नई दिल्ली। जब भी भारत (India) की गुलामी की बात होती है तो हम कहते हैं कि हम अंग्रेजों के गुलाम (slaves of the British) थे. लेकिन यह गुलामी दो तरह की पहले तो हमें अंग्रेजों (British) की एक कंपनी ने गुलाम बनाने का प्रयास किया और उसके बाद हमें ब्रितानिया हुकूमत(British rule) के तहत अंग्रेजों के गुलाम (slaves of the British) थे. जिस कम्पनी ने हमें गुलाम बनाया था वह ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) थी. इसकी स्थापना सन 1600 में 31दिसंबर के दिन हुई थी. इसका उद्देश्य केवल व्यापार करना और उसकी रक्षा करना था. इसके लिए उसे युद्ध करने के अधिकार भी मिले थे. लेकिन इसकी कई बातें ऐसी भी हैं जो हैरान करने वाली हैं.
छिन गया अमीर कंपनी का रुतबा
दिलचस्प बात यह है कि ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के दो साल बाद ही स्थापित हुई डच ईस्ट इंडिया कंपनी या वीओसी की स्थापना हुई थी और वह शुरू से ही ईस्ट इंडिया कंपनी से आगे निकल गई. और उसने जावा जैसे मसाला व्यापार के लिए बहुत ही फायदेमंद माने जाने वाले द्वीप पर कब्जा कर लिया और 1669 तक दुनिया की सबसे अमीर कंपनी भी बन गई.
डच कंपनी से पिछड़ने के कारण किया भारत का रुख
यह बात कई लोगों के हैरानी की लग सकती है की डच कंपनी के मसाला व्यापार में वर्चस्व के कारण ही ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत पर ज्यादा ध्यान देना पड़ा और यहां के समृद्ध कपड़ा उद्योग की ओर रुख करना पड़ा. इस लिहाज से ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत आने का मुख्य उद्देश्य नहीं था, बल्कि व्यापार के अन्य विकल्पों को परखना था.
भारत के महानगर कंपनी की ही देन
ईस्ट इंडिया कंपनी ने ही भारत के आज के प्रमुख महानगर मुंबई, कोलकाता और चेन्नई को शहर का आकार दिया. शुरू में ये ही कंपनी के तीन प्रमुख स्थान थे. यहीं कंपनी ने खास किले बनाए थे जहां मुगल शासकों से व्यापार के जरिए हासिल किए गए सामानों को सुरक्षित रखा जाता था जिसे इंग्लैंड भेजा जाता था.
फ्रांस से भी करना पड़ा संघर्ष
भारत में भी कंपनी को फ्रांस की कंपनी कोम्पेनी डेस इंडेस से मुकाबला करना पड़ा. दोनों ही कम्पनियों की खुद की निजी सेना थी और दोनों को ही आपस में युद्ध की बड़ी शृंखला का सामना करना पड़ा. जो एग्लो फ्रेंच संघर्ष का हिस्सा था. यह संघर्ष 18वीं सदी में पूरी दुनिया में फैल गया था.
भारत में 1764 का बक्सर का युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए निर्णायक सिद्ध हुआ और इसका असर पूरी दुनिया में हुआ. बक्सर की लड़ाई में जीत के बाद कंपनी एक व्यापारिक कंपनी से औपनिवेशक कंपनी बन गई. और उसने बंगाल के लोगों से कर वसूलने का हक हासिल कर लिया. यहां से उनसे भारत में पीछे मुड़कर नहीं देखा, और 1857 तक पूरे भारत में एक सबसे बड़ी शक्ति के रूप में राज किया.
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