धर्मशाला। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत को नीचा दिखाने वाले जिन लोगों की मंशा पूरी नहीं हो रही है, वे हर स्तर पर देश को डुबाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं। ऐसे लोगों से सतर्क रहना होगा। कांगड़ा में आयोजित मंडल-बस्ती एकत्रीकरण कार्यक्रम में भागवत ने कहा कि केवल मुट्ठी भर देश विरोधी लोग संघ का विरोध कर रहे हैं। ऐसे लोग व संगठन अपना अस्तित्व बचाने के लिए किसी भी स्तर पर उतरकर अपना जोर लगा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जिस संघ के पास न तो राजनीतिक शक्ति और न ही आर्थिक संपदा के साधन थे, आज वही संघ विश्व का सबसे बड़ा संगठन बनकर उभरा है। कार्यकर्ताओं को कछुए-खरगोश की कहानी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इस दौड़ में कछुए की ही जीत होती है। समय-समय पर संघ पर कई तरह के हमले हुए, हत्याएं हुईं, लेकिन कार्यकर्ताओं ने हिम्मत नहीं हारी। ऐसे अत्याचार यदि किसी अन्य संगठन पर हुए होते तो पांच वर्षों में खत्म हो जाता। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि आगे और भी खतरे हैं। इसके लिए सजग रहना होगा और संघ के स्वभाव को नहीं छोड़ना है।
ऑनलाइन शाखाओं से नहीं सीख सकते संघ के संस्कार
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि वर्ष 2025 में संघ के सौ वर्ष पूरे हो जाएंगे। संघ को कड़ी मेहनत करते हुए वर्ष 2025 तक 130 करोड़ लोगों तक पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि देश में पौने सात लाख गांव हैं। अभी संघ की शाखाएं साठ हजार स्थानों पर हैं, छह लाख स्थान अभी बाकी हैं। ऐसे में अभी बहुत काम करना है। कोरोना से समय जब सब बंद था तो ऑनलाइन शाखाएं चलाईं गईं।
लेकिन ऑनलाइन शाखाओं में सुन तो सकते हैं, लेकिन संघ के संस्कार नहीं सीख सकते। इसके लिए हर रोज कार्यकर्ताओं को एक साथ मिलना पड़ेगा। संघ के विस्तारीकरण के लिए समय देना होगा। उन्होंने कहा कि कम से कम एक घंटा नियमित शाखा में आइए। प्रवासी कार्यकर्ता ज्यादा से ज्यादा समय दें। हर छात्र को अगले तीन वर्षों तक संघ को पूरा समय देना है। इस सूत्र पर हम काम करेंगे, ताकि देश को संपन्न बनता देख सकें।
संघ प्रचार से नहीं, स्वयंसेवी के जीवन से बढ़ता है
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि संघ प्रचार से नहीं, अपितु स्वयंसेवी के जीवन से बढ़ता है। संघ में सब हिंदू अपने हैं। जिस भरोसे से यहां तक पहुंचे हैं, उसे मत छोड़ें और शाखा की साधना में जुड़ जाएं। उन्होंने कहा कि पद, मान, प्रतिष्ठा कुछ नहीं चाहिए। अपना तन, मन, जीवन समर्पित करना चाहता हूं, ताकि देश की धरती को कुछ और भी दे सकूं। भागवत ने कहा कि सेवा ही हमारा अधिकार है और इन सभी मोह आकर्षण को दूर रखने वाली आदतों को पकड़ना है। इसके लिए साधना जारी रखनी है।
मां बज्रेश्वरी का लिया आशीर्वाद
कांगड़ा में आयोजित कार्यक्रम से पहले डॉ. भागवत ने मां बज्रेश्वरी मंदिर में माथा टेका। वह पहली बार माता के मंदिर में आए। वरिष्ठ पुजारी पंडित रामप्रसाद शर्मा ने उनसे विधिवत पूजा-अर्चना करवाई। मंदिर में माथा टेकने के बाद भागवत मंदिर कार्यालय गए। मंदिर में रखी विजिटर बुक में भागवत ने लिखा – यह उनका सौभाग्य है कि मां बज्रेश्वरी के मंदिर में आए।
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