भिंड । मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के भिंड में एक सरकारी अस्पताल में विचलित कर देने वाली एक घटना सामने आई है. वहां एक नवजात (New Born) की इसलिए जान चली गयी क्योंकि उसकी मां अस्पताल में भर्ती होने के लिए वहां के कर्मचारियों को 5000 रूपये की रिश्वत नहीं दे पाई. एक ओर जहाँ देश के कई राज्यों ने महामारी के इस दौर में सरकारों ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिये खजाना खोल दिया तो दूसरी तरफ यह तस्वीर मध्यप्रदेश की है जो बहुत चिंता पैदा करती है, साथ ही सरकार के दावों की भी पोल खोल रही है। फिलहाल मामले की जांच के लिए कमेटी का गठन किया गया है.
दरअसल, भिंड (Bhind) के जिला अस्पताल में एक प्रसूता ने आरोप लगाया है कि पांच हजार की रिश्वत नहीं दे पाने के कारण उसे अस्पताल से बाहर कर दिया गया. अस्प्ताल के कर्मचारियों की इस अमानवीय हरकत के कारण उसकी सड़क पर ही प्रीमैच्योर डिलीवरी हो गई. कोई स्वास्थ्जय सुविधा न होने से नवजात की मौत हो गई. अब मामले की जांच के लिये प्रशासन ने एक जांच कमेटी की घोषणा की है. इस महिला ने बताया – ‘मेरी बेज्जती करी, मेरे पास कपड़ा भी नहीं थी. उन्होंने कहा 5000 रुपया दो.’ भिंड में रजूपुरा गांव की रहने वाले कल्लो सोमवार रात करीब 11:30 अपनी सास और पति के साथ जिला अस्पताल पहुंची थी और उसे 6 महीने का गर्भ था. उसका दर्द बढ़ता जा रहा था लेकिन अस्पताल के कर्मचारियों ने इंसानियत को शर्मशार करते हुए उससे रिश्वत की मांग की.
परिजनों का आरोप है पहले स्टाफ ने उनसे 5000 रूपये मांगे. उनके मुताबिक उनके पास पैसे नहीं थे तो देरी हुई और बाहर से अल्ट्रासाउंड करने की बात पर उन्हें अस्पताल से बाहर निकाल दिया गया. उनके मुताबिक अस्पताल से निकलते ही बहू सड़क पर गिर गई जिसके बाद बच्चे का जन्म हो गया. सास के पास बच्चे को ढकने के लिये तौलिया तक नहीं था. इन हालत हुआ पैदा हुआ नवजात दुनियां में आते ही विदा हो गया. अस्पताल की चौखट के करीब मां और परिजनों की चीखें गूंजती रहीं. महिला की सास मिथिलेश मिर्धा ने कहा – ‘पैसा होते तो सुन लेते, 5000 मांगे थे. वो लड़की थी. भीतर. उन्होंने कहा, तभी भर्ती करेंगे. बुरी तरह से डांट दिया और भगा दिया. प्रशासन कह रहा है जांच होगी.
वही, एक न्यूज चैनल से बात करते हुए सिविल सर्जन डॉ. अनिल गोयल का कहना था कि ‘वो आईओडी थी… बच्चा पेट में खत्म हो गया था, उनको कहा था ईलाज चालू हो गया था, गेट पर डिलिवरी हुई. इसके लिये हमने तीन डॉक्टरों की कमेटी बनाई है. जो दोषी होगी उचित कार्रवाई होगी.’ बता दें कि नेशनल हेल्थ एकाउंट की रिपोर्ट बताती है कि मध्यप्रदेश अपने कुल खर्च का 4.9 फीसदी सेहत पर खर्च करता है. देश के तमाम राज्यों में सेहत पर खर्च के लिहाज से मध्यप्रदेश 28वें नंबर पर है. सरकारी अस्पतालों में 3000 डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं.
बतादें कि राज्य का स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा का कुल बजट 10 हजार 711 करोड़ रूपये है. यानी राज्य के हर शख्स की सालाना सेहत पर सरकारी खर्च सिर्फ 1428 रुपए है. नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में मध्यप्रदेश 17वें नंबर पर है जबकि राज्य के 1199 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को हर साल दवाओं के लिये महज एक करोड़ तक दिये जाते हैं. राज्य में 27 हजार आबादी पर स्वास्थ्य केंद्र है यानी इन केन्द्रों में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति 350-400 रुपए ही खर्च होते हैं. नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अस्पतालों में प्रसव के मामले में 19 बड़े राज्यों में मध्य प्रदेश 16वें नंबर पर है. एमपी में शिशु मृत्यु दर सूडान से भी है खराब और राष्ट्रीय स्तर पर ये 30 है लेकिन मध्यप्रदेश में महज 46 है.
वहीं, इससे पहले मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि नए साल में, नए संकल्प, नई उमंग और नए उत्साह के साथ आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश का निर्माण करना है. सुशासन के नए मापदंड स्थापित करना है शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में और बेहतर काम की आवश्यकता है. उन्होने दावा किया था कि राज्य अधोसंरचना, सुशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य. अर्थव्यवस्था, रोजगार में एक एक कदम आगे बढ़ रहा हैं .
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