– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
भगवान शिव की नगरी के रूप में काशी आदिकाल से विश्व में प्रतिष्ठित रही है। विश्वगुरु भारत की यह सांस्कृतिक राजधानी हुआ करती थी। अनेक देशों के लोग यहां ज्ञानार्जन हेतु पहुंचते थे। भगवान शिव की कथा में काशी और गंगा जी का प्रसंग रहता है। हजार वर्ष पहले गंगा जी के तट पर दिव्य श्री काशी विश्वनाथ धाम मंदिर का निर्माण किया गया था। यह भारतीय संस्कृति का महान केंद्र था। इसलिए विदेशी आक्रान्ताओं का कहर भी काशी पर रहा।
नरेंद्र मोदी ने काशी को क्वेटो की भांति विश्वस्तरीय सुविधाओं से सम्पन्न बनाने का संकल्प लिया था। जिससे दुनिया के प्रमुख तीर्थ व पर्यटन स्थल के रूप में इसकी पहचान कायम हो सके। यह मात्र धार्मिक आस्था का विषय नहीं है। पर्यटन विकास से अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। बड़ी संख्या में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में रोजगार का सृजन होता है। लेकिन भारत में तीर्थ स्थलों के विकास का ऐसा विजन कभी नहीं रहा। इस विषय को सांप्रदायिक मान लिया गया।
नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस धारणा को बदल दिया। इनके कार्यकाल में तीर्थ स्थलों का अभूतपूर्व विकास किया जा रहा। भव्य दिव्य प्रयागराज कुंभ के आयोजन का भी यही संदेश था। अयोध्या जी में श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है। इसके साथ ही हजारों करोड़ रुपये की परियोजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इसी क्रम में श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का लोकार्पण शामिल है। कुछ वर्ष पहले तक इस स्वरूप की कल्पना भी संभव नहीं थी। काशी विश्वनाथ को यथास्थिति में ही स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विकल्प की तलाश की। इस पूरे स्थल को भव्य दिव्य बना दिया गया। पहले यहां मंदिर क्षेत्र केवल तीन हजार वर्ग फीट में था। अब यह करीब पांच लाख वर्ग फीट हो गया है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि विश्वनाथ धाम का यह पूरा नया परिसर एक भव्य भवन मात्र नहीं, बल्कि यह भारत की सनातन संस्कृति का प्रतीक है। यह हमारी आध्यात्मिक आत्मा का प्रतीक है। यह भारत की प्राचीनता और परंपराओं का प्रतीक है। यह भारत की ऊर्जा व गतिशीलता का प्रतीक है। यहां केवल आस्था के दर्शन होंगे। बल्कि यहां अपने अतीत के गौरव की अनुभूति होगी।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को गंगा नदी के तट से जोड़ने का अद्भुत कार्य वर्तमान सरकार द्वारा किया गया। इस परियोजना की आधारशिला करीब तीन वर्ष पहले नरेंद्र मोदी ने रखी थी। परियोजना के पहले चरण में 23 भवनों का उद्घाटन किया गया। ये भवन श्री काशी विश्वनाथ मंदिर आने वाले तीर्थ यात्रियों को कई तरह की सुविधाएं प्रदान करेंगे। जिनमें यात्री सुविधा केंद्र, पर्यटक सुविधा केंद्र, वैदिक केंद्र, मुमुक्षु भवन, भोगशाला, सिटी म्यूजियम, दर्शक दीर्घा, फूड कोर्ट आदि शामिल है। इस परियोजना के अंतर्गत श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास तीन सौ से अधिक संपत्तियों की खरीद और अधिग्रहण किया गया। चौदह सौ लोगों का सद्भावना के साथ पुनर्वास किया गया। कोविड महामारी के बावजूद इस परियोजना का निर्माण कार्य निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पूरा कर लिया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण कार्य में योगदान करने वाले श्रमिकों के ऊपर पुष्प वर्षा की, उनके साथ भोजन किया। उनका यह कार्य समरसता की भावना के अनुरूप था। नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय एकता व स्वाभिमान का संदेश भी दिया। भारत ने विदेशी आक्रांताओं द्वारा किये गए विध्वंसों के बावजूद अपनी संस्कृति को जीवंत बनाये रखा है। क्योंकि यहां औरंगजेब व सालार मसूद जैसे आक्रांताओं को जवाब देने के लिए शिवा जी व महाराज सुहेल देव भी जन्म लेते रहे है। महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई जैसे अनगिनत महान विभूतियां हुई।
आजादी के अमृत महोत्सव में राष्ट्रीय स्वाभिमान के अनेक प्रसंग उजागर हो रहे हैं। इन सभी महान लोगों ने भारतीय संस्कृति के स्वाभिमान के पुनर्निमाण का संदेश दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब कभी औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं। जब कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं। मुगल आक्रांताओं द्वारा तोड़े गये काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निमाण के लिए महाराष्ट्र की अहिल्या बाई होल्कर और मंदिर की भव्यता बढ़ाने वाले पंजाब के महाराज रणजीत सिंह का नाम लेकर उन्होंने राष्ट्रीय एकता का भी संदेश दिया था।
नरेंद्र मोदी ने सोमनाथ को काशी के विश्वनाथ को जोड़ते हुए द्वादश ज्योतिर्लिंग की भी चर्चा की। अरुणाचल के परशुराम कुंड का उल्लेख किया। नरेंद्र मोदी ने पौराणिक ग्रंथों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यहां केवल डमरू वाले की ही सरकार चलती है। उसकी इच्छा के बिना यहां कुछ भी नहीं हो पाता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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