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    पुलवामा हमले के 3 साल बाद भी PAK में फल-फूल रहे जैश और लश्कर, भारत के लिए चिंता का सबब

  • February 15, 2022


    डेस्क: पुलवामा में हुए आतंकी हमले (Pulwama terror attack) के तीन साल बाद, क्वाड विदेश मंत्रियों (QUAD foreign ministers) के संयुक्त बयान में 2008 के मुंबई 26/11 और 2016 के पठानकोट एयरबेस हमलों की निंदा की गई. चार क्वाड भागीदारों (QUAD partners) ने सीमा पार से फैलाए जा रहे आतंकवाद के लिए आतंकवादियों के परदे के पीछे के उपयोग की कड़ी निंदा की और मांग की कि आतंकवादी हमलों के अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाया जाए. हालांकि क्वाड ने पाकिस्तान (Pakistan) का नाम नहीं लिया.

    मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले को प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) समूह और पठानकोट हमले को जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) आतंकवादी समूह ने अंजाम दिया था. दोनों आतंकी संगठनों के पाकिस्तान के साथ गहरे संबंध हैं, जिसका एकमात्र उद्देश्य कश्मीर के नाम पर भारत को निशाना बनाना और स्थानीय प्रॉक्सी के माध्यम से भारतीय आंतरिक इलाकों को कट्टरपंथी बनाना है.

    हालांकि QUAD मंत्रियों ने मुंबई और पठानकोट हमले के लिए पाकिस्तान का सीधे-सीधे नाम लेने से परहेज किया. 14 फरवरी, 2019 को किया गया पुलवामा हमला, पाकिस्तान के बहावलपुर में मसूद, रऊफ और अम्मार अल्वी भाइयों द्वारा संचालित JeM की बहुराष्ट्रीय आतंकी संगठन द्वारा किया गया आखिरी बड़ा हमला था.


    इस हमले के कारण नरेंद्र मोदी सरकार ने 26 फरवरी, 2019 को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के बालाकोट में जाबा टॉप में उनके आतंकी शिविर को नष्ट करके जैश के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की. हालांकि बालाकोट में भारत की ओर से किए गए एयरस्ट्राइक में मारे गए आतंकवादियों की सही संख्या की जानकारी नहीं है, लेकिन स्ट्राइक से एक दिन पहले हाई-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरों के आधार पर 300 से अधिक धार्मिक आतंकी प्रशिक्षण शिविर में देखे गए थे.

    कई आतंकी भारत की जेलों में कैद
    हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, पुलवामा हमले के बाद, भारतीय सुरक्षा बल और जम्मू-कश्मीर पुलिस हरकत में आई और अब तक, पुलवामा आत्मघाती हमलावर सहित आठ आतंकवादियों को मार चुकी है जबकि सात को गिरफ्तार कर लिया गया है और वे जम्मू में एनआईए अदालत में केस का सामना कर रहे हैं. पूर्व पुलवामा निवासी और अब अधिकृत कश्मीर में स्थित एक जैश ऑपरेटिव, आशिक नेंगरू और कुख्यात अल्वी भाइयों को अभी भी भारतीय न्याय का सामना करना पड़ रहा है.

    हालांकि मोदी सरकार ने 2014 से पाक स्थित आतंकवादी समूहों को अपने रडार पर रखा हुआ है, लेकिन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा की आतंकी फैक्ट्रियां पूरी ताकत से चल रही हैं और तालिबान द्वारा दिखाए गए रास्ते से प्रेरित हैं, जिन्होंने अमेरिका की अगुवाई वाली बहुराष्ट्रीय ताकतों को नीचा दिखाया और आखिरकार उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया.

    दो दशक की लड़ाई के बाद वे अफगानिस्तान से बाहर निकलने को मजबूर हुए. भले ही तालिबान को अभी भी अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ बनानी है, लेकिन इसके केवल उदय से पाक आधारित और भारतीय स्थानीय जिहादियों दोनों के आत्मविश्वास का स्तर काफी बढ़ गया है. भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ दुनिया के अन्य हिस्सों में भी इस्लामी कट्टरता बढ़ रही है.


    मसूद अजहर और हाफिज सईद आज भी सक्रिय
    1999 में तालिबान शासित अफगानिस्तान में IC-814 विमान के कंधार में अपहरण के बाद अपनी स्थापना के बाद से, मसूद अजहर के तहत जैश 2001 में संसद पर और 2005 में अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर पर बड़े हमलों के साथ भारत को निशाना बनाने की कोशिश में रहा है. अयोध्या मंदिर पर अगर हमला सफल हो जाता, तो इससे भारी सांप्रदायिक टकराव होता और सामाजिक ताना-बाना टूट जाता. मुरीदके, लाहौर और बहावलपुर में आतंकी फैक्ट्रियों को चलाने के पाकिस्तानी आतंकियों का यही उद्देश्य है.

    जब तक मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे आतंकवादी जीवित हैं और उनका पारिवारिक साम्राज्य रावलपिंडी के समर्थन से चल रहा है, तब तक भारत आतंकी हमलों की चपेट में बना रहेगा क्योंकि पाकिस्तान के पास भारत को नीचे गिराने की उसकी कोशिशों के तहत उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है. असुरक्षा के अलावा धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों के आधार पर भारतीय मुसलमानों की कट्टरता में वृद्धि इन आतंकी समूहों के लिए यहां अपनी पकड़ मजबूत बनाने में और मदद मिलेगी. भारत को भी इनसे लगातार अलर्ट रहना होगा क्योंकि देश तब तक सुरक्षित नहीं है जब तक पाकिस्तान में आतंकी संगठन पनप रहे हैं.

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