नई दिल्ली। केंद्र ने कहा वह पत्नी की रजामंदी के बिना शारीरिक संबंध (sexual intercourse without wife’s consent) को अपराध की श्रेणी में लाने के न तो पक्ष में है और न ही भारतीय दंड संहिता के तहत पतियों को दी गई छूट को खत्म करने के खिलाफ है। हाईकोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के इस तर्क पर वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण (criminalizing marital rape) की मांग वाली याचिकाओं पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए केंद्र को दो सप्ताह का समय प्रदान कर दिया।
न्यायमूर्ति राजीव शकधर व न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष मेहता ने जोर देकर कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराधीकरण करने पर एक समग्र दृष्टिकोण लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा यह एक संवेदनशील सामाजिक-कानूनी मुद्दा है और इस मुद्दे पर निर्णय के लिए परामर्श प्रक्रिया शुरू करने के लिए समय प्रदान किया जाए।
उन्होंने कहा यह केंद्र सरकार का स्टैंड नहीं है कि उसे या तो जाना चाहिए या उसे बरकरार रखना चाहिए। उन्होंने कहा केंद्र सरकार का रुख पिछले हलफनामे में स्पष्ट होता जो हालही में दायर किया है। यह नहीं कहा जाना चाहिए कि धारा 375 के अपवाद को हम बनाए रखने के पक्ष में हैं या हम इसे हटा रहे हैं।
पीठ ने उनके आग्रह को स्वीकार कर कहा कि इस मुद्दे पर अदालत या विधायिका द्वारा फैसला किया जाना है। पीठ ने केंद्र को इस मामले में अपना स्टैंड तैयार करने के लिए दो सप्ताह का समय प्रदान कर दिया।
पीठ ने कहा हम सभी ज्ञान का भंडार होने का दावा नहीं करते हैं, लेकिन एक संवैधानिक अदालत के रूप में यह हमारा काम है कि हम एक सूची तय करें जो हमारे सामने आती है। हम यह भी नहीं जानते कि हम इस समय मुद्दे पर क्या कॉल करने जा रहे हैं। अदालत ने मामले की सुनवाई 21 फरवरी तय करते हुए कहा अदालत के रूप में यह अच्छा नहीं है कि मामले को लंबित रखा जाए।
पिछले हफ्ते केंद्र ने दायर हलफनामा में कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म का अपराधीकरण देश में सामाजिक-कानूनी प्रभाव तक पहुंच रहा है और विभिन्न हितधारकों और राज्य सरकारों के साथ एक सार्थक परामर्श प्रक्रिया की आवश्यकता है। केंद्र ने कहा कि हम हर महिला की स्वतंत्रता, गरिमा और अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है जो एक सभ्य समाज की मौलिक नींव और स्तंभ है।
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