– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
देश के कुछ शहरों से ऐसे बयानों और घटनाओं की खबरें देखकर चिंता हुई, जिन्हें सख्ती से नहीं रोका गया तो वे भारत में सामाजिक कोहराम मचा सकती हैं। सच पूछा जाए तो वे भारत और हिंदुत्व, दोनों की बदनामी का कारण बन सकती हैं। पहले हम यह देखें कि वे क्या हैं? हरिद्वार में निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर अन्नपूर्णा और हिंदू महासभा के नेता धर्मदास ने इतने आपत्तिजनक बयान दिए हैं कि अब पुलिस उनके खिलाफ बाकायदा जांच कर रही है। उनमें से एक ने कहा है कि हिंदू लोग किताबों को कोने में रखें और मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाएं। दूसरे ने कहा कि भारत में बसे पाकिस्तानियों की वजह से हिंदू पूजा-पाठ में बाधा होती है और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह जैसे लोगों का वध कर दिया जाना चाहिए। यह कितने शर्म की बात है। एक और ‘हिंदू संत’ ने कहा है कि इस समय भारत में श्रीलंका के तमिल आतंकवादी प्रभाकरन और भिंडरावाले जैसे लोगों की ज्रऊरत है।
इसी तरह के लोगों ने अंबाला के एक प्रसिद्ध और पुराने गिरजाघर में घुसकर ईसा मसीह की मूर्ति को तोड़ दिया। गुड़गांव में भी गिरजे में घुसकर तथाकथित हिंदूवादियों ने क्रिसमस के उत्सव को भंग कर दिया। ऐसा ही पिछले साल असम में कुछ लोगों ने किया था। रायपुर में आयोजित धर्म-संसद में अधर्म की कितनी घृणित बात हुई है। इस संसद में 20 संप्रदायों के मुखिया और कांग्रेस व भाजपाई नेताओं ने भी भाग लिया था। उनमें से ज्यादातर लोगों के भाषण तो संतुलित, मर्यादित और धर्मसंगत थे लेकिन अपने आपको हिंदू संत बतानेवाले दो वक्ताओं ने ऐसे भाषण दिए, जिन्हें सुनकर सारी संताई चूर-चूर हो जाती है। एक ‘संत’ ने गांधीजी की हत्या को ठीक बताया और नाथूराम गोड़से की तारीफ की। उन्होंने मुसलमानों पर इल्जाम लगाया कि वे भारत की राजनीति को काबू करने में लगे हुए हैं। किसी अन्य ‘संत’ ने हिंदुओं के शस्त्रीकरण की भी वकालत की। उन्होंने सारे धर्म-निरपेक्ष लोगों को ‘हिंदू विरोधी’ बताया।
पता नहीं, ये संत लोग कितने पढ़े-लिखे हैं? क्या उन्हें पता नहीं है कि हमारे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री और सभी सांसद उस संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं, जो धर्म-निरपेक्ष है? ये लोग अपने आपको संत कहते हैं तो क्या इनका बर्ताव संतों की तरह है? ये तो अपने आपको उग्रवादी नेताओं से भी ज्यादा नीचे गिरा रहे हैं। ये समझते हैं कि ऐसी उग्रवादी और हिंसक बातें कहकर वे हिंदुत्व की सेवा कर रहे हैं लेकिन भारत के मुट्ठीभर हिंदू भी उनसे सहमत नहीं हैं। उनके ऐसे निरंकुश बयानों से हमारे देश के मुसलमानों और ईसाइयों में भय और कट्टरता का संचार होता है। अपने तथ्यों और तर्कों के आधार पर किसी भी मजहब या संप्रदाय की समालोचना करने में कोई बुराई नहीं है, जैसे कि महापंडित महर्षि दयानंद किया करते थे लेकिन घृणा और हिंसा फैलाने से बड़ा अधर्म क्या है?
(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार हैं)
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved