भोपाल। मप्र की मिट्टी में सबसे अधिक नाइट्रोजन की कमी है। इसका खुलासा प्रदेश के सभी लगभग 55 हजार गांव की मिट्टी की मैपिंग में हुआ है। किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के जमीनी अमले ने चार साल का समय मिट्टी इक_ी करने और लैब में परीक्षण में लगाया। इसके बाद एक साल का समय राजस्व विभाग के नक्शे के हिसाब से मैपिंग में लगा। इसी माह ने इसका उद्घाटन किया जाएगा। यानी पांच साल में प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी की रिपोर्ट तैयार की गई है। जानकारी के अनुसार पांच साल की मेहनत से प्रदेश के सभी लगभग 55 हजार गांव की मिट्टी की मैपिंग कर रिपोर्ट तैयार की गई है। अब उन्हें एक क्लिक पर क्षेत्र की सिंचित और असिंचित मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश से लेकर माइक्रोन्यूट्रिएंट, पीएच, इलेक्ट्रिकल कंडेक्टिविटी और ऑर्गेनिक कार्बन जैसे तत्वों की जानकारी मिल जाएगी। फायदा यह है कि खेत में जिस तत्व की कमी होगी, किसानों को उसकी पूर्ति करने के लिए यूरिया या कंपोस्ड पर ही पैसा खर्च करना होगा।
विभिन्न स्रोतों का लिया सहयोग
मैपिंग से सामने आया कि मप्र की मिट्टी में प्रमुख रूप से नाइट्रोजन की कमी जगह-जगह दिखती है। फास्फोरस की स्थिति मध्यम है पोटाश की बात करें तो मिट्टी में इसकी अधिकता है। साथ ही माइक्रोन्यूट्रिएंट, पीएच, इलेक्ट्रिकल कंडेक्टिविटी और ऑर्गेनिक कार्बन का परीक्षण कर, प्रविष्टि की गई। जिंक, मैग्नीशियम, कैल्शियम, बोरोन सल्फर और मैगनीज की टेस्टिंग कर, उसे भी दर्ज किया गया। 2015-16 से 2018-19 तक कृषि विभाग के अमले ने 10 हेक्टेयर असिंचित और ढाई हेक्टेयर सिंचित जमीन की मिट्टी के नमूने लिए। जिला स्तरीय मिटटी परीक्षण प्रयोगशालाओं में जांच करवाई गई। विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्र की लैब का भी उपयोग किया। परिणाम केंद्र के सॉइल हेल्थ कार्ड पोर्टल पर अपलोड किए गए। राज्य सरकार के सूचना विभाग के मैप आईटी का मदद भी ली गई।
मिट्टी की उर्वरकता संकटग्रस्त हो रही
मिट्टी की उर्वरकता संकटग्रस्त हो रही है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार चाहती हैं कि किसान रासायनिक के बजाय जैविक खेती की तरफ जाएं। मिट्टी की मैपिंग होने से किसान खेत में गोबर, नाफेड, हरी खाद से पोषकता बढ़ा सकते हैं। पोटाश, एजोटोबैक्टर, राइजोबियम पीएसबी के कल्चर डालकर मिट्टी को ठीक किया जा सकता है। कृषि विभाग मृदा मैप देखने किसानों को ट्रेनिंग दिलवा रहा है। संचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास प्रीति मैथिल नायक का कहना है कि प्रदेश की मिट्टी का मिजाज कैसा है, ये समझ आ गया है। अब किसानों को उनके खसरे तक की मिट्टी की स्थिति पता है।
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