसी भी नाटो देश के खिलाफ हमला सभी के खिलाफ हमला है, नाटो संविधान के अनुच्छेद 5 की प्रतिबद्धता, जो सभी सदस्यों को एक दूसरे की रक्षा करने के लिए बाध्य करती है. यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है, यह एक ऐसा कारण जिसे एंटनी ब्लिंकन यह समझाने के लिए बार-बार कोट करते हैं कि अमेरिकी उन मूल्यों के लिए क्यों नहीं लड़ रहा, जिनका वह जोरदार तरीके से पक्ष लेता आया है।
लेकिन इसमें एक विडंबना भी है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नाटो से मांग है कि यूक्रेन को कभी भी इस सैन्य गठबंधन में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी, इसकी गारंटी दी जाए. लेकिन नाटो रूस को यह गारंटी देने से इनकार करता है. यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के पीछे यह सबसे बड़ी वजहों में से एक है. राष्ट्रपति बाइडेन वास्तव में यूरोप में अपनी सेना भेज रहे हैं और यूक्रेन और रूस की सीमा से लगे नाटो सहयोगियों को मजबूत करने के लिए वहां पहले से मौजूद सैनिकों को फिर से तैनात कर रहे हैं।
जो बाइडने प्रशासन द्वारा यह कदम पूर्व सोवियत गणराज्यों को आश्वस्त करने के प्रयास के रूप में उठाया गया है, जो पुतिन के नाटो पर अपने पूर्वी हिस्से से सेना को वापस लेने के लिए दबाव बनाने के व्यापक लक्ष्य से घबराए हुए हैं. लेकिन इस सप्ताह यूक्रेन पर हुए आक्रमण ने व्यापक संघर्ष की संभावना की चिंताओं को जन्म दिया है, जो रूस द्वारा जानबूझकर किया गया हमला है। रूस की सीमा से लगे नाटो देशों में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती एक बड़े टकराव को जन्म दे सकती है, जो अमेरिकी सेना को यूक्रेन और रूस की जंग में खींच सकता है।
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