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    Plastic Pollution: कोल्‍ड ड्रिंक्‍स के लिए मशहूर 2 कंपनियां फैला रहीं सबसे ज्‍यादा प्‍लास्टिक प्रदूषण

  • February 02, 2022


    न्‍यूयॉर्क: पूरी दुनिया प्रदूषण से परेशान है. प्रदूषण को कम करने को लेकर विश्व स्तर पर काफी प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी कोई समाधान नहीं निकल रहा है. प्लास्टिक प्रदूषण का बहुत बड़ा कारक है. क्या आप जानते हैं, विश्व स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण को फैलाने में सबसे अधिक जिम्मेदार कोल्ड ड्रिंक्स बनाने वाली कंपनियां हैं. ये कंपनियां कोका-कोला और पेप्सिको हैं. दोनों कंपनियों को लगातार चौथे वर्ष दुनिया के अग्रणी प्लास्टिक प्रदूषक के रूप में स्थान दिया गया है. यह रैंकिंग ‘ब्रेक फ्री फ्रॉम प्लास्टिक’ ने जारी की है.

    प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ काम करती है संस्था
    ‘ब्रेक फ्री फ्रॉम प्लास्टिक’ विश्व स्तर पर सिंगल यूज प्लास्टिक में कमी और इस प्रदूषण संकट के स्थायी समाधान के लिए एक आंदोलन के तौर पर काम करती है. रैंकिंग के अनुसार, यूनिलीवर, नेस्ले, प्रॉक्टर एंड गैंबल, मोंडेलेज़ इंटरनेशनल, फिलिप मॉरिस इंटरनेशनल, डैनोन, मार्स और कोलगेट-पामोलिव कुछ अन्य ब्रांड हैं, जो 2021 के शीर्ष प्रदूषक कंपनियों में से हैं.

    आधी सदी में 30 गुना अधिक हुआ प्लास्टिक कचरा
    रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन साल 1966 में 20 मिलियन मीट्रिक टन था, जो 2015 में बढ़कर 381 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) हो गया, जो आधी सदी में 20 गुना अधिक है. टियरफंड की वरिष्ठ नीति सलाहकार जोआन ग्रीन का कहना है कि कंपनियों ने रीसाइक्लिंग और पायलट परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन यह काफी अच्छा नहीं है.


    सिंगल-यूज पैकेजिंग पर निर्भरता कम करने को लेकर कंपनियां को इस पर काम करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि हम कंपनियों से उनके द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं को इकट्ठा करने के लिए कह रहे हैं. इसको लेकर कोका-कोला पहले से ही विश्व स्तर पर काम कर रही है, लेकिन हम उन्हें हर देश में ऐसा करते हुए देखना चाहते हैं.

    खुले में फेंक दिया जाता है 93 प्रतिशत कचरा
    विश्व बैंक के अनुसार, कम आय वाले देशों में लगभग 93 प्रतिशत कचरा सड़क, खुली जगह या जलमार्गों में जला दिया जाता है या फेंक दिया जाता है, जिससे नालियां जाम होती हैं और यही बाढ़ का कारण बनता है. इससे जलजनित बीमारियों को फैलने में भी मदद मिलती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि शुरुआत में समुद्र के कचरे को लेकर ध्यान केवल जहाज और समुद्र पर आधारित उपक्रमों पर केंद्रित था, लेकिन अब यह पता चल गया है कि जमीन पर फैला प्लास्टिक का कचरा नदियों और नालों के जरिए समुद्र तक पहुंच सकता है.

    समुद्री प्रजातियों को भी खतरा
    शोध से पता चला है कि समुद्र में रहने वाली लगभग एक हजार प्रजातियां प्लास्टिक के जरिए प्रभावित होती हैं, जो फिर से खाद्य पदार्थों के जरिए इंसानों के लिए खतरा बनती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल करीब 8 MMT प्लास्टिक कचरा दुनिया में पैदा होता है, जो हर मिनट प्लास्टिक कचरे के एक ट्रक को समुद्र में डंप करने के बराबर है.


    अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही, तो समुद्र में छोड़े जाने वाले प्लास्टिक की मात्रा साल 2030 तक हर साल 53 MMT तक पहुंच सकती है, जो सालाना समुद्र से पकड़ी गई मछलियों के कुल वजन का लगभग आधा है. इसका एक कारण यह भी है कि नगर निगम के कचरे में प्लास्टिक बहुत बड़े पैमाने पर इकट्ठा हो रहा है. इसको लेकर खासकर 1980 के बाद से रीसाइक्लिंग का पैमाना नहीं बना है, जिसके परिणामस्वरूप लैंडफिल साइट पर अधिक मात्रा में प्लास्टिक कचरा भरता जा रहा है.

    विकसित देशों को लेना होगा एक्शन
    रिपोर्ट ने इस संकट को दूर करने के लिए कई रास्ते सुझाए हैं. इनमें से एक है, कच्चे प्लास्टिक के उत्पादन को कम करना, लेकिन इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनानी होगी. अन्य सिफारिशों में विकसित देशों की सरकारों द्वारा एक्शन लिए जा सकते हैं. जैसे कि घरेलू कचरे को अन्य जगह डंप करने की जगह, उसके लिए एक निश्चित जगह बनाई जाए. वेस्ट कैप्चर टेक्नोलॉजी में सुधार करने से प्लास्टिक का जलमार्गों में जाना बंद हो जाएगा, जिससे बड़ी मात्रा में कचरा सीधे समुद्र में जाने से रुकेगा.

    NGO बियॉन्ड प्लास्टिक्स की अध्यक्ष जूडिथ एनक ने कहा कि यह प्लास्टिक प्रदूषण पर अब तक प्रकाशित सबसे व्यापक और हानिकारक रिपोर्ट है. यह समुद्र में प्लास्टिक के लिए खतरे का एक संकेत है कि कैसे कूड़े की सफाई समुद्र को बचाने के लिए नहीं जा रही है. जरूरी है कि पॉलिसी मेकर और बिजनेस लीडर यह रिपोर्ट पढ़ें और कार्रवाई करें. ओशियाना के प्लास्टिक अभियान के निदेशक क्रिस्टी लेविट ने कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण संकट में अमेरिका की भूमिका को अब और नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. प्लास्टिक प्रदूषण आज हमारे समुद्रों और हमारी दुनिया के सामने सबसे बड़े पर्यावरणीय खतरों में से एक है.

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