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    पहली बार अदालत ने संस्कृत में पारित किया फैसला

  • January 08, 2022

    झांसी। पुन: श्रवणाय अवसरं विधाय गुणदोषयोश्च विचार्य एकमासाभ्यंतरं निस्तारण करणीयम’, संस्कृत भाषा के शब्दों का झांसी कमिश्नर की अदालत के 110 साल के इतिहास में पहली बार इस्तेमाल शुक्रवार को हुआ।
    बता दें कि देववाणी (Devvani) के संवर्धन के लिए मंडलायुक्त डॉ. अजय शंकर पांडेय (Divisional Commissioner Dr. Ajay Shankar Pandey) ने अनूठी पहल करते हुए दो मुकदमों का फैसला संस्कृत में पारित किया। झांसी कमिश्नरी की स्थापना ब्रिटिशकाल में 1911 में हुई थी। शुरुआत से लेकर देश की आजादी के कुछ वर्षों बाद तक अंग्रेज कमिश्नर ही यहां तैनात रहे। इस अवधि में कमिश्नरी का सारा काम अंग्रेजी भाषा में ही हुआ करता था। बाद के वर्षों में हिंदी और उर्दू को स्थान मिला।



    किन्‍तु ऐसा मौका आया जब राजस्व व शस्त्र अधिनियम से जुड़े दो अलग-अलग मुकदमों के फैसले मंडलायुक्त डॉ. अजय शंकर पांडेय ने संस्कृत भाषा में पारित किए। दोनों मुकदमों में उन्होंने दो-दो पन्नों के आदेश संस्कृत भाषा में दिए। इसके अलावा इन निर्णयों का हिंदी में अनुवाद कराकर भी पत्रावली पर दर्ज करने के भी निर्देश दिए गए, ताकि किसी को समझने में परेशानी न हो।
    वहीं कमिश्नर द्वारा संस्कृत भाषा में मुकदमों का फैसला दिए जाने के बाद कमिश्नरी अभिलेखागार के रिकॉर्ड खंगाले गए, लेकिन इनमें कहीं भी संस्कृत नहीं मिली। अभिलेखपाल दिलीप कुमार ने बताया कि पुराने रिकॉर्ड में अंग्रेजी और हिंदी के साथ उर्दू भाषा का उपयोग होते तो पाया गया, परंतु कमिश्नरी के रिकॉर्ड से संस्कृत पहली बार जुड़ी।
    विदित हो कि मंडलायुक्त के न्यायालय में उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 के तहत 30 दिसंबर 2021 छक्कीलाल बनाम राजाराम आदि का वाद दर्ज किया गया था। इस मामले में एसडीएम मऊरानीपुर की अदालत ने वादी का राजस्व से जुड़ा प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया था। पुनर्स्थापना में सुनवाई का मौका नहीं दिया गया था। मंडलायुक्त के संस्कृत में दिए गए निर्णय में वादी को सुनवाई का अवसर देने का आदेश पारित किया गया।
    गौरतलब है कि जबकि, दूसरा शस्त्र लाइसेंस से संबंधित मुकदमा रहीश प्रसाद यादव बनाम राज्य सरकार उत्तर प्रदेश भारतीय शस्त्र अधिनियम 1959 के तहत मंडलायुक्त न्यायालय में 18 दिसंबर 2021 को दर्ज किया गया था। इस मामले में वादी का शस्त्र लाइसेंस जिला मजिस्ट्रेट की अदालत ने निरस्त कर दिया था, जिसे मंडलायुक्त के न्यायालय ने बहाल किए जाने का आदेश पारित किया।

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