नई दिल्ली। पिछले सप्ताह पाकिस्तान में अफगानिस्तान और चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। बैठक में अफगानिस्तान को फिर से स्थापित करने के लिए पाकिस्तान और चीन ने पूरी दुनिया के सामने एक ऐसे ब्लू प्रिंट के साथ अफगानिस्तान को पेश करने का मसौदा तैयार किया, जो तालिबानियों को स्थापित करने में मदद करे। लेकिन इस मदद के बदले चीन ने जिस तरीके की कूटनीतिक योजना बना डाली, वह अफगानिस्तान के पूरे अस्तित्व पर खतरे जैसा है।
क्लाइमेट चेंज को बनाया हथियार
सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में चीन और पाकिस्तान ने दुनिया के तमाम मुल्कों के सामने अफगानिस्तान को एक बहुत बड़े व्यापारिक दृष्टिकोण के नजरिए वाले देश के तौर पर प्रस्तुत करने का ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया। सूत्र बताते हैं कि अगले चार महीने में होने वाली दुनिया के अलग-अलग देशों की बड़ी बैठकों में चीन और पाकिस्तान इस बात की गवाही देंगे कि अफगानिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से भरा हुआ है।
खासतौर से जिस तरह दुनिया में बढ़ता हुआ प्रदूषण और बढ़ता हुआ तापमान चिंता का विषय है उसे दूर करने के लिए चीन और पाकिस्तान दोनों अफगानिस्तान को सबसे बड़े स्रोत के तौर पर पेश करने वाले हैं। दरअसल चीन ने इस प्रस्ताव को बैठक के दौरान अफगानिस्तान के विदेश मंत्री और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के सामने रखा कि जिस तरीके से अफगानिस्तान में लिथियम के भंडार हैं, वह पूरी दुनिया में नए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के तौर पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
हालांकि इस दौरान चीन ने कूटनीतिक चाल चलते हुए अफगानिस्तान को कई सौ मिलियन डॉलर की मदद का भरोसा जताया और इस बात के लिए राजी करने की कोशिश की कि वह लिथियम के भंडार की मार्केटिंग तो पूरी दुनिया में अफगानिस्तान को स्थापित करने के लिए करेगा, लेकिन उस पर आधिपत्य चीन चाह रहा है। इसके बदले चीन ने अफगानिस्तान की उस पुरानी शर्त को भी मान लिया है, जिसमें उइगर मुसलमानों को नाहक परेशान ना करने का जिक्र किया गया था। खबरें है कि चीन उस पर राजी भी हो गया है।
अफगानिस्तान में चीन चाहता है अपने सैनिकों की तैनाती
विदेशी मामलों के जानकार और पूर्व रक्षा विशेषज्ञ कर्नल नरेंद्र अहलावत कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि बैठक में एक बात और निकल कर सामने आई, वह यह थी कि जिस तरीके से चीन ने पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के लिए अपनी सेना और सुरक्षा बलों को तैनात किया है, उसी तरीके से चीन अफगानिस्तान में अपनी सेना और सुरक्षा बलों को तैनात करने की जुगत लगा रहा है। हालांकि इसके लिए चीन ने पासा फेंका है कि वह चीन से पाकिस्तान को जोड़ने वाले उस हाई-वे की सुरक्षा में अपने सैनिकों सुरक्षा कर्मी तैनात करना चाहता है जो अफगानिस्तान से होकर आ रहा है।
अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय और हक्कानी नेटवर्क के कुछ चुनिंदा कमांडरों ने इस पर आपत्ति दर्ज की है। विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि हक्कानी नेटवर्क की इस आपत्ति के साथ पाकिस्तान ने भी अंदरूनी तौर पर उसका ही साथ देने का मन बनाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान की इस बातचीत के दौरान निष्कर्ष यह भी निकला है कि अगले कुछ महीने में दुनियाभर में होने वाली तमाम तरह की बड़ी बैठकों में चीन और पाकिस्तान अपने राजनयिकों के माध्यम अफगानिस्तान में बदली हुई सत्ता के उन पहलुओं को सामने लेकर आएगा जो दुनिया में अफगानिस्तान को स्वीकार कर सकें।
विदेशी मामलों के जानकार और खुफिया विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि दरअसल पाकिस्तान और चीन दोनों लोग अफगानिस्तान पर अपनी सत्ता को स्थापित करना चाहते हैं। इसके लिए वह अलग-अलग तरीके से दांव भी खेल रहे हैं। वह कहते हैं पिछले हफ्ते हुई पाकिस्तान में इस बैठक का मुख्य मकसद ही यही था कि किसी तरीके से अफगानिस्तान को मदद का बहाना बताकर उनके क्षेत्र में अपनी धाक बनाई जा सके।
अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार के प्रवक्ता के मुताबिक उनका मकसद अपनी सरकार को पूरी दुनिया में मान्यता दिलाने का है। इसके लिए वह दुनिया के कई अन्य मुल्कों में भी जाने की तैयारी कर रहे हैं। प्रवक्ता के मुताबिक चीन और पाकिस्तान ने इस बात के लिए आश्वासन दिया है कि अफगानिस्तान में दुनिया के कई मुल्कों के बंद हो चुके दूतावासों को शुरू कराने के लिए यह दोनों देश प्रयास करेंगे।
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