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    तोड़-फोड़ विरोधी उत्तम कानून

  • November 06, 2021

    – डॉ. वेदप्रताप वैदिक

    अब मध्य प्रदेश में भी उ.प्र. और हरयाणा की तरह तोड़-फोड़ के विरुद्ध काफी सख्त कानून लाया जा रहा है। इस कानून का स्वागत इसलिए किया जाना चाहिए कि राजनीतिक प्रदर्शनकारी ही नहीं, कई असामाजिक और अपराधी लोग भी भयंकर तोड़-फोड़ कर देते हैं और फिर छुट्टे घूमते हैं। यही अपराध वे अकेले में करें तो वे जेल और जुर्माना भुगतेंगे लेकिन भीड़ बनाकर जब वे सरकारी और निजी संपत्तियों को नष्ट करते हैं तो वे साफ-साफ बच निकलते हैं लेकिन अब यह कानून बन जाने पर वे भीड़ को अपने कवच की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे।

    मप्र में इस कानून का जो मसविदा सामने आया है, वह काफी सख्त है। उसके मुताबिक जो भी व्यक्ति किसी सरकारी या निजी संपत्ति को नष्ट करते पाया जाएगा, उससे उस संपत्ति की दुगुनी कीमत वसूली जाएगी। उस व्यक्ति के विरुद्ध फैसला होने के बाद 15 दिन के अंदर-अंदर उसे हर्जाना भरना होगा और यदि उसने देर की तो उस राशि पर उसे ब्याज भी देना होगा। यदि वह स्वेच्छा से हर्जाना नहीं भरता है तो उसकी चल-अचल संपत्ति भी जब्त की जा सकती है। यदि कोई गैर-सरकारी व्यक्ति अपने नुकसान के विरुद्ध मुकदमा चलाता है तो उसका सारा खर्च भी अपराधी को देना होगा। इस अपराध के लिए वे लोग तो जिम्मेदार माने जाएंगे ही जो तोड़-फोड़ करते हैं लेकिन उन नेताओं, दादाओं और मजहबी ठेकेदारों को भी जुर्माना भरना पड़ेगा, जो भीड़ को भड़काने का काम करते हैं।

    यदि यह कानून ज्यों का त्यों बन गया तो इसके लागू होने के पहले ही इसका असर होने लगेगा। इसके डर के मारे तोड़-फोड़ लगभग बंद हो जाएगी। यह कानून लोगों को सिखाएगा कि वे किसी भी मुद्दे पर अपना असंतोष, असहमति और क्रोध जरूर प्रकट करें लेकिन मर्यादा भंग न करें। वे प्राण और वस्तु, दोनों की हिंसा से खुद को मुक्त रखें। यही लोकतांत्रिक तरीका है। महात्मा गांधी का अहिंसक प्रतिकार भी इसी तरह का था।

    इस कानून को पास करने के पहले यह जरूरी है कि पक्ष और विपक्ष के विधायक इस पर गहन विचार-विमर्श करें और इसे सर्वसम्मति से पारित करें। इस कानून के लागू करने की प्रक्रिया पर कुछ मतभेद हो सकते हैं। जैसे कि इस कानून के अनुसार कुछ न्यायाधिकरण बनाए जाएंगे, जो दोषियों का निर्धारण करेंगे और उनसे जुर्माना वसूल करने की जिम्मेदारी जिला-प्रशासन की होगी। दोषी लोग उच्च न्यायालय तक भी जा सकेंगे। इस तरह के छोटे-मोटे विवादास्पद प्रावधानों पर विधानसभा सांगोपांग बहस तो करेगी ही लेकिन यह कानून हमारे लोकतंत्र की गुणवत्ता निश्चय ही बढ़ाएगा। इस तरह के कानून सभी प्रांतों और पड़ोसी देश भी क्यों नहीं बना देते?

    (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)

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