मंगलुरु । कर्नाटक (Karnataka) में इन दिनों इस्लाम के हिसाब से अपनी दैनिक दिनचर्या यहां तक कि प्रोफेशनल लाइफ में भी इसका दखल तेजी से बड़ता हुआ देखा जा रहा है। अब यहां कॉलेज में भी इस्लामिक रीतिरिवाज से पढ़ाई कराने पर जोर दिया जा रहा है । मामला यहां के उडुपी जिले के सरकारी महिला कालेज से जुड़ा है, जहां पर छह छात्राओं ने कालेज विकास समिति के सुझाव को मानने से इन्कार कर दिया है। समिति ने छात्राओं से कहा है कि यदि वे कक्षा में हिजाब (Hizab) पहनना ही चाहती हैं तो आनलाइन क्लास का विकल्प अपना सकती हैं। कालेज अधिकारियों द्वारा कक्षा के भीतर हिजाब पहनने की अनुमति देने से इन्कार करने के बाद छात्राओं ने चार सप्ताह से कक्षा का बहिष्कार कर रखा है।
उडुपी में विरोध कर रही छात्राओं ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हिजाब पहनना उनका संवैधानिक अधिकार है और वे आनलाइन कक्षा में शामिल नहीं होना चाहती हैं। यह भेदभावपूर्ण है। बिना हिजाब कक्षा में आने वाली समुदाय की दूसरी लड़कियों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि आगे पेश आने वाली मुश्किलों के भय से लड़कियां आगे नहीं आ रही हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा और अधिकार दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण है।
बतादें कि भारत में मुसलमानों की एक बड़ी आबादी संपत्ति विवाद और तलाक जैसे मामलों में इस्लामी अदालत में जाना पसंद करती है। अमेरिकी थिंक टैंक PEW की एक स्टडी में यह बात सामने आ चुकी है। ”रिलिजन इन इंडिया: टॉलरेंस एंड सेपरेशन” टाइटल से प्रकाशित रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है। इस रिसर्च के मुताबिक, भारत में 74% मुस्लिम आबादी इस्लामी अदालतों यानि शरीयत कानून को लागू रने के पक्ष में है। 59% मुसलमानों ने भी विभिन्न धर्मों के अदालतों का समर्थन किया है। यानि, भारत में हर चार मुसलमान में 3 मुसलमान शरीया अदालत चाहता है।
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