उज्जैन। शहर के लगभग 2 लाख से ज्यादा घरों से निकलने वाला गंदा पानी नालियों से होकर 13 बड़े नाले के जरिये सीधे क्षिप्रा में मिलता है। इसके निदान के लिए 432 करोड़ की लागत से सीवरेज लाईन डाली जा रही है। इसके पहले सिंहस्थ में 100 करोड़ खर्च कर इंदौर की कान्ह नदी का दूषित पानी अलग करने के लिए कान्ह डायवर्शन योजना पूरी की गई थी जो पूरी तरह फेल है। कल सांसद ने इस मामले को संसद में उठाकर साफ कर दिया कि इतनी राशि खर्च होने के बाद भी शिप्रा का भला नहीं हो पाया। उज्जैन शहर की पहचान क्षिप्रा नदी से है। इसके किनारे प्रत्येक 12 वर्ष में सिंहस्थ मेला लगता है। इस दौरान पूरे महीने देश तथा दुनिया भर के साधु संतों से लेकर श्रद्धालु तक शिप्रा स्नान के लिए पहुँचते है। लंबे समय से क्षिप्रा शुद्धिकरण की मांग साधु संत करते आए है। क्षिप्रा के धार्मिक स्वरुप को जहाँ एक ओर इंदौर से आने वाली कान्ह नदी का पानी दूषित कर रहा है, वहीं शहर के 13 बड़े नाले भी रोजाना लाखों लीटर गंदा पानी क्षिप्रा में उड़ेल रहे है।
सर्वे और ड्राइंग डिजाइन पर ही 10 लाख खर्च हो गए थे
सिंहस्थ 2016 के दौरान इंदौर की कान्ह नदी का दूषित पानी त्रिवेणी संगम पर क्षिप्रा में ना मिलें इसके लिए राज्य शासन ने करीब 100 करोड़ की कान्ह डायवर्शन योजना इसके एक साल पहले ही मंजूर कर दी थी। प्रोजेक्ट पूरा हुए अभी 5 साल हुए है और यह योजना पूरी तरह से फ्लाप हो गई है। नई लाईन के बावजूद कान्ह का गंदा पानी क्षिप्रा में मिल रहा है। योजना के शुरुआती सर्वे और ड्राइंग डिजाइन पर ही जल संसाधन विभाग ने 10 लाख खर्च कर दिए थे। क्योंकि उस दौरान क्षिप्रा नदी में स्नान के लिए 5 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु आने का अनुमान लगाया गया था। इसके लिए त्रिवेणी संगम के आगे राघौ पिपलिया जहां कान्ह नदी क्षिप्रा में मिलती है, यहां से लेकर 19 किमी लंबी भूमिगत पाईप लाईन के जरिए क्षिप्रा किनारे होते हुए कालियादेह महल के आगे तक इसे डाला गया था। त्रिवेणी से होकर यह भूमिगत पाईप लाईन भूखी माता, रामघाट, मंगलनाथ होते हुए यहां तक पहुंचाई गई और सिंहस्थ निपटने के बाद इसका भैरुगढ़ क्षेत्र स्थित उन्हेल चौराहे तक रूका हुआ काम पूरा हो पाया था।
इन नालों के लिए खर्च करने पड़ रहे 432 करोड़
क्षिप्रा नदी में सालों से मिल रहे 13 बड़े नालों को चिन्हित किया जा चुका है। क्षिप्रा शुद्धिकरण के लिए न्यास का गठन भी किया गया था। इसके माध्यम से नाले रोकने के नाम पर करोड़ों की राशि आई और खर्च की गई। फिर भी स्थिति जस की तस रही। क्षिप्रा में जहां एक ओर ऋण मुक्तेश्वर ब्रिज के समीप एक बड़ा नाला सालों से मिल रहा है। वहीं गऊघाट, चक्रतीर्थ मार्ग पर छोटे पुल के नजदीक और भूतेश्वर महादेव के समीप दो बड़े नाले मिलते है। इसी तरह नरसिंह घाट के समीप और त्रिवेणी से लेकर गऊघाट के बीच करीब 4 बड़े नाले इसी प्रकार मिलते है। ऋणमुक्तेश्वर के नजदीक क्षिप्रा में मिलने वाले नाले में पुराने शहर के नयापुरा व अन्य क्षेत्रों से होता हुआ पानी वाल्मिकी धाम होते हुए पहुंचता है। शास्त्री नगर तथा आसपास की दर्जनों कॉलोनियों का पानी गऊघाट पर मिलता है। चक्रतीर्थ पर गोपाल मंदिर, ढाबा रोड और पुराने शहर के कई क्षेत्रों से पानी पहुंचता है। बेगमबाग कॉलोनी, महाकाल और हरसिद्धि क्षेत्र का गंदा पानी रूद्र सागर के जरीए रामघाट पर क्षिप्रा में मिलता है।
तीन साल बाद भी प्रोजेक्ट अधूरा
अमृत मिशन योजना के तहत शहर में पिछले ढाई साल से भूमिगत सीवरेज लाईन डालने का काम चल रहा है। टाटा प्रोजेक्ट कंपनी यह काम 402 करोड़ की लागत से कर रही है। इसके तहत त्रिवेणी से लेकर आगर रोड के सुरासा गांव तक कुल 458 किमी लंबी पाईप लाईन जमीन के अंदर डालना है। कंपनी को यह काम दिसंबर 2020 तक पूरा करना था लेकिन हो नहीं पाया। मेन लाईन त्रिवेणी से सुरासा तक लगभग 16 किमी लंबी मुख्य सड़कों के नीचे डलेगी जो सुरासा में 10 एकड़ के दायरे में बनाएं जा रहे ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुँचेगी। इस लाईन के जरीए पूरे शहर से रोजाना निकलने वाले करीब 70 लाख लीटर गंदे पानी को रोज ट्रीटमेंट कर साफ किया जाएगा। इसका उपयोग खेतों की सिंचाई और अन्य कार्यों में होगा। ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 92 एमएलडी रखी गई है। अभी इसका काम काफी बाकी है।
सदन में कहा गंगा जितना महत्व है शिप्रा का
शुक्रवार को लोकसभा में सांसद अनिल फिरोजिया ने शिप्रा में मिल रही इंदौर की दूषित कान्ह नदी तथा इससे बढ़ रहे प्रदूषण का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि इंदौर से निकलने वाली कान्ह नदी गंदे नाले में तब्दील हो रही है। इसका दूषित पानी वहाँ से सीधे उज्जैन में पवित्र शिप्रा नदी में मिल रहा है। इस कारण शिप्रा का जल आचमन योग्य भी नहीं रहा है। इसके शुद्धिकरण की ठोस योजना बनाई जाना चाहिए क्योंकि जितना धार्मिक महत्व गंगा नदी का है उतना महत्व उज्जैन की शिप्रा नदी का भी है। यहाँ यह विचारणीय है कि शिप्रा शुद्धिकरण के लिए कान्ह डायवर्शन पर 100 करोड़, शुरुआत सर्वे पर 10 लाख और अब नालों से मुक्ति के लिए 432 करोड़ की राशि खर्च होने के बाद भी शिप्रा शुद्धिकरण नहीं हो पाया और यह मामला लोकसभा में सांसद को उठाना पड़ा।
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