भोपाल। कथित हक की लड़ाई के लिए पांच साल बाद एक बार फिर शिक्षक (अध्यापक से शिक्षक बने) मैदान में उतर आए हैं। शिक्षकों ने पुरानी पेंशन (वर्ष 2005 से पहले की) योजना बहाली के लिए पेंशन मनोकामना यात्रा शुरू कर दी है। यह यात्रा सात नवंबर को अमरकंटक से शुरू हुई और 25 दिसंबर को भोपाल में महासम्मेलन के साथ समाप्त होगी। इसमें एक लाख शिक्षकों के आने का दावा किया जा रहा है। सम्मेलन में मुख्यमंत्री को भी आमंत्रित किया जाएगा। शिक्षक उन्हें अपनी व्यथा बताएंगे और समाधान की गुहार लगाएंगे। ज्ञात हो कि इससे पहले नियमितीकरण के लिए ये कर्मचारी वर्ष 2015 में तिरंगा यात्रा और वर्ष 2017 में मन्न्त यात्रा निकाल चुके हैं।
प्रदेश में दो लाख 85 हजार शिक्षक हैं। सरकार ने वर्ष 2005 में पुरानी पेंशन बंद कर दी है। जिसमें कर्मचारी को अंतिम आहरित वेतन की 50 प्रतिशत राशि पेंशन के रूप में मिलती थी। जबकि वर्ष 2011-12 में लागू की गई अंशदान पेंशन योजना से इन शिक्षकों को नुकसान है। आजाद अध्यापक-शिक्षक संघ के पदाधिकारी बताते हैं कि प्रदेश के नियमित कर्मचारियों को वर्ष 2006 से छठवां वेतनमान दिया गया है।जबकि उन्हें वर्ष 2016 से। इसलिए शिक्षकों से अब तक तीन से छह लाख रुपये की कटौती हो पाई है। इनमें से 60 प्रतिशत राशि सेवानिवृत्ति के समय उन्हें दे दी जाती है। शेष 40 प्रतिशत राशि पर आठ प्रतिशत की दर से ब्याज मिलता है। जिससे परिवार का भरण-पोषण कर पाना संभव नहीं है। संघ का कहना है कि कोरोना और अन्य कारणों से बीते चार साल में कई अध्यापकों की मृत्यु हुई है। अब उनके स्वजनों को 1200 से डेढ़ हजार रुपये पेंशन मिल रही है। वे सवाल करते हैं कि क्या इतनी राशि से परिवार चलाया जा सकता है। तब जब घर में शादी लायक बेटी हो।
इनका कहना है
पिछले सालों में कई साथियों की मृत्यु हुई है। तब पेंशन की जरूरत समझ में आई। अब हम सरकार और संगठन को अपनी व्यथा सुना रहे हैं।
भरत पटेल, प्रांताध्यक्ष, आजाद अध्यापक-शिक्षक संघ
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