जबलपुर। मध्यप्रदेश में नगर निगमों के महापौर तथा नगर पालिकाओं के अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता द्धारा इसका मुद्दा एक मर्तबा फिर उठा है। जिसकों लेकर जबलपुर निवासी डॉ. पीजी. नाजपांडे ने सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दायर की है। याचिका में प्रार्थना की गई है कि पूर्व में इसी विषय पर म.प्र. हाईकोर्ट द्धारा दायर जनहित याचिका तथा रिव्यु पिटीशन को खारिज करने के निर्णयों पर अंतरिम स्थगन आदेश देकर निर्णयों को रद्द किया जाये। सर्वोच्च न्यायालय में दायर मामले में याचिकाकर्ता का कहना है कि लोकतंत्र को बढ़ावा देने वर्ष 1997 में अधिनियम लाया गया कि मेयर का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से हो। तत्पश्चात इसी विधि से 3 चुनाव भी कराये गये थे। हाईकोर्ट ने भी वर्ष 1997 में इसी विधि को सही ठहराया है। लेकिन अब अध्यादेश लाकर बिना कोई उद्देश्य जाहिर कर इस विधि को बदला गया तथा पार्षदों द्वारा महापौर का चुनाव कराना तय किया गया।
इसे डॉ. पी.जी. नाजपांडे ने म.प्र. हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी थी, हाईकोर्ट द्वारा इस याचिका को खारिज करने के बाद रिव्यु पिटीशन भी दायर हुई, लेकिन वह भी हाईकोर्ट से पूर्व में खारिज हो गई थी। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के निर्णयों को चुनौती दी थी, लेकिन इसी दरम्यान म.प्र. शासन ने अध्यादेश लाकर महापौर के चुनाव संबंधी पूर्व की विधि (सीधे चुनाव) अपनाने को तय किया, जिसे देखते हुये सुप्रीम कोर्ट ने इस बिंदु पर दायर डॉ. पी.जी. नाजपांडे की याचिका खारिज कर दी थी। आवेदक का कहना हे कि लेकिन इसके बाद सरकार चुप बैठ गई। अत: याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में पूर्व की याचिका को रि-स्टोअर करने आवेदन प्रस्तुत किया, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को नये सिरे से याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी थी, जिस पर रि-स्टोरेशन याचिका वापस ले ली गयी। एडवोकेट अक्षत श्रीवास्तव ने बताया कि महापौर के सीधे चुनाव विधि बावत कराने सरकार की ओर से आगे कोई कार्यवाही नहीं की गई। अत: पार्षदों द्वारा महापौर के चुनाव का अधिनियम 2019 अभी भी बना हुआ है। सरकार नगर निगमों के चुनाव जल्दी से कराना चाहती है, इसी कारण यह नई याचिका दायर की गई है।
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