उज्जैन। 13 बड़े नाले और इंदौर का प्रदूषित कान्ह नदी का करोड़ों लीटर गंदा पानी रोज शिप्रा में मिल रहा है। इसे रोकने के लिए संत लगातार आंदोलन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शहर में रहने वाले कुछ ज्यादा समझदार लोग ही रही सही शिप्रा को कचरा फैंककर दूषित कर रहे हैं। हालत यह है कि मंगलनाथ क्षेत्र में विसर्जित की गई मूर्तियों के अवशेष भी नगर निगम नहीं हटा रही है। शिप्रा नदी के शुद्धिकरण को लेकर संत समाज ने आंदोलन छेड़ रखा है। इसमें मिल रही इंदौर की दूषित कान्ह नदी के पानी को रोकने के लिए संत पिछले एक महीने से लगातार आवाज उठा रहे हैं और आंदोलन कर रहे हैं। शुरुआत में संतों ने दत्त अखाड़ा क्षेत्र में 5 दिन का धरना दिया था और भूख हड़ताल की थी। इसके बाद संतों ने सरकार से आश्वासन मिलने के बाद यह आंदोलन स्थगित कर दिया था। संतों के बढ़ते विरोध को देखते हुए मुख्यमंत्री ने इस समस्या के हल के लिए तीन विभागों के प्रमुख सचिवों की टीम को उज्जैन भेजा था।
उच्च स्तरीय टीम ने इंदौर की दूषित कान्ह नदी जो शिप्रा में त्रिवेणी क्षेत्र में मिलती है वहाँ जाकर भी वास्तविकता देखी थी। इसे रोकने की प्लानिंग बनाने के लिए संबंधित विभाग के अधिकारियों को कहा था। इस पर भी संतों को आशंका होने पर वे पिछले दिनों इंदौर और देवास जाकर कान्ह नदी और अन्य गंदे नाले के उद्गम और मिलने वाले स्थानों का जायजा लेने गए थे। यही कारण रहा कि इंदौर जिला प्रशासन ने संतों द्वारा मौके पर जाकर देखी गई हकीकत के आधार पर इंदौर की कई फेक्ट्रियों पर कार्रवाई शुरु की है। देवास जिला प्रशासन ने भी अपने यहाँ से शिप्रा में मिल रहे गंदे नालों के लिए रोकने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट डालने का भरोसा दिया है। संत लगातार अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। इधर शहर के कुछ लोग ही इन तमाम प्रयासों को नजर अंदाज करते हुए पहले से दूषित कान्ह नदी और बड़े नालों से त्रस्त शिप्रा में कचरा और निर्माल्य फेंक रहे हैं। मंगलनाथ क्षेत्र में आए दिन यहाँ स्थित ब्रिज पर आते-जाते लोग ऐसा करते कैमरों में कैद हो रहे हैं। मंगलनाथ क्षेत्र में आम तौर पर शिप्रा जलकुंभी से पटी रहती है। अभी यहाँ जलकुंभी हटाई गई है परंतु लोग अब इसमें कचरा और गंदगी फैंकने लगे हैं। हालत यह है कि पूर्व में विसर्जित की गई बड़ी प्रतिमाओं के अवशेष भी शिप्रा में तैरते दिखाई दे रहे हैं लेकिन नगर निगम द्वारा इन्हें नदी से नहीं निकाला जा रहा।
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