इंदौर। दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने नए भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 24 (2) की स्पष्ट व्याख्या कर दी थी। इसके चलते इंदौर विकास प्राधिकरण की भी लॉटरी लग गई और हजारों करोड़ की बेशकीमती जमीन, जो रसूखदार और माफिया मिलकर हड़प करना चाहते थे, उनका खेल चौपट हो गया। कल इंदौर हाईकोर्ट ने कुमेड़ी की 18 एकड़ की जमीनों के संबंध में आधा दर्जन याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर ही जमीन मालिकों की खारिज कर दी और जल्द ही अन्य याचिकाओं पर भी इसी तरह का फैसला आना है। सुपर कॉरिडोर पर योजना 139 केे अलावा योजना 135 और 94 में ही एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की जमीनों का मालिक प्राधिकरण ही रहेगा और सिर्फ मुआवजे के ही हकदार जमीन मालिक होंगे।
2013 में कांग्रेस सरकार ने जो नया भूमि अधिग्रहण कानून बनाया, उसमें इतनी अधिक जटिलताएं हैं कि सरकारी योजनाओं से लेकर प्राधिकरण, हाउसिंग बोर्ड सहित अन्य संस्थाओं को भी भू-अर्जन में परेशानी आने लगी, जबकि पुराना भूमि अधिग्रहण कानून 1894 आसान था। हालांकि उसमें जमीन मालिकों को घाटा उठाना पड़ता था, जबकि नए कानून में बाजार दर के मुताबिक दो से चार गुना तक नकद मुआवजे का प्रावधान रखा है। मगर सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले के चलते नए भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 24 (2) के चलते प्राधिकरण की पुरानी योजनाओं में भी तकनीकी दिक्कत आ गई, जिसके चलते या तो प्राधिकरण को जमीनें छोडऩा पड़तीं या 20 फीसदी विकसित भूखंड देना पड़ते।
योजना 140 में माफियाओं ने बेशकीमती भूखंड कबाडऩे का ऐसा ही खेल किया भी था, जो अग्निबाण खुलासे के कारण चौपट हो गया, वहीं बाद में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने धारा 24 (2) की व्याख्या करते हुए इंदौर विकास प्राधिकरण को बहुत बड़ी राहत दे दी, जिसके चलते कल ही इंदौर हाईकोर्ट ने एमआर-10 से लगी हुई ग्राम कुमेड़ी की साढ़े 7 हेक्टेयर यानी लगभग 18 एकड़ जमीनों के संबंध में दायर याचिकाएं खारिज कर दीं। शम्भुदयाल अग्रवाल, निरंजन कुमार, राजकुमार अग्रवाल सहित अन्य रसूखदारों की जमीनों के संबंध में इंदौर हाईकोर्ट ने भी स्पष्ट कहा कि 6 मार्च 2020 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 24 (2) के संबंध में स्पष्ट किया जा चुका है। लिहाजा जमीन मालिक के बैंक खातों में मुआवजे की राशि पारित अवॉर्ड के मुताबिक जमा करवाई जाए।
अवॉर्ड पारित जमीनें वापस नहीं लौटाईं जा सकती
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 24 (2) की व्याख्या करते हुए स्पष्ट कहा था कि अवॉर्ड पारित जमीनें वापस नहीं लौटाई जा सकती, भले ही जमीन मालिकों ने कलेक्टर कोर्ट से मुआवजा हासिल किया हो अथवा नहीं, साथ ही 5 साल तक जमीन का कब्जा नहीं लेने या उसे विकसित करने की दलील भी सुप्रीम कोर्ट ने नहीं मानी। इसके चलते इंदौर विकास प्राधिकरण को पुराने अधिग्रहण कानून के मुताबिक ही जमीन मालिकों को मुआवजे की राशि देना होगी, भले ही जमीन मालिक रिफ्रेंस कोर्ट में मुआवजे की राशि बढ़वाने के लिए अपील कर सकते हैं, मगर अवॉर्ड पारित जमीनें योजनाओं से नहीं छोड़ी जा सकतीं और ना ही उन्हें नए भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के प्रावधानों का लाभ मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट में देशभर से 350 एसएलपी दायर की गई थी, जिसमें प्राधिकरण भी एक प्रमुख पार्टी के रूप में मौजूद रहा और 198 पेज का संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
अग्निबाण ने बचाई 140 सहित अन्य योजनाओं की जमीनें
प्राधिकरण का तत्कालीन राजनीतिक बोर्ड और अफसर योजना 140 के बेशकीमती भूखंडों को भूमाफिया दीपक मद्दे सहित अन्य रसूखदारों को लुटाने के लिए एक टांग पर खड़े थे। मगर अग्निबाण ने इस पूरे भू-घोटाले का ना सिर्फ खुलासा किया, बल्कि अन्य योजनाओं की जमीनें भी बचार्इं और बाद में फिर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले से भी अग्निबाण की खबरें सही साबित हुर्इं और इंदौर विकास प्राधिकरण को हजारों करोड़ का फायदा भी हो गया।
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