चिरनिद्रा में सो गए कथक सम्राट- (4 फरवरी 1938 – 16 जनवरी 2022)
– संजय तिवारी
प्रसिद्ध कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज का हार्ट अटैक से निधन हो गया है। पद्म विभूषण से सम्मानित 83 साल के बिरजू महाराज ने रविवार और सोमवार की दरमियानी रात दिल्ली के साकेत हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। बिरजू महाराज की पोती रागिनी ने बताया कि महाराज का एक महीने से इलाज चल रहा था। बीती रात करीब 12.15-12.30 बजे उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में एडमिट किया गया, लेकिन उन्हें नहीं बचाया जा सका।
पंडित बिरजू महाराज प्रसिद्ध भारतीय कथक नर्तक थे। वे शास्त्रीय कथक नृत्य के लखनऊ कालिका-बिन्दादिन घराने के अग्रणी नर्तक थे। पंडित जी कथक नर्तकों के महाराज परिवार के वंशज थे जिसमें अन्य प्रमुख विभूतियों में इनके दो चाचा व ताऊ, शंभु महाराज एवं लच्छू महाराज तथा इनके पिता एवं गुरु अच्छन महाराज भी आते हैं। हालांकि इनका प्रथम जुड़ाव नृत्य से ही है, फिर भी इनकी गायन पर भी अच्छी पकड़ थी तथा ये एक अच्छे शास्त्रीय गायक भी थे।
पंडित बिरजू महाराज ने कथक नृत्य में नये आयाम जोड़े, नृत्य-नाटिकाओं को जोड़कर उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। कथक को समर्पित ‘कलाश्रम’ की स्थापना भी की। इसके अलावा विश्व भ्रमण कर सहस्रों नृत्य कार्यक्रम करने के साथ-साथ कथक शिक्षार्थियों हेतु सैंकड़ों कार्यशालाएं भी आयोजित की। अपने चाचा शम्भू महाराज के साथ नई दिल्ली स्थित भारतीय कला केन्द्र, जिसे बाद में कथक केन्द्र कहा जाने लगा, उसमें काम करने के बाद इस केन्द्र के अध्यक्ष पर भी कई वर्षों तक आसीन रहे। तत्पश्चात 1998 में वहां से सेवानिवृत्त होने पर अपना नृत्य विद्यालय कलाश्रम भी दिल्ली में ही खोला।
बिरजू महाराज का जन्म कथक नृत्य के लिये प्रसिद्ध जगन्नाथ महाराज के घर हुआ था, जिन्हें लखनऊ घराने के अच्छन महाराज कहा जाता था। ये रायगढ़ रजवाड़े में दरबारी नर्तक हुआ करते थे। इनका नाम पहले दुखहरण रखा गया था, क्योंकि ये जिस अस्पताल पैदा हुए थे, उस दिन वहाँ उनके अलावा बाकी सब कन्याओं का ही जन्म हुआ था, जिस कारण उनका नाम बृजमोहन रख दिया गया। यही नाम आगे चलकर बिगड़ कर ‘बिरजू’ और उससे ‘बिरजू महाराज’ हो गया। इनको उनके चाचाओं लच्छू महाराज एवं शंभु महाराज से प्रशिक्षण मिला तथा अपने जीवन का प्रथम गायन इन्होंने सात वर्ष की आयु में किया। 20 मई, 1947 को जब ये मात्र 9 वर्ष के ही थे, इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। कुछ वर्ष उपरान्त इनका परिवार दिल्ली में रहने लगा।
बिरजू महाराज ने मात्र 13 वर्ष की आयु में ही नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में ही भारतीय कला केन्द्र में सिखाना आरम्भ किया। कुछ समय बाद इन्होंने कथक केन्द्र (संगीत नाटक अकादमी की एक इकाई) में शिक्षण कार्य आरम्भ किया। यहां ये संकाय के अध्यक्ष थे तथा निदेशक भी रहे। तत्पश्चात 1998 में इन्होंने वहीं से सेवानिवृत्ति पायी। इसके बाद कलाश्रम नाम से दिल्ली में ही एक नाट्य विद्यालय खोला।
उन्होंने सत्यजीत राय की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी की संगीत रचना की तथा उसके दो गानों पर नृत्य के लिये गायन भी किया। इसके अलावा वर्ष 2002 में बनी हिन्दी फिल्म देवदास में एक गाने- काहे छेड़ छेड़ मोहे का नृत्य संयोजन भी किया। कई हिन्दी फिल्मों जैसे डेढ़ इश्किया, उमराव जान तथा संजय लीला भन्साली निर्देशित बाजी राव मस्तानी में भी कथक नृत्य के संयोजन किये।
बिरजू महाराज को अपने क्षेत्र में आरम्भ से ही काफी प्रशंसा एवं सम्मान मिले, जिनमें 1986 में पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान प्रमुख हैं। इनके साथ ही इन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि मानद मिली। 2016 में हिन्दी फिल्म बाजीराव मस्तानी में “मोहे रंग दो लाल ” गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिये फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 2002 में लता मंगेशकर पुरस्कार और 2012 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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