भोपाल। मरीजों की जिंदगी बचाने वाली संजीवनी ऑक्सीजन की शुद्धता की गारंटी कटघरे में है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी अस्पताल से लेकर निजी में ऑक्सीजन की खरीद और उसकी शुद्धता का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। खासतौर से ऑक्सीजन सिलेंडर को लेकर इस तरह की अनदेखी की जा रही है। साथ ही ऑक्सीजन के इस्तेमाल और आपूर्ति के मामले में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है। औषधि प्रसासन ने ऑक्सीजन की गुणवत्ता को लेकर मानक तय किए गए हैं, जिससे मरीजों को शुद्ध ऑक्सीजन मुहैया करवाई जा सके। लेकिन जिले में उसका पालन नहीं हो पा रहा है। ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी और अस्पताल के बीच इसी मानक के आधार पर टेंडर होते हैं। इसके बाद भी सरकरी और गैर अस्पताल प्रबंधन ऑक्सीजन की शुद्धता नहीं जांचते हंै। जबकि ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के मुताबिक अस्पताल की ऑक्सीजन की शुद्धता की जांच करना अनिवार्य है। अशुद्ध ऑक्सीजन से मरीजों की जिंदगी खतरे में आ सकती है।
यह है प्रावधान
ऑक्सीजन को ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत दवा अर्थात औषधि के रूप में माना गया है। इसकी जांच भी औषधि निरीक्षकों के दायरे में आती है। यह जानकारी औषधि निरीक्षकों को भी नहीं है। एक्ट में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि किसी भी अस्पताल निजी नर्सिंग होम में औषधि निरीक्षक ऑक्सीजन का सैंपल लेकर उसकी शुद्धता जांच कर सकते हैं।
औषधि निरीक्षक ने नहीं लिया कोई सैंपल
अभी तक जिले के किसी भी अस्पताल से औषधि निरीक्षक ने ऑक्सीजन का सैंपल नहीं लिया गया है। हालांकि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि ऑक्सीजन प्लांट के सैंपल लेकर जांच के लिए भेजे हैं। लेकिन ऑक्सीजन सिंलेडर की शुद्धता को लेकर उनका कहना है कि सप्लाई करने वाली कंपनी जांच करती है।
93 प्रतिशत शुद्धता 7 प्रतिशत औषधि होनी चाहिए
भारत सरकार के पास इसकी गाइडलाइन ही नहीं है। जबकि वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मानक पर अस्पतालों में सप्लाई होने वाले सिलेंडर में 93 प्रतिशत शुद्ध ऑक्सीजन तथा सात प्रतिशत में अन्य औषधि उपलब्ध रहती है।
जो मरीजों के लिए फायदेमंद होती है।
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