सावन से जो वादा किया था, वो मुख्यमंत्री ने निभा दिया है और उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया है। उपचुनाव में संगठन ने जिस तरह से सावन और राजेश को एक नाव में बिठाकर तुलसी की नैया पार करा दी थी, उससे लग रहा था कि अब सांवेर में भाजपा का एक ही गुट रहेगा। चुनाव तक तो सब ठीक रहा, लेकिन दोनों सोनकरों के बीच की दूरी फिर बढ़ गई है। इसका उदाहरण सावन के राज्यमंत्री बनने के बाद लगे बैनर और पोस्टरों में देखने को मिला, जिसमें भाजपा के सभी नेताओं के फोटो तो दिख रहे हैं, लेकिन राजेश सोनकर गायब हैं। राजेश के पास जिलाध्यक्ष की जवाबदारी है और प्रोटोकॉल के तहत उनका फोटो भी होना चाहिए। साफ दिख रहा है कि दोनों सोनकर दो तलवारों की तरह है जो एक म्यांन में नहीं आ सकती। इसमें फायदा तुलसी का ही है, क्योंकि उनका कुनबा बढ़ रहा है। 2023 के चुनाव में तुलसी ही सांवेर के आंगन में दिखाई देंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।
बड़े नासिर के चेले बन बैठे छोटे नासिर
सिंधिया खेमे से आए नासिर खान की पुराने भाजपाई नासिर शाह से खूब पट रही है। दोनों गुरु-चेले की तरह घूम रहे हैं। बड़े नासिर भाजपा के आयोजनों में उनका परिचय नेताओं से कराना नहीं भूलते। अभी अल्पसंख्यक मोर्चे ने संभागों का बंटवारा किया तो दोनों को ही ग्वालियर भेज दिया। बड़े को प्रभारी तो छोटे को सहप्रभारी बनाया गया है। अब देखना है कि गुरु-चेले की जोड़ी मोर्चे में क्या गुल खिलाती है या फिर सब कुछ वैसा ही चलता है जैसा मोर्चे में चलता आया है?
पितृ पर्वत पर चढ़ाई की तैयारी में खंडेलवाल
खंडेलवाल न तो कांग्रेस को ठीक तरह से बाय-बाय कर रहे हंै और न ही भाजपा को अपना रहे हैं। सामूहिक विवाह समारोह में दो नंबरी नेताओं को अपना संरक्षक बनाकर उन्होंने मंसूबे तो जाहिर कर दिए हैं, लेकिन विवेक तनखा को अपने घर बुलाना भी नहीं भूले। इससे समझ नहीं आ रहा है कि वे किधर पलटी खाने वाले हैं। वैसे अब नए साल में उन्होंने पितृ पर्वत पर चढऩे की तैयारी कर ली है और अपने क्षेत्र के लोगों के साथ वहां टिफिन पार्टी रख ली है, जो हर साल दूसरी जगह रखते आए हैं।
अलीम के साथ दिख रहे मुखालफत करने वाले
आखिरकार कांग्रेस नेता शेख अलीम ने अपना लोहा मनवा ही लिया। पत्नी को महिला कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में दौड़ाकर वे अपने लिए अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी ले ही आए। वैसे अलीम की उन्हीं के लोगों ने खूब मुखालफत की और एक धड़ा ऐसा बन गया था, जो अंदर ही अंदर अलीम के विरोध को लेकर बड़े नेताओं से मिल चुका था, लेकिन सब पानी में चला गया। हालांकि अलीम समर्थकों का कहना है कि केवल एक ही पूर्व पार्षद उनके खिलाफ लोगों को भडक़ा रहा था और अब वह अकेला पड़ गया है। जो पूर्व पार्षद और मुस्लिम नेता अलीम को नकारने वाली पार्टी में शामिल हुए थे, वे भी अब उनके साथ खड़े हुए नजर आ रहे हैं। आएं भी क्यों न? आने वाले चुनाव में अलीम के हाथ में ही सबकुछ रहने वाला है और फिर अल्पसंख्यक मामलों में उनकी पूरे प्रदेश में सुनी जाना है।
अब काशी भी तो ले चलो संजय भैया
1 नंबरी विधायक संजय भैया के सामने अब एक नई डिमांड आ गई है। उन्होंने अभी एक ही वार्ड के लोगों को अयोध्या यात्रा करवाई है और दूसरे को ले जाने की तैयारी है, लेकिन अब लोगों का कहना है कि हमें काशी के भी दर्शन कराओ। पिछले दिनों जिस तरह मोदी की यात्रा में काशी के जीर्णोद्धार का गुणगान हुआ है उससे लोगों की काशी को देखने की उत्सुकता बढ़ गई है। वैसे संजय भैया ने भी हां तो कर दी है, लेकिन अभी तो उनके क्षेत्र के बचे हुए वार्ड के ही लोगों को अयोध्या ले जाना है। इसमें ही एक साल पूरा हो जाएगा।
अटलजी के जन्मदिन पर गोपी की कविता
विधायक रहते श्रेष्ठ विधायक का खिताब अर्जित करने वाले पूर्व नगर अध्यक्ष गोपीकृष्ण नेमा कविता भी लिख लेते हैं। नेमा को जानने वाले कहते हैं कि उन्हें शुरू से ही पढऩे-लिखने का शौक तो है। वैसे वे
अपने मित्रों के बीच इस प्रतिभा का प्रदर्शन
करते रहते हैं, लेकिन भाजपा कार्यालय पर हुए कवि सम्मेलन में उन्होंने एक के बाद एक दो कविताएं सुनाईं, जो अटल देशभक्ति पर आधारित थीं। वैसे अफसोस की बात यह रही कि कवि सम्मेलन में न तो भाजपा के पूर्व पार्षद पहुंचे और न ही
बड़े नेता।
न घर आए और न बैठक में? तो गए कहां
कभी-कभी हंसी-मजाक भी भारी पड़ जाता है। जल समिति के अध्यक्ष रहे बलराम वर्मा का नाम किसी ने अखबार में छपवा दिया कि वे कार्यसमिति की बैठक से रात में नदारद हो गए थे। बस फिर क्या था, उनसे होम मिनिस्टर (पत्नी) ने पूछताछ कर ली कि न घर आए और न ही बैठक में थे तो फिर कहां गए थे? भले ही यह मजाक रहा हो, लेकिन बैठक में मौजूद हर भाजपाई ने इस पर चटकारे लिए। आखिरी दिन जब कार्यसमिति खत्म हुई तो कुछ नेताओं ने कहा कि हम आपको घर छोड़ आते हैं, लेकिन बल्लू भैया ने हाथ जोड़ लिए और कहा कि तुम जैसे दोस्तों से दूर रहना ही अच्छा। जैसे-तैसे बात संभली है, तुम फिर उसे बिगाड़़ दोगे।
आईडीए अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर जिन भाजपा नेताओं का दावा था वे दौड़ से बाहर हो गए हैं, लेकिन बोर्ड में सदस्य बनने की चाह रखने वाले भी अब दूर भाग रहे हैं। सब भाईसाब की कार्यशैली से वाकिफ हैं और चाह रहे हैं कि अब अपना रास्ता रेसकोर्स रोड की बजाय कहीं ओर मोड़ ले।
-संजीव मालवीय
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