नई दिल्ली। भारत (India) की तुलना में यूक्रेन के निजी मेडिकल कॉलेजों (Private Medical Colleges of Ukraine) में एजुकेशन (education is cheap) काफी सस्ती है। न तो दाखिले के लिए कोई कंप्टीशन और न ही नंबर प्रतिशत का दबाव है। यही वजह है कि देश के विभिन्न प्रदेशों के छात्र यूक्रेन में रहकर एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं। फिलहाल यूक्रेन में फंसे जिले के छात्रों के परिजन उनकी सलामती और वतन वापसी की दुआ कर रहे हैं।
देश के निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की फीस काफी अधिक है। अस्सी लाख से लेकर एक करोड़ तक फीस है। ये फीस हर अभिभावक वहन नहीं कर सकता है। इसके विपरीत यूक्रेन के निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई करीब 40 फीसदी कम है। इसके अलावा दाखिले के लिए कोई टेस्ट भी नहीं होता है। नंबर प्रतिशत भी दाखिले में आड़े नहीं आता है।
कम फीस अभिभावकों की जेबों पर पड़ने वाले बोझ को कम कर देता है। दाखिले की आसान प्रक्रिया छात्रों की राहें भी आसान कर कर देती है। अभिभावक अधिक खर्च और छात्र कंप्टीशन से बच जाते हैं। यही दोनों वजह छात्रों को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए यूक्रेन जैसे देशों में में खींच ले जाती है।
देश के निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई अधिक महंगी है। यहां सत्तर से अस्सी लाख खर्च होते हैं। वह भी बहुत अच्छे मेडिकल कॉलेज नहीं होते हैं। यूक्रेन में चालीस से पचास लाख में ही पढ़ाई हो जाती है।
-प्रदीप सक्सेना, अभिभावक
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देश में निजी मेडिकल कॉलेज की तुलना में यूक्रेन के मेडिकल कॉलेजों में एजुकेशन सस्ती है। फीस में करीब दोगुने का अंतर है। नीट जैसी परीक्षा भी नहीं देनी होती है। नंबरों का भी कोई दबाव नहीं होता है।
-डॉ. पल्लव अग्रवाल, नेत्र रोग विशेषज्ञ
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छोटा बैग पैक कर छात्र तैयार, गहराने लगा खाने का संकट
यूक्रेन में फंसे जिले के सात एमबीबीएस के छात्रों समेत 11 लोगों के परिजन उनकी सलामती जानने में लगे रहे। छोटा बैग पैक कर छात्र देश वापसी को तैयार हैं। छात्रों को ट्रांसपोर्ट और अपने खर्च के लिए 300 डॉलर रखने को गया गया है। वहीं, यूक्रेन में छात्रों के समक्ष खाने का संकट गहराने लगा है, जिसे लेकर छात्रों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
टर्नोपिल में एमबीबीएस के छात्र देहरी गांव निवासी सजल सरकार, चक्कर की मिलक निवासी अमान, वीन्नित्स्या में अवंतिका कॉलोनी निमिष सक्सेना, रामगंगा विहार फेस वन निवासी देवांश जौहरी पुत्र राकेश जौहरी, पाकबड़ा के नगला बलवीर निवासी मोहम्मद फैज यूक्रेन में फंसे हैं। छात्रों के परिजनों के मुताबिक शुक्रवार सुबह साढ़े चार बजे तीन बार सायरन बजाकर छात्रों को बंकर में भेज दिया गया। करीब डेढ़ घंटे छात्रों को बंकर में रखा गया। इसके बाद सभी हॉस्टल भेज दिया गया।
आज छात्रों के निकलने की उम्मीद
यूक्रेन के टर्नोपिल में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे मंगूपुरा निवासी मोहम्मद अरहम के पिता शाकिर हुसैन ने बताया कि शुक्रवार को कुछ छात्र वहां से निकले हैं। अरहम भी निकलना चाह रहा था। बिना एंबेसी के इजाजत के उसे निकलने से मना कर दिया गया है। छात्रों को एक छोटा बैग पैक कर तैयार रहने को कहा गया था। साथ ही तीन सौ डॉलर भी रखने का कहा गया है। 200 डॉलर ट्रांसपोर्ट खर्च और 100 डॉलर अपने खर्च के लिए रखना होगा। शनिवार को बसें आएंगी तो छात्रों को निकाला जाएगा।
बात करके मिल रही तसल्ली, हर घंटे बदल रहा प्रोग्राम
अवंतिका कॉलोनी निवासी प्रदीप सक्सेना ने बताया कि यूक्रेन में फंसे बेटे निमिष से लगातार वीडियो कॉलिंग पर बात हो रही है। बात करके उसका हाल जान दिल को तसल्ली मिल रही है। सुबह तीन बार सायरन बजाय गए। इसके बाद छात्र बेसमेंट (बंकर) में चले गए। यहां डेढ़ घंटे छात्रों को रखा गया। छात्रों को हंगरी के रास्ते भारत लाने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए स्टेशन के पास बस लगाई गई है। बेटे ने बताया कि यहां हर घंटे प्रोग्राम बदल रहा है। उसके अनुसार ही तैयारी की जा रही है।
20 से 25 किमी पैदल चलकर पहुंच रहे एयरपोर्ट
टर्नोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र पाकबड़ा के गांव नंगला बलवीर निवासी मोहम्मद फैज ने बताया कि यूक्रेन सरकार ने अपने घरों और हॉस्टल की लाइट जलाने पर पाबंदी लगा दी है। विवि के डॉयरेक्टर ने बताया कि सभी को बारी बारी से भेजा जाएगा। पहले सीनियर को भेज रहे हैं। बसों को बॉर्डर से आगे जाने नहीं दिया जा रहा है। बॉर्डर से 20 से 25 किमी पैदल चलकर एयरपोर्ट पहुंचना पड़ रहा है। खतरा लगातार बना हुआ है।
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