इंदौर। शासन के नगरीय विकास (Governance of Urban Development) एवं आवास मंत्रालय (ministry of housing) ने इंदौर (Indore) सहित प्रदेशभर के प्राधिकरणों को गैर योजना मद में काम करने संबंधी नया आदेश भिजवाया है। पिछले दिनों गजट नोटिफिकेशन (gazette notification) भी इसका जारी कर दिया गया, जिसके चलते अब इंदौर विकास प्राधिकरण अपनी सालाना वास्तविक आय की 10 फीसदी राशि ही गैर योजना मद के कार्यों पर खर्च कर सकेगा। इतना ही नहीं, किस तरह के कार्य हो सकेंगे उसका भी खुलासा शासन (disclosure rule) ने अपने इस नोटिफिकेशन में कर दिया है। सडक़ों, फ्लायओवर, रेलवे ओवरब्रिज, पार्क व उद्यान्न जैसे जनहित और मास्टर प्लान के जरूरी काम ही गैर योजना मद में किए जा सकेंगे। यानी अब प्राधिकरण बोर्ड मनमर्जी से गैर योजना मद के कार्य नहीं कर पाएगा। अभी तक प्राधिकरण पर काबिज रहे राजनीतिक बोर्ड ने विगत वर्षों में करोड़ों रुपए की राशि का अपव्यय भी गैर योजना मद के कामों पर किया है। अपने-अपने क्षेत्रों में राजनीतिक फायदा उठाने के लिए ये काम करवाए गए। हालांकि इनमें से कई कामों की शासन ने मंजूरी नहीं दी, लेकिन अब प्राधिकरण के हाथ शासन ने इस नोटिफिकेशन के जरिए बांध दिए हैं।
प्रदेश में सबसे अमीर इंदौर विकास प्राधिकरण ही है। यही कारण है कि अन्य विभागों द्वारा भी प्राधिकरण से कई तरह के काम करवा लिए जाते हैं। चूंकि बोर्ड में संभागायुक्त, कलेक्टर (Collector), निगमायुक्त (municipal commissioner) से लेकर अन्य विभागों के अधिकारी भी सदस्य के रूप में शामिल रहते हैं, लिहाजा उनके विभागों से संबंधित कामों का बोझ भी प्राधिकरण पर डाल दिया जाता है। हालांकि पिछले 3 साल से प्राधिकरण में राजनीतिक बोर्ड की नियुक्ति नहीं थी और अब अध्यक्ष के रूप में जयपालसिंह चांवड़ा (Jaipal Singh Chanwda) को नियुक्त किया गया है। मगर उसके साथ ही शासन ने गैर योजना मद को लेकर गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया, जिसमें मास्टर प्लान और जनहित से जुड़े कामों को ही करने की मंजूरी दी है।
नगरीय विकास एवं आवास मंत्रालय के उप सचिव सुभाशीष बनर्जी द्वारा उक्त नोटिफिकेशन जारी कराया गया है, जिसमें मप्र नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 2012 की धारा 85 और उसके बाद नियम-19 के तहत गैर योजना मद में किए जाने वाले कार्यों का खुलासा किया गया है, जिसमें मार्क यानी सडक़, फ्लायओवर, रेलवे ब्रिज, पार्क, उद्यान्न के काम ही बोर्ड मंजूरी के बाद किए जा सकेंगे और इन कामों की लागत भी प्राधिकरण की सालाना वास्तविक आय यानी मुनाफे की 10 फीसदी की राशि से अधिक नहीं रहेगी। उदाहरण के लिए सालभर में प्राधिकरण ने 200 करोड़ रुपए का मुनाफा सम्पत्तियों को बेचकर कमाया, तो उसमें से 10 फीसदी यानी 20 करोड़ रुपए तक की राशि ही वह गैर योजना मद पर खर्च कर सकेगा। शासन के इस आदेश से अब प्राधिकरण बोर्ड पर पूरी तरह से अंकुश लग गया है और मनमर्जी से काम नहीं कराए जा सकेंगे।
करोड़ों फूंक डाले राजनीतिक बोर्ड ने फिजुल कामों पर
प्राधिकरण में काबिज रहे राजनीतिक बोर्ड ने करोड़ों रुपए की राशि फिजुल (Rashi fizzle) के कामों में विगत वर्षों में खर्च कर डाली है। गैर योजना मद के नाम पर यहां तक कि कई वार्डों में बोरिंग करवाने से लेकर एयरपोर्ट के बहार राजवाड़ा की प्रतिकृति बनाने सहित कई काम अपनी मनमर्जी से कर डाले। चूंकि पूर्व में ढेर सारे राजनीतिक सदस्य बोर्ड पर काबिज थे, लिहाजा अपने-अपने विधानसभा (Assembly) या वार्डों में धड़ल्ले से ये फिजुल के काम करवाए।
योजना 166 की अधूरी रोड बनेगी… किसानों को मनाया
प्राधिकरण अध्यक्ष जयपालसिंह चांवड़ा (Jaipal Singh Chanwda) अभी लगातार योजनाओं का निरीक्षण कर रहे हैं। कल वे प्राधिकरण सीईओ विवेक श्रोत्रिय (CEO Vivek Shrotriya) और अन्य अधिकारियों के अलावा पूर्व विधायक मनोज पटेल (Manoj Patel) के साथ टिगरिया बादशाह पहुंचे जहां पर प्राधिकरण की योजना 166 है। इसमें टीसीएस और उससे लगी एक सडक़ का हिस्सा अधूरा पड़ा है। लगभग 500 मीटर लम्बाई में 8 से अधिक निर्माण भी बाधक हैं, जिसके चलते किसानों से बात कर उन्हें मनाया भी गया है।
केबल कार सहित अन्य प्रोजेक्ट फाइलों में ही धराशायी
शासन ने गैर योजना मद के लिए 10 फीसदी राशि के साथ क्या काम हो सकते हैं उसका भी निर्धारण कर दिया है, जिसके चलते अब केबल कार सहित अन्य प्रोजेक्ट कागजों पर ही धराशायी हो जाएंगे। अभी प्राधिकरण ने अपने 524 करोड़ के बजट में ओवरब्रिजों के फिजिबिलिटी सर्वे के साथ-साथ राजवाड़ा, सराफा, क्लॉथ मार्केट जैसे संकरे क्षेत्रों के लिए केबल कार चलाने का भी प्रोजेक्ट तैयार किया और इसका फिजिबिलिटी सर्वे करवाने का निर्णय लिया और केबल कार के रुट मेट्रो कॉरिडोर से जोडऩे के दावे किए गए। मगर अब केबल कार सहित ऐसे अन्य प्रोजेक्टों को गैर योजना मद में अनुमति नहीं मिल सकेगी, क्योंकि शासन ने फिर सडक़, ओवरब्रिज और पार्क-उद्यान्न पर ही 10 फीसदी तक राशि खर्च करने के प्रावधान लागू कर दिए हैं।
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