– आर.के. सिन्हा
कुछ इंसानों के राक्षसी या वहशी प्रवृति होने का ही नतीजा था बोधगया में बम विस्फोट। बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और वे बुद्ध बने। इसी बोधगया में कुछ आतंकियों ने बम विस्फोट की घटना को अंजाम दिया।
दरअसल 19 जनवरी, 2018 को बिहार के बौद्ध तीर्थ स्थल बोधगया में तिब्बती बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा के धर्मोपदेश के कुछ घंटों बाद ही बोधगया मंदिर परिसर में बम विस्फोट हुआ था। इस विस्फोट के लिए जिम्मेदार आतंकियों को अंततः पकड़ लिया गया। अब राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की विशेष अदालत ने तीन दोषियों को उम्रकैद और पांच अन्य को दस वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है। इन सबका संबंध जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) नामक संगठन से था।
यदि इन सबको फांसी की सजा दी गई होती तो एक बेहतर संदेश जाता कि भारत अब आतंकवाद को सख्ती से कुचल कर रख देगा। आतंकियों को भारत किसी भी तरह की रियायत नहीं देगा। भारत को अपनी एक सख्त छवि दुनिया के सामने लानी ही होगी। ऐसी सख्त छवि जो दुनिया को यह संदेश देता है कि भारत अपने दुश्मनों को कुचल कर रख देगा।
जरा सोच लें कि महाबोधि मंदिर में धमाका करने वाले लोग कितने जहरीले होंगे? इनकी हरकत से जहां बुद्ध के अनुयायियों को खासतौर गहरा सदमा लगा, वहीं देश के पर्यटन उद्योग पर बेहद नकारात्मक असर हुआ था। जिन स्थानों पर आतंकी हमले की आशंका होती है या जहां आतंकी अपना काम कर चुके होते हैं, वहां जाने से पर्यटक तो बचते ही हैं।
इस विस्फोट का वास्तविक लक्ष्य दलाई लामा को नुकसान पहुंचाना ही था। इंसान कल्पना मात्र से सिहर जाता है कि अगर दलाई लामा को कुछ हो जाता तो क्या होता? वर्तमान में दलाई लामा से बड़ी और आदरणीय शख्सियत दुनिया भर में नहीं है। सारा संसार उनका सम्मान करता है। वे शांति और सौहार्द का संदेश देते हैं। जाहिर है, इस तरह के पवित्र इंसान को हानि पहुंचाने की चाहत रखने वाला शख्स राक्षस ही तो होगा।
बोधगया में तलाशी के दौरान पुलिस ने घटनास्थल से तार, घड़ी, बैटरी, डेटोनेटर, सफेद पाउडर बरामद किये थे। इस मामले को बाद में एनआईए को सौंप दिया गया था। एनआईए ने तीन फरवरी, 2018 को मामला दर्ज कर अभियुक्तों को गिरफ्तार किया। इन अभियुक्तों की कोलकाता एवं बेंगलुरु में हुए बम विस्फोट में भी संलिप्तता थी। उम्रकैद की सजा पाने वालों में तीन दोषी अहमद अली, पैगंबर शेख और नूर आलम हैं।
महाबोधि मंदिर में धमाका तब हुआ था जब केंद्र और बिहार की सरकार दुनियाभर में फैले 50 करोड़ से ज्यादा बौद्ध धर्म के अनुयायियों को भारत के प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थलों तक लाने की कोशिशें कर रही थीं। विस्फोट के बाद बौद्ध धर्म के अनुयायियों की महाबोधि मंदिर में आने की संख्या तेजी से घट गई। इनका भगवान बौद्ध की जन्मस्थली भारत को लेकर आकर्षण स्वाभाविक है। इसी के चलते बौद्ध धर्म के मानने वाले भारत की यात्रा करते हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया, श्रीलंका, जापान और चीन तक से पर्यटक यहां पहुंचते हैं। यूं तो ये साल भर आते ही रहते हैं, पर अक्टूबर से मार्च तक उनकी संख्या सबसे अधिक रहती है।
महाबोधि मंदिर में धमाका करने वाले अब जेल की चक्की पीसेंगे पर इस हमले से सुरक्षा एजेंसियों के कामकाज पर भी सवाल खड़ा होता है। वे अगर महाबोधि मंदिर को भी इंसानियत के दुश्मनों से सुरक्षित नहीं रख पाए तो फिर क्या बचा। यहीं 7 जुलाई 2013 को भी सीरियल धमाके हुए थे। उन सीरियल धमाकों को इंडियन मुजाहिद्दीन ने अंजाम दिया था। 2013 में हुए धमाकों के बाद लगता था कि अब महाबोधि मंदिर को सुरक्षा एजेंसियां सुरक्षित कर लेंगी। पर यह नहीं हुआ।
यह एक गंभीर मामला है। देखिए एक धर्म विशेष से जुड़े आतंकी किसी भी हालत में अन्य मजहबों से जुड़े धार्मिक स्थलों को बर्दाश्त नहीं करते हैं। इन्हें अपने से इतर दूसरे धर्मों से नफरत है। यही इन्हें बचपन से घुट्टी पिलाई गई है। इनका सर्वधर्म समभाव में कतई यकीन नहीं है। सर्वधर्म समभाव हिंदू धर्म की एक प्राचीन अवधारणा है जिसके अनुसार सभी धर्मों द्वारा अनुसरण किए जाने वाले मार्ग भले ही अलग हो सकते हैं, किंतु उनका गंतव्य एक ही है। इस अवधारणा को रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के अतिरिक्त महात्मा गांधी ने भी अपनाया था।
हालांकि माना जाता है कि इस विचार का उद्गम तो वेदों में है। इसे आगे बढ़ाया गांधीजी ने। उन्होंने इसका उपयोग पहली बार सितंबर 1930 में हिन्दुओं और मुसलमानों में एकता जगाने के लिए किया था, ताकि वे मिलकर ब्रिटिश राज का अंत कर सकें। उन्होंने ही अपनी प्रार्थना सभाओं में सब धर्मों के विचार शामिल करने की शुरूआत की थी। यह भारतीय पंथ निरपेक्षता के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है, जिसमें धर्म को सरकार एक-दूसरे से पूरी तरह अलग न करके सभी धर्मों को समान रूप से महत्व देने का प्रयास किया जाता है।
इस बीच, महाबोधि मंदिर में धमाकों के दोषियों को सजा के बाद भी सेक्युलरवादी और मुस्लिम बुद्धिजीवी एकदम से चुप हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की भी जुबान सिल गई है। वे कुछ दिन पहले तक हिन्दुत्व की तुलना आतंकवादी संगठन आईएसआईएस व बोको हरम से कर रहे थे। अब वे जरा बता दें कि महाबोधि मंदिर में धमाका करने वाले इनमें से कौन से मुसलमान हैं। जाहिर है, वे नहीं बोलेंगे। उनका जमीर मर जो चुका है। अब हर्ष मंदर और अशोक वाजपेयी जैसे कथित बुद्धिजीवी भी दाय़ें-बायें निकल लेंगे। वे भी नहीं बोलेंगे। आजकल हिन्दू और हिन्दुत्व पर देश में अधकचरा ज्ञान बांटने वाले राहुल गांधी भी कुछ नहीं कहेंगे। वे महाबोधि मंदिर में हमला करने वालों के खिलाफ एक शब्द भी बोलने से बचेंगे। बोलने पर उनकी धर्मनिरपेक्षता पर कुठाराघात जो हो जायेगा?
खैर, अब हमें एकबार फिर से दुनिया भर के बौद्ध धर्म मानने वाले पर्यटकों को अपने देश में लाना होगा। उन्हें भरोसा दिलाना होगा कि भारत के सभी तीर्थ स्थल पूरी तरह से सुरक्षित हैं। कुछ समय पहले मैं सारनाथ की यात्रा पर था। वहां मुझे भारतीयों के साथ-साथ जापान, श्रीलंका और थाईलैंड के पर्यटक मिले। वे बता रहे थे कि जैसे ही विदेशी उड़ानें फिर से शुरू होंगी, भारत में फिर से बड़ी संख्या में बौद्ध पर्यटक आने लगेंगे। हमें उनका स्वागत करते हुए अपने देश के भीतर पल रहे आस्तीन के सांपों को तो मारना ही होगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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