नई दिल्ली। भारत (india) में पिछले तीन साल (last three years) में सड़क हादसों (road accidents) में लगभग 72 हजार पैदल राहगीरों ने अपनी जान गंवाई है। यानी बीते तीन साल में प्रतिदिन औसतन 65 से अधिक पैदल यात्री सड़क दुर्घटनाओं (road accidents) का शिकार हुए, लेकिन सड़क पर इस तरह से दम तोड़ने वालों को बचाने के लिए सरकार ने आज तक इसका अध्ययन करना जरूरी नहीं समझा है। हालांकि, हादसों के लिए सरकार पैदल राहगीरों को नियम नहीं मानने का दोषी मानती है, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशों में सड़क पार करने का पहला हक पैदल राहगीर का होता है।
उत्तर प्रदेश से भाजपा के सांसद बृजलाल द्वारा गत दिवस राज्यसभा में सड़क दुर्घटनाओं में पैदल यात्रियों की मौत के बारे में पूछे एक सवाल पर सरकार ने लिखित जवाब में बताया कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में सड़क हादसों में 22,665 पैदल राहगीरों की मौत हुई, जो कि उस साल सड़क हादसों में कुल मृतकों 1,51,417 का 14.97 फीसदी था। वहीं 2019-20 में पैदल राहगीरों की मृतकों की संख्या 25,858 (कुल मृतकों का 17.11 फीसदी) व 2020-21 में पैदल चलने वालों की मरने वालों की संख्या 23,483 (17.83 फीसदी) रही। इस प्रकार तीन साल में देश में 71,997 पैदल यात्री सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए।
सरकार का कहना है कि अभी तक राष्ट्रीय राजमार्गो पर पैदल चलने वालों की मौतें क्यों होती हैं, इसका न तो कोई अध्ययन उपलब्ध है और न ही कराया गया है। सामान्यत: इस तरह की मौतें पैदल चलने वालों के सड़क पर चलने के लिए तय मानदंडों का पालन नहीं करने अथवा यातायात के दौरान सड़क पार करने की कोशिश के कारण होती हैं। इसमें तेज रफ्तार वाहनों के कारण भी दुर्घटनाएं होती हैं। इसके अलावा सरकार ने बताया कि 17 जून 2015 को पैदल यात्रियों की सुविधा के लिए दिशा निर्देश निर्धारित किए हैं। यह दीगर बात है कि छह साल बाद भी पैदल यात्रियों की मृतकों की संख्या कम नहीं हो रही है। सरकार ने बताया कि पैदल यात्रियों विभिन्न स्थानों पर रैंप बनाए गए हैं।
परिवहन विशेषज्ञ एसपी सिंह का कहना है कि विश्व में सड़क पर पैदल यात्री का पहला हक होता है। सड़क का डिजाइन ऐसा होता है कि यात्री फुटपाथ पर चल सके और आसानी से सड़क पार कर सके। देश में फुटपाथों पर कब्जा कर पार्किंग और बाजार लगे हुए हैं। सड़क हादसों के लिए पैदल यात्री को दोषी ठहरना उचित नहीं है। इसको लेकर अध्ययन कराने की जरुरत है। सरकार को गंभीर प्रयास के जरिए टास्क फोर्स बनानी चाहिए, जो बुजुर्गों-बच्चों, महिलाओं को सड़क पार करने के तौर तरीके सिखाए। कड़े नियम बनाकर ऐसे हादसों की रोकथाम की जरूरत है।
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