बेंगलुरु। कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) में बुधवार को हिजाब मामले (hijab controversy) में सुनवाई हुई. इस दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि सरकार की तरफ से मुस्लिम महिलाओं को स्कार्फ के लिए निशाना बनाना ‘शत्रुतापूर्ण भेदभाव’ का उदाहरण है। इस दौरान उन्होंने हिंदू, सिख और ईसाई समुदाय की तरफ से धार्मिक चिन्हों के उपयोग का भी जिक्र किया। वकील ने कहा कि प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में छात्रों के लिए कोई यूनिफॉर्म नहीं है। साथ ही कर्नाटक एजुकेशन एक्ट 1983 के तहत भी ऐसा कोई नियम नहीं है, जो हिजाब पहनन से रोके।
कर्नाटक के पूर्व एड्वोकेट जनरल रवि वर्मा कुमार (Advocate Ravi Verma Kumar) ने उच्च न्यायालय की बेंच को बताया कि तय यूनिफॉर्म नहीं होने के चलते हिजाब पहनी हुई मुस्लिम लड़कियों को कक्षा में शामिल होने से रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह धर्म के आधार पर ‘भेदभाव’ है, जिसकी संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत मनाही है।
कुमार ने कोर्ट को बताया, ‘हिंदू, सिख और ईसाई के अपने धार्मिक चिन्ह हैं. मैं हमारे समाज में मौजूद बहुलता और विविधता पर जोर देना चाहता हूं. क्यों शत्रुतापूर्ण भेदभाव के लिए हिजाब को ही चुना गया? क्या यह धर्म की वजह से नहीं है?’ उन्होंने कोर्ट से पूछा, ‘क्या हमें सिखों के लिए पगड़ी पर रोक लगा देनी चाहिए? लड़कियां भी चूड़ियां पहनती हैं. गरीब मुस्लिम लड़कियों के खिलाफ भेदभाव क्यों है?’
कुमार का कहना है कि हिजाब पहने लड़कियों को क्लास में शामिल होने से रोकने का कारण ‘केवल धर्म है’, क्योंकि ऐसा कोई भी ‘भेदभाव’ उन लोगों के साथ नहीं है, जो दुपट्टा, चूड़ियां, बिंदी लगाते हैं या क्रूसिफिक्स (सूली पर ईसा मसीह की मूर्ति) साथ लेकर चलते हैं. कुमार ने कहा, ‘अगर पगड़ी पहने हुए लोग सेना में हो सकते हैं, तो धार्मिक चिन्ह पहने हुए व्यक्ति को क्लास में शामिल होने की अनुमति क्यों नहीं मिल सकती. जहां सर्वभौमिक शिक्षा और खासतौर से लड़कियों की शिक्षा की जरूरत है, वहां यह फैसला सख्त है।’
उन्होंने आगे कहा कि अदालत इस बात का न्यायिक संज्ञान ले सकती है कि लड़कियों के बीच मुस्लिम लड़कियां सबसे कम शिक्षित हैं. साथ ही कक्षाओं में भी उनका प्रतिनिधित्व सबसे कम है। उन्होंने कहा, ‘अगर ऐसे भेदभाव के आधार पर उन्हें रोका जाएगा, तो यह उनकी शिक्षा के लिए कयामत के दिन के बराबर होगा.’ इस दौरान कुमार ने राज्य सरकार के पीयू कॉलेजों में प्रॉस्पेक्ट्स का जिक्र किया कि छात्रों को किसी भी तरह की यूनिफॉर्म के लिए कहना गैर-कानूनी है।
वरिष्ठ वकील यूसुफ मुछाला ने कहा कि कोई भी आदेश जो हिजाब पहनी लड़कियों को क्लास में शामिल होने से रोकता है, वह ऐसा है, जिसे कोर्ट ‘मनमानापन’ मानता है. उन्होंने कहा कि यह कानून में शामिल समानता के सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है।
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