इंदौर। वाणिज्यकर विभाग (Department of Commerce) ने एक बड़ा जीएसटी घोटाला पकड़ा है, जिसमें 315 करोड़ रुपए का फर्जीवाड़ा किया गया। दरअसल सरकारी खजाने में जमा टैक्स की राशि को फर्जी बिलों के जरिए वापस हड़पने का काम किया गया। विभाग ने पहली बार आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (artificial intelligence) का इस्तेमाल करते हुए इस गड़बड़ी को पकड़ा है। इस मामले में बोगस फर्मों की जानकारी सामने आई है, जो कि पूरी तरह से कागजी ही है। यानी इनके व्यवसायिक स्थलों पर दर्शाई गई कोई गतिविधियां संचालित (Activities Conducted) नहीं पाई गई। विभाग के एंटी विजन ब्यूरो ने यह कार्रवाई की। जांच के दायरे में कर सलाहकार, चार्टर्ड एकाउंटेंट सहित संभव है कि विभागीय अधिकारी भी आएं।
फर्जी बिल जारी कर फर्मों को आईटीसी पासऑन (ITC Passon) जारी करने वाले बोगस व्यापारियों के खिलाफ विभाग इन दिनों अभियान चला रहा है। स्टेट जीएसटी एंटी इवेजन ब्यूरो इंदौर-ए के अधिकारियों ने डाटा एनालिसिस (data analysis) कर बोगस फर्मों की सप्लाय चैन को पकड़ा, जो करोड़ों रुपए का बोगस टर्नओवर कर रहे थे।
वाणिज्यकर आयुक्त लोकेश जाटव ने बताया कि इस पूरे मामले में 315 करोड़ का जीएसटी फर्जीवाड़ा (GST fraud) सामने आया है। एंटी इवेजन ब्यूरो के मनोज चौबे के मुताबिक कूटरचित किरायेनामे (forged rental deed) का भी इस्तेमाल किया गया और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जियो टैगिंग व व्यवसायिक स्थलों के परीक्षण से पता चला कि इस तरह की कोई व्यवसायिक गतिविधि संचालित ही नहीं की जा रही है। माल वास्तविक रूप प्रदाय किए बिना ही फर्जी बिलों के आधार पर अन्य व्यवसायियों को आईटीसी का लाभ दिया गया और पंजीयन में भी दर्शाए दस्तावेजों में गड़बडिय़ां पाई गई। इंदौर सहित नीमच की कई फर्मों पर एक साथ छापामार कार्रवाई की गई, जिसमें ये फर्में बोगस यानी कागजों पर ही संचालित मिली।
रिटर्न में डीओसी की 315 करोड़ की सप्लाय दर्शाकर 15 करोड़ रुपए का बोगस आईटीसी लाभ (Bogus ITC benefits) अन्य फर्मों को दिया गया। बोगस फर्मों में श्रीनाथ सोया एक्सिम कॉर्पोरेट, श्री वैभव लक्ष्मी इंडस्ट्रीज, अग्रवाल ऑर्गेनिक – अग्रवाल ओवरसीज, जे.एस भाटिया इंटरप्राईजेस इत्यादि है। इन फर्मों पर की गई कार्रवाई में व्यवसाय स्थल पर किसी भी प्रकार की व्यवसायिक गतिविधियाँ संचालित होना नहीं पायी गयी। इनमें से मेसर्स श्रीनाथ सोया एक्सिम कॉपोरेट फर्म एक ऑटो चालक सचिन पटेरिया के नाम पर संचालित हो रही थी, जिसके पंजीयन के समय आवेदन के साथ कूटरचित किरायेनामा संलग्न था। जिसके मकान मालिक की मृत्यु कई वर्ष पूर्व में ही हो चुकी है, जबकि किराये नामे पर मृत व्यक्ति के फर्जी हस्ताक्षर थे।
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