– डॉ.रामकिशोर उपाध्याय
त्यौहार हमारे लिए धार्मिक आस्था,सांस्कृतिक विरासत एवं अध्यात्मिक महत्व के पर्व होते हैं। इसके विपरीत वैश्वीकरण ने इन्हें विदेशी कंपनियों के लिए लूटने,ठगने और भारतीय पैसे को सोखने के साधन बना दिए हैं। ऐसी कंपनियों के बाजार विशेषज्ञों के बड़े दल त्यौहार के अनुरूप रणनीति तैयार करते हैं और किस लोकप्रिय कलाकार/सेलिब्रिटी से किस प्रकार जनता का विश्वास जीतना है, उसका पूरा अध्ययन किया जाता है। बाजारबाद का खेल इतना सुनियोजित और भ्रामक है कि कृत्रिम आवश्यकताएं उत्पन्न करके रद्दी से रद्दी चीज को महत्वपूर्ण बता कर बेच दिया जाता है। आम आदमी विज्ञापन देखकर वस्तु खरीदता है, कंटेंट और कम्पोजीशन पर उसका ध्यान ही नहीं जाता। इसीलिए विदेशी वस्तुओं की विक्री बढ़ाने,चीन,अमेरिका आदि देशों द्वारा की जा रही इस निर्मम लूट के लिए हमारे कथित सेलिब्रिटी भी कम दोषी नहीं हैं।
कुछ खिलाड़ी और कुछ अभिनेता अपनी लोकप्रियता को भाड़े पर उठाकर,झूठा विज्ञापन करके हमें विदेशी कंपनियों का समान खरीदने के लिए सतत प्रेरित करते रहते हैं। अमिताभ बच्चन जैसे लोकप्रिय अभिनेता भी भारतीय व्यंजनों/मिठाइयों को पलीता लगाते हुए दीपावली पर मिठाई के स्थान पर विदेशी चॉकलेट डेरी मिल्क खरीदने की भावनात्मक अपील कर रहे हैं क्यों ? क्या भारत में डेरी मिल्क भी मिठाई कही जा सकती है? दीपावली पर मिठाई में प्रयुक्त गुड़,शक्कर की खपत से गन्ना किसानों को लाभ होता है, हमारे स्थानीय दुकानदार/हलवाई रोजगार पाते हैं,दूध,दही की जमकर बिक्री होती है।यदि हम त्यौहार पर विदेशी चॉकलेट को मिठाई के रूप में देने-लेने लगें तो भारत का स्वदेशी मिठाई व्यापार समाप्त हो जाएगा।
ऐसी कितनी ही वस्तुएँ हैं जो दीपावली ऑफर,धन तेरस पर बम्फर छूट,एक के साथ एक फ्री और कैश बैक के लालच में हम अपने घर में ले आते हैं। धन तेरस के दिन सोना,चाँदी और तांवे के वर्तन खरीदने का चलन है किन्तु विदेशी कंपनियों के आकर्षक विज्ञापन हमें अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने के लिए ललचाते रहते हैं। अब सोना चाँदी,तांबे को छोड़ इस शुभ दिन पर भी लोग स्टील (लोहा), प्लास्टिक, इलेक्क्ट्रॉनिक्स आदि की ऐसी वस्तुएँ खरीदने लगे हैं जिनका रीसेल वेल्यू नगण्य है।| उनमें भी अनेक तो एक वर्ष बाद ही कचरे के डिब्बे में पहुँचने वाली होती हैं। धन तेरस का पर्व निवेश के स्थान पर धन की बरबादी का फैशन बनता जा रहा है। स्थिति यह हो गई है कि हम लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति तक चाइनीज ले आते हैं। क्या हम अपने अराध्य की मिट्टी की प्रतिमाएं या कैलेण्डर तक स्वदेशी नहीं खरीद सकते ? यदि अपने धर्म और अपने देश की वस्तुओं के प्रति हमारा स्नेह और आग्रह यों ही दुर्बल होता गया तो फिर यह स्वाधीनता अधिक समय तक टिकने वाली नहीं होगी।
अपने खून पसीने की कमाई से अर्जित धन का एक महत्वपूर्ण भाग हम अपने उल्लास,उमंग और आनंद के लिए इस पावन पर्व पर खर्च करते हैं। उसी धन से हमारे समाज के विभिन्न वर्गों का आपसी व्यापार सुदृढ़ होता है। हम एक दूसरे के द्वारा बनाई वस्तुएं खरीदकर अपनी आवश्यकताएँ पूरी करते हैं तथा एक दूसरे की सहायता भी करते हैं और परस्पर जुड़ते भी हैं। अतः दीपावली देश की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करनेवाला और समाज को जोड़ने वाला त्यौहार भी है। एक कुम्हार आशा करता है कि दीपावली पर उसके दीये बिकेंगें तो वह कुछ पैसा जोड़ लेगा। कपड़े वाला,मिठाई वाला,पटाखेवाला,खील-खिलौनेवाला आदि हमारे आस-पास का पूरा समाज त्यौहार की प्रतीक्षा करता है। कितने आश्चर्य की बात है कि आजकल जूते की दुकानवाला ऑनलाइन कपड़ा खरीद लेता है तो कपड़ेवाला ऑनलाइन जूते यों हीं हम सब अपनी आवश्यकता का सामान ऑनलाइन खरीद लेते हैं और फिर रोते हैं कि इस बार त्यौहार पर बाजार चला ही नहीं। चीनी सामान पहले की तुलना में थोड़ा कम अवश्य हुआ है किन्तु अभी भी भारतीय बाजार के बड़े हिस्से पर चीनी कंपनियों और वस्तुओं का कब्ज़ा है। जिस चीन ने हमें कोरोना जैसी महामारी देकर भयंकर संकट में डाल दिया हो और जो भारत का परम शत्रु और प्रतियोगी हो, हम उसका समान खरीदकर अपने देश की अर्थव्यवस्था को तो क्षति पंहुचाते ही हैं, साथ –ही –साथ अपने देश के उन वीर सैनिकों का भी अपमान करते हैं जो चीन के साथ किसी भी क्षण हो जाने वाले युद्ध के लिए सीमा पर तैयार खड़े रहते हैं।
कोरोना काल में ऑनलाइन बाजार का ट्रेंड बहुत बढ़ गया है किन्तु भारत में ऑनलाइन सामान बेचने वाली कंपनी अमेजन के बारे में कहा जा रहा है कि ये चीनी कंपनियों से सस्ता सामान खरीदकर भारत में कम रेट पर बेचकर हमारे देश का पैसा लूट रही है। हम जिस चीनी सामान का बहिष्कार करना चाहते हैं, ये षड्यंत्र पूर्वक हमें वही समान बेच रही है। यदि हम अपने त्योहारों पर भी स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग नहीं करेंगे तो फिर ये त्यौहार भी केवल विदेशी कंपनियों के द्वारा हमें लूटने का अवसर मात्र बनकर रहजाएंगें। अतः हमें सोचना होगा कि हम स्थानीय भारतीय नागरिकों से सामान खरीदकर देश की लक्ष्मी देश में ही रखना चाहते हैं या ऑनलाइन शॉपिंग द्वारा अमेजन के माध्यम से सीधे विदेश भेजना चाहते हैं। ध्यान रहे अमेजन को ईस्ट इण्डिया कंपनी 2.0 भी कहा जाने लगा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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