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    नेताओं के बेलगाम बयान

  • November 14, 2021

    – डॉ. वेदप्रताप वैदिक

    आजकल टीवी चैनलों और अखबारों में कांग्रेस के सलमान खुर्शीद, समाजवादी पार्टी के अखिलेश और अभिनेत्री कंगना राउत के बयानों को लेकर काफी कहासुनी चल रही है। इन तीनों व्यक्तियों के बयान भारत के आधुनिक इतिहास से संबंधित हैं। इन तीनों में से कोई भी इतिहासकार नहीं है। इन तीनों की किस एतिहासिक विषय पर क्या राय है, उसकी कोई प्रामाणिकता नहीं है। लेकिन इनके बयानों पर इतनी ज्यादा चर्चा क्यों होती है? शायद इसीलिए कि इन लोगों के नाम पहले से चर्चित हैं। ये नेता लोग हैं। ये बयान इसलिए भी देते हैं कि कुछ वोट-बैंकों को वे हथिया सकें। कभी-कभी अज्ञानवश या जल्दबाजी में कोई ऊटपटांग बात भी नेताओं के मुंह से निकल जाती है।

    कई बार उनके बयानेां को तोड़-मरोड़कर उनके विरोधी उनकी छवि खराब करने की कोशिश भी करते हैं। जैसे अखिलेश यादव ने गांधी, नेहरु और पटेल के साथ-साथ स्वातंत्र्य-सेनानियों में मोहम्मद अली जिन्ना का नाम भी गिना दिया। इसमें शक नहीं कि आजादी के संग्राम में जिन्ना 1920 तक अत्यधिक सक्रिय रहे। वे मुसलमानों के खिलाफत आंदोलन के भी खिलाफ थे, जबकि गांधी उसका समर्थन कर रहे थे। लेकिन 1920 की नागपुर कांग्रेस में हुए जिन्ना के अपमान ने उन्हें उल्टे रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर दिया। बाद में लियाकत अली के न्यौते पर लंदन से लौटकर उन्होंने मुसलमानों को जो गुमराह किया, उसी का नतीजा बना पाकिस्तान, जिससे न उधर के मुसलमानों का भला हुआ, न इधर के!

    इसी प्रकार सलमान खुर्शीद ने हिंदू अतिवाद और मुस्लिम अतिवाद, दोनों की निंदा की है लेकिन उन्होंने हिंदुत्व की विचारधारा की तुलना बोको हरम और इस्लामी स्टेट के आतंकवाद से करके अपनी अयोध्या संबंधी पुस्तक को विवादास्पद बना लिया है। यह ठीक है कि हिंदुत्व के नाम पर इधर कई हिंसात्मक, आतंकी और मूर्खतापूर्ण काम हुए हैं लेकिन उनका हिंदुत्व की विचारधारा से कोई संबंध नहीं है।

    यदि सलमान खुर्शीद सावरकर का ‘हिंदुत्व’ पढ़ें और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत के बयानों पर ध्यान दें तो वे अपने दृष्टिकोण में संशोधन कर लेंगे। जहां तक फिल्म अभिनेत्री का सवाल है, वे तो कुछ भी कह दें, सब चलता है। 1947 को वह ‘भीख में मिली आजादी’ कहें और मोदी के आगमन (2014) को वह सच्ची आजादी कहें, इस खुशामद को मोदी खुद भी हजम नहीं कर पाएंगे। अभी-अभी मिले पद्यश्री पुरस्कार के बदले ऐसी बेलगाम बयानबाजी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाने की क्या जरूरत है? ऐसे बयान देकर ये चर्चित लोग अपनी इज्जत अपने आप पैंदे में बिठा लेते हैं।

    (लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार हैं)

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