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    UP के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री, कमाल के थे इनके शौक, अपने आम लेकर पहुंच गए थे लंदन

  • February 16, 2022

    नई दिल्‍ली। केंद्र में सरकार बनानी है तो उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सत्‍ता पाना जरूरी है। यह धारणा वर्षों पुरानी है और अधिकांशत: सच ही साबित होती है. 2014 में इसी उत्‍तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटें जीतकर नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) प्रधानमंत्री (Prime minister) बने थे. एक बार फिर यूपी चुनाव की जद में है. 2 चरण के वोट डल चुके हैं. यह प्रदेश न केवल देश का सबसे बड़ा राज्‍य है, बल्कि यहां का राजनीतिक इतिहास भी कमाल का है। यूपी के पूर्व मुख्‍यमंत्रियों की श्रृंखला में आज हम एक राज्‍य के पहले मुस्लिम सीएम (First Muslim CM) की बात करेंगे, जो राजनीति के अलावा अपने आमों के लिए भी मशहूर था.


    यूपी में रहा है मुस्लिमों का बोलबाला
    यूपी के चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक हमेशा बहुत अहम रहा है. यहां की बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और दारुल उलूम देवबंद जैसे संस्थानों का राजनीति से गहरा नाता है. यहां से मोतीलाल नेहरु, जवाहर लाल नेहरु, मदन मोहन मालवीय और गोविंद बल्लभ पंत जैसे दिग्‍गज नेता निकले हैं. साथ ही कई मुस्लिम नेताओं की राजनीति भी यहीं से शुरू हुई है. लेकिन यूपी के पूर्व सीएम नवाब मुहम्मद अहमद सैयद खान छतारी इनसे एकदम अलग थे. वे बुलंदशहर और अलीगढ़ के बीच की रियासत छतारी से ताल्‍लुक रखते थे और अपना बचपन सऊदी अरब में गुजार कर आए थे।

    इण्‍डस्‍ट्री लगाना चाहते है थे नवाब छतारी
    बचपन से ही सैयद खान का दिमाग बहुत तेज था. कम उम्र में ही उन्‍होंने कुरान याद कर ली थी. साथ ही उनकी सोच भी बहुत विस्‍तृत थी. जब लोग जमीन की लड़ाई में मर-खप रहे थे, वे अपनी जमीन छोड़कर इण्‍डस्‍ट्री लगाने की योजना बना रहे थे. खैर उनकी किस्‍मत राजनीति में लिखी थी. हालांकि वे केबिनेट में उद्योग मंत्री रहे और यूपी में कई चीनी मिलें और आटे की मिलें लगवाईं।

    2 साल में ही छोड़ दी थी सीएम की कुर्सी
    1937 में नवाब को यूपी का चीफ मिनिस्टर बनाया गया. लेकिन उन्‍हें ये पर रास नहीं आया और इस्‍तीफा देकर गृह मंत्री बन गए. इसके बाद जुलाई-अगस्त 1941 के बीच वे नेशनल डिफेंस काउंसिल के मेंबर बने. फिर हैदराबाद एग्जीक्यूटिव काउंसिल के प्रेसिडेंट बन गये. इसे निजामों का वजीर बनना कह सकते हैं।

    आमों ने जीता था फर्स्‍ट प्राइज

    खैर, नवाब राजनीति में तो माहिर थे ही, उनके शौक भी निराले थे. वे आमों के शौकीन थे. 1935 में जब लंदन में आमों का फेस्टिवल होने की बात पता चली तो भारत की ओर नवाब सैयद खान अपने रहतौल आम लेकर पहुंच गए. इतना ही नहीं वे इस कॉम्‍पटीशन में फर्स्‍ट प्राइज भी जीतकर आए. उनके आमों को दुनिया का सबसे अच्छा आम माना गया था. खैर कई तरह के कामों में खुद को व्‍यस्‍त रखने वाले नवाब अपने निधन तक सक्रिय रहे. अपने आखिरी समय में वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के चांसलर रहे और 1982 में दुनिया से अलविदा हो गए।

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