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शिप्रा के गंदे पानी का सीओडी 70 प्रतिशत तक जा पहुँचा

February 03, 2022

  • इंदौर के उद्योगों का 60 हजार घन मीटर दूषित पानी प्रतिदिन शिप्रा में पहुँचाती है कान्ह नदी

उज्जैन। इंदौर के उद्योगों सहित आसपास के क्षेत्रों से प्रदूषित पानी लेकर सालों से कान्ह नदी शिप्रा में उड़ेल रही है। इसी के चलते शिप्रा नदी का पानी अब पीने, नहाने और यहाँ तक कि मछली पालन के योग्य भी नहीं रह गया है। इसका खुलासा प्रदूषण विभाग की पिछली 5 बार की जल परीक्षण रिपोर्ट में हो चुका है। उल्लेखनीय है कि शिप्रा नदी में प्रदूषण की समस्या को दूर करने के लिए करोड़ों के प्रोजेक्ट शासन ने बनाए। इसमें नर्मदा-शिप्रा लिंक योजना, कान्ह डायवर्शन योजना, सदावल ट्रीटमेंट प्लांट के बाद अब 402 करोड़ के भूमिगत सीवरेज लाईन प्रोजेक्ट को मिलाकर करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं। इसके बावजूद शिप्रा नदी का पानी कान्ह नदी से आ रहे प्रदूषण से मुक्त नहीं हो पा रहा है। पिछले साल शनिश्चरी अमावस्या के अवसर पर स्नान के लिए जब नर्मदा का पानी शिप्रा में छोड़ा गया था तो कान्ह नदी का पानी शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए त्रिवेणी के समीप स्थित राघोपिपलिया पर मिट्टी का अस्थायी बाँध बनाया गया था। नहान के वक्त यह बह गया था और उसके बाद शासन-प्रशासन और प्रदूषण विभाग चेते थे।


प्रदूषण विभाग की पिछली 5 जाँचों में हुआ खुलासा
प्रदूषण विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले साल कान्ह नदी के शिप्रा में मिलने तथा इससे पानी का रंग बदलने के बाद रामघाट, त्रिवेणी के आसपास तथा शिप्रा ब्रिज के नजदीक से नदी के पानी के सेम्पल लिए गए थे और उनकी जाँच कराई गई थी। इसी पहली रिपोर्ट 7 अपै्रल 2021 को आई थी। जबकि दूसरी जाँच रिपोर्ट 8 जून को, तीसरी बार जाँच की रिपोर्ट 5 अगस्त को, चौथी बार सेम्पल की रिपोर्ट 20 सितम्बर को तथा 5वीं बार लिए गए सेम्पल की जाँच रिपोर्ट 12 अक्टूबर को आई थी। इन पाँचों रिपोर्ट में शिप्रा नदी का पानी जल में मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा के आधार पर चौथे दर्जे अर्थात डी ग्रेड का पाया गया था। प्रदूषण विभाग के वैज्ञानिक डॉ. ए.डी. संत के मुताबिक जल के प्रदूषण की जाँच पानी में ऑक्सीजन, घुलनशील और अघुलनशील धातुओं, अम्ल और क्षार की मात्रा के आधार पर तय मापदंडों के बाद 5 श्रेणियों में की जाती है। इसमें ए से लेकर ई श्रेणी तक की केटेगरी जाँचे गए पानी को दी जाती है। उन्होंने बताया कि नदी के पानी में सीओडी अर्थात केमिकल ऑक्सीजन डिमांड की मात्रा पर ही पानी की शुद्धता और रंग अधिकतर निर्भर करता है। सीओडी की मात्रा तय मापदंड से बढ़ जाने के कारण नदी का पानी गहरे हरे रंग से काला या हल्का ब्राउन हो जाता है। नदी के पानी में अगर सीओडी की मात्रा 40 ग्राम प्रति लीटर तक आती है तो यह पानी घरेलू उपयोग करने, स्नान करने तथा मछली पालन करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस श्रेणी को ए ग्रेड कहा जाता है। परंतु पिछली बार की गई शिप्रा नदी की पानी की जाँच में सीओडी की मात्रा 40 ग्राम प्रति लीटर की बजाय 70 ग्राम प्रति लीटर तक पाई गई है। इसके अलावा नदी के पानी में सल्फर फास्फोरेस और अन्य धातुओं तथा केमिकल की मात्रा भी अधिक पाई गई थी। इसी के चलते पिछली 5 बार की जाँच रिपोर्ट में शिप्रा नदी का पानी डी ग्रेड का पाया गया था। शिप्रा में सालों से केमिकल और जहर घोल रही कान्ह नदी का उद्गम इंदौर से 10 किलोमीटर दूर निमोली टेंक के पास से हुआ है। कान्ह नदी यहीं से निकलती है तथा यह 64 किलोमीटर का दायरा तय कर साँवेर होती हुई त्रिवेणी पर राघोपिपलिया के समीप शिप्रा में मिलती है। कान्ह नदी से प्रतिदिन शिप्रा नदी में 60 हजार घन मीटर दूषित पानी आता है और यह शिप्रा में मिलता है।

चार दिन से कान्ह की सफाई इंदौर में हुई बंद
15 दिन पहले इंदौर नगर निगम ने कान्ह नदी के कई हिस्सों में सफाई अभियान चलाया था और इसके लिए कई जेसीबी, पोकलेन लगाई थीं। चार दिनों तक सफाई अभियान चलता रहा और उसके बाद फिर बंद हो गया। शहर के कई नालों की निगम ने कुछ समय पहले बड़े पैमाने पर खासी सफाई कराई थी, लेकिन नालों के साथ-साथ कान्ह नदी का हिस्सा भी न केवल प्रदूषित हो गया, बल्कि कई जगह नदी के हिस्सों में गाद जमा हो गई। इसके चलते निगम ने स्वास्थ्य विभाग की टीमें लगाकर बड़े पैमाने पर सफाई अभियान शुरू कराया था। इसकी शुरुआत कृष्णपुरा क्षेत्र से हुई थी। चार से पांच दिन बमुश्किल अभियान चला और नदी से गाद निकालने के साथ-साथ चार-पांच दिनों में यह अभियान पूरी तरह बंद हो गया। अधिकारियों का कहना है कि अभी कुछ कारणों के चलते यह अभियान रोक दिया गया है।

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