बीजिंग। अपनी आक्रामकता और विस्तारवादी सोच के लिए दुनिया भर में एक खतरनाक चुनौती बनकर उभरा चीन (China) अब पारंपरिक युद्ध की जगह वर्चुअल युद्ध (virtual war) लड़ रहा है। और उसके इस युद्ध का सबसे बड़ा हथियार फेसबुक, ट्विटर(Big Weapon Facebook, Twitter) सहित सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफॉर्म हैं। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party of China) पिछले आठ साल से इंटरनेट पर लोगों की राय जीतने के लिए न सिर्फ दुष्प्रचार फैला रही है, बल्कि इसे युद्ध का मैदान बनाकर लोगों पर अपनी विचारधारा थोपने में भी जुटी (engaged in imposing ideology )हुई है। मजे की बात है कि चीन के समर्थन वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चीन के लोग ही प्रतिबंधित हैं।
दस्तावेजों से पता चला है कि चीनी अधिकारी जरूरत के मुताबिक फेसबुक व ट्विटर सहित अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मन मुताबिक कंटेट, फॉलोअर बढ़ाने, आलोचकों को ट्रैक करने व अन्य सूचना अभियानों के लिए निजी कंपनियों का इस्तेमाल करते हैं। यह सिलसिला 2013 से शुरू हुआ, जब चीन ने राष्ट्रीय प्रोपेगैंडा और विचारधारा पर 2013 में एक सम्मेलन किया। सम्मेलन में चीन (China) के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एलान किया कि आने वाले दिनों में इंटरनेट युद्ध का मैदान होगा और इस युद्ध में लोगों की राय को जीतने के लिए जंग होगी। शी ने इंटरनेट सुरक्षा और सूचना आधारित अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक केंद्रीय समूह बनाया था और साइबर स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ चाइना (सीएसी) का पुनर्गठन कर इसे अपने हाथ में ले लिया। यानी, साइबर स्पेस में चीन जो भी कर रहा है, उसके पीछे सीधे तौर पर शी की मौजूदगी है। नतीजा यह है कि साइबर हमलों से लेकर चीन की सरकार के समर्थन में वैश्विक स्तर पर सोशल मीडिया पर कंटेट की भरमार है। चीन की सरकार पर सोशल मीडिया का वैश्विक स्तर पर हथियार की तरह इस्तेमाल किए जाने को लेकर लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं। कई रिपोर्टों में यह भी साफ हो चुका है कि चीन की सरकार लोकतांत्रिक देशों में न सिर्फ चीन के बारे में ( उइगर मुस्लिमों सहित मानवाधिकार के अन्य मुद्दों पर), बल्कि उस देश की आंतरिक नीतियों और फैसलों को प्रभावित करने के लिए भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रही है। पहली बार, चीन की इस करतूत का काला चिट्ठा दुनिया के सामने आया है। अमेरिका की एक तकनीकी कंपनी, जो चीन सरकार की इस करतूत में शामिल थी, उसने चीन के इस फरेब का पर्दाफाश किया है। काल्पनिक रसूखदारों से चीन बढ़ा रहा अपना रुतबा फेसबुक ने हाल ही में पांच सौ से ज्यादा खातों को बंद किया, जो विल्सन एडवर्ड्स के नाम के एक स्विस जीवविज्ञानी के पोस्टों को तेजी से फैला रहे थे। विल्सन की तरफ से लगातार लिखा जा रहा था कि अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोरोना वायरस महामारी की उत्पत्ति को ट्रैक करने कोशिशों को बाधित कर रहा है। इस काल्पनिक वैज्ञानिक के आरोपों को सबसे पहले चीन के स्विस दूतावास ने री पोस्ट किया और इसके आधार पर अमेरिका पर आरोप लगाए। जब मामला जोर पकड़ने लगा, तो बीजिंग में स्विस दूतावास ने साफ किया स्वीडन में विल्सन एडवर्ड्स नाम से कोई जीव विज्ञानी नहीं है। पब्लिक ओपिनियन मैनेजमेंट के नाम पर चला रहा प्रोपेगैंडा
चीन की सरकार की तरफ से प्रोपेगैंडा चलाने के लिए बाकायदा अंतरराष्ट्रीय निविदा निकाली गई थी। शंघाई और बीजिंग शहर के पुलिस विभाग की तरफ से जारी इन निविदाओं में अंतरराष्ट्रीय तकनीकी कंपनियों को ‘पब्लिक ओपिनियन मैनेजमेंट’ का ठेका दिया गया है। निविदा जीतने वाली एक कंपनी ने चीन की सरकार के इस खेल भंडाफोड़ किया है। निविदा जीतने वाली कंपनी की तरफ से अमेरिका के कई मीडिया समूहों को उन मूल कागजों को मुहैया कराया गया, जिनमें चीन की सरकार की तरफ से सोशल मीडिया पर उनकी छवि को बेहतर बनाने के लिए अलग-अलग काम की रकम तय की गई थी।