– आर.के. सिन्हा
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कभी प्रखर वक्ता के रूप में खुद को साबित तो नहीं कर पाए हैं, पर वे भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से टीवी पर बहस करने को बेकरार हैं। उन्होंने कहा, ‘नरेंद्र मोदी से टीवी पर डिबेट करना मुझे बहुत अच्छा लगेगा।’ बड़बोले इमरान खान की मोदी जी से बहस होगी भी या नहीं होगी, यह कोई नहीं जानता।
मोदी जी से बातचीत के लिए बेताब इमरान खान कभी मौके लगे तो देश के विभाजन के समय यूपी, बिहार और देश के दूसरे भागों से पाकिस्तान चले गए मुसलमानों का दर्द जानने लेने के लिए उनसे भी जरा गुफ्तुगू कर लें। पाकिस्तान बनने के इतने बरस गुजरने के बाद भी इन्हें वहां दोयम दर्जे का ही नागरिक समझा जाता है। पाकिस्तान गए इन लोगों को मुहाजिर कहा जाता है। मुहाजिरों में 70 फीसदी से अधिक आबादी यूपी वालों की ही है। इसलिए इन्हें यूपी वाला भी कहा जाता है।
मुहाजिर सन 1947 के बाद सिंध सूबे के कराची और हैदराबाद शहरों में खासतौर पर जाकर बसे थे। मुहाजिरों को वहां पर तीन बड़ी पार्टियां क्रमश: पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी), पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) और पाकिस्तान तहरीक-ए- इंसाफ पार्टी (पीटीआई) पूरी तरह से नजरअंदाज ही करती आई हैं। इन दलों के नेता विभिन्न चुनावों में मुहाजिरों से वोट भी मांगने उनके इलाकों में नहीं जाते। इमरान खान भी मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पार्टी (एमक्यूएम) को हत्यारों की पार्टी कहने से नहीं चूकते। लेकिन, इमरान खान ने उनके मसलों को कभी सहानुभूति तरीके से कभी भी नहीं जाना। जिस पार्टी के नेता अल्ताफ हुसैन मुहाजिरों के लिए लड़ते हैं, इमरान खान उन्हें हत्यारा कहते हैं।
अल्ताफ हुसैन का संबध आगरा से है। वे अब खुलेआम देश के बंटवारे को एक गलत घटना बताते हैं। अपने को इतिहास का विद्यार्थी कहने वाले इमरान खान को क्या इतना भी नहीं पता कि पृथक इस्लामिक देश के लिए चले आंदोलन में यूपी के मुसलमानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। अब इमरान खान यूपी वालों से बात करने को तैयार नहीं है। यह है इमरान खान का असली चेहरा। वे एहसान फरामोश तो हैं। जिस भारत में आकर वे अपनी मां के नाम से बनने वाले अस्पताल के लिए मोटा चंदा लेकर जाते थे, उसे वे अब दिन-रात कोसते हैं।
बहरहाल, पाकिस्तान सरीखे बंद समाज और घोर इस्लामिक देश में भी एमक्यूएम ने अपने धर्मनिरपेक्ष चरित्र को थोड़ा बहुत बचा कर रखा। ये पाकिस्तान का कमोबेश धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल माना जा सकता है। मुहाजिरों की सबसे बड़ी शिकायत यह रही है कि इनकी केन्द्र सरकार और सिंध सरकार की नौकरियों में भागीदारी तेजी से घटती जा रही है। केन्द्र सरकार की नौकरियों में ये दो फीसदी के आसपास हैं, जबकि सिंध सरकार की नौकरियों में ये सात-आठ फीसदी। हालांकि ये देश की आबादी का लगभग 10 फीसदी हैं और सिंध की जनसंख्या का 22 फीसदी से कुछ अधिक है।
मुहाजिर पाकिस्तानी समाज का एक बेहद गरीब और असहाय तबका है। ये अशिक्षा के भी शिकार हैं। पाकिस्तान में कई पीढ़ियां रहने के बाद भी इनकी हालत खराब ही है। ये अधिकतर कराची की गुज्जर नाला, ओरंगी टाउन, अलीगढ़ कॉलोनी, बिहार कॉलोनी और सुर्जानी इलाकों में जीवन बिताने को अभिशप्त हैं। तो ये जिन ख्वाबों को लेकर पाकिस्तान गए थे, वे तो पूरी तरह टूट चुके हैं।
पर मजाल है कि इमऱान खान ने कभी इनसे बात करने की इच्छा भी जताई हो। इमऱान खान को तो मोदी जी से बात करनी है। इमरान खान य़ाद रखें कि यदि एक बार बात शुरू हो गई तो उन्हें बचने के लिए रास्ता तक नहीं मिलेगा। तब उन्हें बताना होगा कि उनका देश आतंकवाद की फैक्ट्री कैसे बना ? इमरान को यह भी बताना होगा कि वे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से खालिस्तानियों का समर्थन क्यों करते रहते हैं?
खैर, वे जब चाहें अपने देश के बलूचिस्तान सूबे के उन नेताओं से टीवी पर साक्षात बात कर सकते हैं जो पाकिस्तान के साथ रहने को तैयार ही नहीं हैं। इमरान खान समझ ही नहीं पा रहे हैं कि बलूचिस्तान सूबे में विद्रोह की चिंगारी भड़की हुई है। पाकिस्तान के क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़े प्रान्त बलूचिस्तान में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी किसी भी स्थिति में पाकिस्तान से अपने सूबे को अलग करना चाहता है। इस संगठन ने कराची के स्टॉक एक्सचेंज बिल्डिंग में कुछ समय पहले हमला किया था। तब इमरान खान बेशर्मी से दावा कर रहे थे कि कराची में आतंकी घटना के पीछे भारत का हाथ है। हालांकि, उससे पहले ही बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने कराची हमले की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी। वे तो मक्कारी की हद तक झूठ बोलने लगे हैं।
इमरान खान यहां तक कह चुके है कि भारत ने मुंबई में 2008 में हमला खुद ही करवाया था। हालांकि वे यह नहीं बताते कि अगर मुंबई हमला भारत ने करवाया था तो फिर उसके आरोपियों के खिलाफ पाकिस्तान में केस क्यों चल रहा है? क्या वे किसी टीवी डिबेट में यह भी बताएंगे कि अजमल कसाब कौन था? अगर इमरान खान ने बलूचिस्तान के विद्रोहियों से बात करने में जल्दी नहीं की तो मुमकिन है कि वह पाकिस्तान के नक़्शे से निकल ही न जाए। इसलिए भारत की इमरान को तो सलाह है कि वे जरा बलूचिस्तान पर गौर कर लें। इमरान खान को यह अवश्य पता होगा कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान के अन्य भागों के सरकारी अफसर जाने को तैयार नहीं होते। बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा होते हुए भी उससे पूरी तरह से कट चुका है। इन सब बातों की अनदेखी करते हुए इमरान खान कभी बीजिंग तो कभी मास्को जाते हैं। बीजिंग यात्रा के समय वे चीन में मुसलमानों के ऊपर हो रहे जुल्मों-सितम पर जुबान खोलने से पूरी तरह बचते हैं।
पाकिस्तान का आम अवाम महंगाई, बेरोजगारी और कठमुल्लापन का शिकार है। लेकिन, वे इन गंभीर बिन्दुओं को हल करने के लिए किसी के साथ टीवी डिबेट करने के लिए तैयार नहीं हैं। कभी आपने सुना या देखा कि इमरान पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के नेताओँ से मिलकर बात कर रहे हों। नहीं न? लेकिन, उन्हें तो बात करनी है नरेन्द्र मोदी से।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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