नई दिल्ली। वैश्विक महामारी कोरोना (global pandemic corona) का कहर जिस तरह बढ़ रहा यह किसी से छिपा नहीं है। इस बीमारे से बचने ओर बचाने के लिए हमारे डाक्टरों के कंधों पर भार है और उनकी सस्याओं को सुनने के लिए हम नहीं बल्कि सरकारें होती है, हालांकि समय समय पर डाक्टर अपनी समस्याएं सरकार को बताते रहते हैं।
पिछले कुछ दिनों ने कोरोना महामारी ( Coronavirus Pandemic) कहर के बीच देश और दुनिया के 35 टॉप डॉक्टर्स के एक ग्रुप ने केंद्र सरकार ( Central Government ) , राज्यों और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ( IMA ) को चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी के जरिए डॉक्टरों ने कोविड की तीसरी लहर ( Third wave ) में ‘एविडेंस बेस्ड रिस्पॉन्स’ पर जोर देने की अपील की है। कोरोना उपचार के दौरान ऐसी दवाओं और टेस्ट को रोकने के लिए कहा है, जो कोरोना के इलाज के लिए जरूरी नहीं है।
टॉप डॉक्सर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहाI है कि केंद्र सरकार ( Central Government ) वही गलती कर रही है, जो दूसरी लहर में की गई थीं। चिट्ठी में कहा गया है कि कोविड-19 ( Covid-19 ) मामलों में अब हल्के लक्षण होते हैं। इसके लिए बहुत कम या दवा की जरूरत नहीं होती। पिछले दो हफ्तों में हमने जिन प्रिसक्रिपशन्स को रिव्यू किया है, उनमें से अधिकांश मामलों में कोविड किट और कॉकटेल शामिल हैं। इस बारे में कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. मधुकर पई ने कहा कि विटामिन और एजिथ्रोमाइसिन, डॉक्सीसाइक्लिन, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, फेविपिराविर और आइवरमेक्टिन जैसी दवाएं देने का कोई मतलब नहीं है। इन दवाओं के उपयोग की वजह से डेल्टा की दूसरी लहर में म्यूकोमार्कोसिस देखने को मिला था।
वहीं 35 डॉक्टरों की ओर से जारी लेटर में कहा गया है कि ज्यादातर कोविड-19 मरीजों को केवल रेपिड एंटीजन या RTPCR टेस्ट और उनके ऑक्सीजन लेवल की होम मॉनिटरिंग की जरूरत होगी, लेकिन इसके बाद भी इन्हें सीटी स्कैन और डी-डिमर और आईएल 6 जैसे महंगे ब्लड टेस्ट करने के लिए कहा जा रहा है। इस तरह के टेस्ट और मरीजों को बेवजह अस्पताल में भर्ती करने से परिवारों पर आर्थिक बोझ काफी बढ़ गया है।
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